करणा राम मीणा द्वारा राजकुमार को काठ कोरड़ा की जानकारी देना
मारवाड़ी में कोरड़ा, कोड़े को कहते हैं।
काठ कोरडा काठ का तो होता था लेकिन कोड़ा या कोरड़ा नहीं होता था ,राजाओं या पुलिस द्वारा अपराधियों को काठ कोरड़े में डालकर अपराधी से अपराध कबूल कराया जाता था ।काठ कोरडा काठ के दो टुकड़ों से बनता था ,दोनों टुकड़े एक दूसरे पर रखे रहते थे और एक तरफ कब्जों से जुड़े रहते थे दूसरी तरफ उनमें से निचले हिस्से में कुंडा और ऊपरी से में कुंटिया लगा रहता था ।
इस भाग में ताला लगा दिया जाता था।
काठ के दोनों टुकड़ों में तीन चार जगह अर्धचंद्राकार 2–2 कटाव होते थे जिनमें निचले काठ में अपराधी के पांव की पिंडली का निचला हिस्सा रखकर काठ का दूसरा हिस्सा ऊपर रख दिया जाता था। ऐडी से लेकर पैर की अंगुली तक का पूरा भाग काठ के बाहर रहता था। अपराधी हजार कोशिश करके भी उस छोटे से छेद से अपनी ऐडी बाहर नहीं कर पाता था ।अपराधी के दोनों पांव फंसे रहते और वह कोरडे के बाहर पीठ के बल लेटा दिया जाता था। उसे भोजन पानी भी नहीं दिया जाता था। भोजन केवल उसको जिंदा रखने के लिए न के बराबर दिया जाता था।
जिससे वह अपराधी ,वह व्यक्ति जिंदा रह सके ? उस व्यक्ति को मौसम के अनुसार सर्दी, गर्मी, वर्षा आदि भी सहन करनी पड़ती थी । इस भयंकर यंत्रणा से पीड़ित होकर अपराधी अपना अपराध स्वीकार कर लेता था।
चाहे उसने अपराध किया हो या ने किया हो। परंतु दर्द, पीड़ा से उस अपराध को कबूल कर लिया जाता था। जब काठ कोड़ा के विषय में बालक राजकुमार को बताया तो बालक कुंवर बहुत अचंभित हुआ और बोला मेरे बाबोसा को तो अंग्रेज अधिकारी बहुत परेशान करते होंगे न—— इधर ठकुरानी सभी बातें सुन रही थी और बीच में बात काटते हुए बोली करना राम जी यह काला पानी क्या होता है ।यह कौन सी सजा होती है। यह कोई कठिन सजा है क्या ?
तब करनाराम बताता है महारानी जी यह सजा एक ऐसी सजा है। जिसके लिए कैदी को एक दुर्गम स्थान पर पहुंचा दिया जाता है। बताया जाता है कि वहां गया हुआ कैदी वापस घर वालों से कभी नहीं मिल सकता है ।
ऐसा मैंने सुना सुन रखा है ।
लगातार……
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर