अंक – 10 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-10
डूग न्हार री कोटड़ाया जुड़ी कचेड़ी आय।
जाजम ऊपर जाजम बिछ रही खूब पड़े रजवाड़।
लोटयो जाट करणियो मीणो डूंगरसिंह सरदार।
तीनों मिल भेळा हुवै, तो करें तीसरी बात ।
बोल्यो सरदार डुंगसिंह ,तू सुन रे लोटिया जाट।
मीनखां नीठगी मोठ बाजरी ,घोड़ा निठग्यो घास।
मर्दा में तू मर्द आगलो हेररियो तू लाट।
रामगढ़ की हेर लगा दे ,जद जाणू तोय जाट ।
लोटो जाट करणियों मीणो, ज्यां रौ व्हालो मेळ।
डूंग न्यार री भरी कचेड़या लीनी बात सकेल।
करणियो मीणो लोटियो जाट, अकला मांय उजीर।
भेष पलट बै चल्या, रामगढ़ जाणू छूट्या तीर ।
लोटयो लीनी ढोलकी कोई करणियो मीणो लीन्यो बांस।
घर-घर घालै ख्याल है तमाशा घर घर भाले माल।।
बठोठ की बारादरी में जवाहर सिंह ने होली का त्योहार मनाने की मन में सोची उसने सभी अपने दल के लोगों को बालू नाई के द्वारा सभी को आमंत्रित किया गया ।
बालू नाई बहुत ही गोपनीय तरीके से सभी सरदारों को एकत्रित करता था ज्यों ही सभी को बुलावा दिया गया देखते देखते जो जाजम बिछाई गई थी उस पर सभी लोग आने लगे ।
देखा गया कि कई उस टीम में चापलूस खाने पीने वाले मौज उड़ाने वाले भी आए थे ।जवाहर सिंह ने करण्या मीणा और लोटिया जाट को विशेष तौर से बुलाया था वहां महफिल सजने लगी मुजरें होने लगे तथा अंग्रेज तथा उनके पक्ष के लोगों के प्रति बातें होने लगी तथा किसी भी तरह से अंग्रेजों द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने की चर्चा होने लगी। सभी तरह की बातें सुनने के उपरांत सभी सरदारों को शराब के नशे में मदहोश देखते हुए करना राम मीणा बहुत ही उदास हो रहे थे।
क्योंकि उनके साथी डूंगर जी को अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार करके जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया था तो उनको अपने साथी की याद आ रही थी ।जब करना राम मीणा को उदास देखते हुए लोठू जाट ने देखा तो बोला मीणा सरदार आप उदास कैसे हैं आज तो हम त्यौहार मना रहे हैं जब तपाक से करना राम मीणा बोलता है
हमारा मित्र हमारे दल का नेता हथकड़ियों में तड़प रहा है ।
वह जेल की सलाखों में पड़ा है।
मैं मेरे दल के साथी को उस हालात में देख कर आज इस महफिल का आनंद नहीं ले सकता । हे लोठू जाट मैं तो यह कहता हूं कि जवाहर जी को सोचना चाहिए था कि यह घड़ी, यह समय महफिले करने का नहीं।त्यौहार मनाने का नहीं ।हमारे दल का साथी जेल के सलाखों में तड़प रहा है तथा यह जवाहर जी आज महफिल सजा रहे हैं।दोनों दोस्त मित्र जवाहर जी को समझाते हैं कि यह समय आनंद करने का महफिल मनाने का नहीं है।
हमें अपने साथी सरदार ठाकुर डूंगर सिंह जी को छुड़ाने की सोचनी चाहिए।परंतु जवाहर सिंह जी को शराब का कुछ नशा चढ़ गया था उन्होंने दोनों दोस्तों को कहा
खून की गर्मी को तेज करते हुए
अरे मीणा सरदार मुझे ज्ञान देने की जरूरत नहीं है कहा गया है
जो जीवित है उनके जतन करने ही पड़ेंगे। त्योहार सुखा नहीं जाना चाहिए।त्योहार की खुशी मनानी चाहिए। आप महफिल करो फिर देखेंगे
उसका क्या करना है ।करना राम मीणा ने कहा हे सरदार हम हमारे दल के नेता के बिना इस महफिल में शामिल नहीं होना चाहेंगे और हमें यह त्यौहार मनाना अच्छा भी नहीं लगता है।
देखने वाले लोग हमें स्वार्थी कहेंगे तभी वहां विराजमान अन्य दल के सरदारों ने मीणा और जाट की बात का समर्थन करते हुए कहा कि यह दोनों योद्धा सही कह रहे हैं ।परंतु वहां कुछ राजपूत भी थे ।उन्होंने कहा की योद्धा का गौरव कैद में बढ़ता है और वीर योद्धा मरने पर भी अमर कहलाता है ।
योद्धा की असली पहचान उसकी वीरता। उसकी बहादुरी में है और वह अपने रिश्तेदार अपनी जनता अपने सखा को सुखी देखकर भी अपने प्राण त्याग देता है लेकिन करनाराम ने कहा यह सरदार जवाहर सिंह हम यह नहीं चाहते कि हमारा सरदार आपका भाई है जेल की यातना भोग रहा हो और हम सब यहां आनंद मना रहे हो हम यह नहीं चाहते। हम आपको आगाज करते हैं कि आप आज की रात को एक ऐसा फैसला लें जिससे हम जहां भी हमारा सरदार डूंग सिंह जिस जेल में भी है उसको हम वहां से निकाले।
लगातार ————
लेखक तारा चंद मीणा चीता प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर