अंक – 16 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-16

करनाराम मीणा के द्वारा सेना का संगठित करना तथा डूंगजी को छुड़ाने की योजनाएं बनाना उस समय जवाहरजी को लोटिया जाट कुछ कहता है।
बड़के बोले जाट लोटिया सुन शेखावत बात जी।
जोर जरब रौ काम नी ,उठे हैं अंग्रेजी राज जी।।
बात सुनकर जवाहर जी ने लोटिया जाट को कहा मैं अभी मेरे सभी सदस्यों को आदेश करता हूं कि वह अपने सभी सगे संबंधियों को यहां यह निमंत्रण भेजे कि हमें हमारे साथी, हमारे भाई ,हमारे सरदार डूगजी को छुड़ाना है तथा मैं इसी वक्त सभी को सही स्थिति से परिचित कराता हूं तथा चारों और बालिया नाई को भेजकर उनके गुप्तचर विभाग को सूचित करता है तथा बालू नाई अपने हिसाब से चारों तरफ मीणा वीर योद्धाओं को यह समाचार पहुंचाता है देखते ही देखते बटोट में बड़े ही गुप्त ढंग से शेखावत ,बिदावत, पंवार, मेड़तिया ,नरूका ,चौहान ,मीणा, बढ़ई ,नाई, लोहार, सुनार, चंद गुसाईं ,साधु संत और दादूपंथी संत सभी जमा हो गए।उस समय साधु संत भी अंग्रेजों के विरुद्ध एक आंदोलन चला रहे थे इसलिए वह भी इन इस आंदोलन में शरीक हो गए ।रात्रि के समय गुप्त स्थान पर बैठक हुई बैठक बठोठ में तहखाने में आयोजित हुई ।
बड़े ही गुप्त ढंग से सभी प्रकार की योजनाएं बनाई गई तथा इस बात का ध्यान रखा गया कि यहां की बात किसी को कानों कान तक खबर ना हो। गुप्त बैठक में काफी कसम कस करने के उपरांत एक निर्णय करना मीणा के द्वारा सुझाया गया कि अपने को आगरा चलने के लिए एक बारात बनानी है और उसमें एक दुला बनाना है जिसको बहुत ही सजी दे तरीके से हम बराती बनाकर यहां से आगरा के लिए प्रस्थान करेंगे तथा रास्ते में कहीं भी यह पता नहीं चलना चाहिए कि हम कौन हैं । बस सभी की नजर में यह हो कि यह बरात राजस्थान से आई है तथा इसका अगला पड़ाव आगरा में जाकर निश्चित स्थान पर रुकेगा।
सभी ने करना राम मीणा की बात को सराहा तथा योजना बनाने के लिए सब अपने अपने तरीके सुझाए तथा सभी तरह के हथियार गुप्त ढंग से रखने के लिए तैयार किए गए।
एक कविता के माध्यम से बरात के लिए कहा गया है।।

झूठी मुट्ठी जान बना लो झूठो जान रौ बिन।
चुग-चुग करलां कुची मांडो, चुग चुग घड़ला जीण।
झूठा बांधो काकड़ डोराडा सिर सोने रो मोड़ जी ।
आपा तो जानेती वणल्या बीन बने भोपाल जी ।
जोधपुर री जान सिर बिणायो रूवा परिणी जाय जी।
दोय जणा जांगड़िया बनके, सिंधु द्यो अरसाल जी।
हाथां पगां के बांधो डोरड़ा सिर सोना को मोड़ जी।
काना घालो मामा मूरकी, गल में घालो गोयजी।
लाल चौभाणै मामा मोचा,लाल कनारी जोड़ौजी।
लाल पगड़ी रातो वागो,रातै महिपै चोड़ो जी।
हाथां का हथियार ले ल्यो,खाबा को सामान जी।
जान बणाय चालां आगरै,हर राखेलो मान जी।
रात रात बै चलै जनैती ,दिन ऊग्यां ठम जायजी।
आगरै रै तीन कोस पर डेरा दिया लगाय जी।
यमुना किनारे गुजर को रैवड़ चरतो जाय जी।
अर्थात–
झूठ मुठ की बारात बना लो जूठा बरात का दूल्हा बना लो चुन-चुन कर ऊंटों पर जीन कसो अच्छे-अच्छे चुन-चुन कर गुप्त रूप से हथियार रखो ।
झूठे बांध लो काकड़ डोर्डे और सिर पर सोने का मोर रख लो ,हम सभी लोग बाराती बनेंगे तथा भोपाल सिंह को दुल्ला बनाएंगे तथा राजस्थानी जोधपुरी बरात बनाकर बीन अपनी दुल्हन को ब्याने शादी करने के लिए आगरा जाएगा तथा बरात के आगे दो आदमी डोली बनकर सिन्धु राग आरंभ कर देंगे ।दूल्हे के हाथों पैरों में काकन डोरडे बांधों और सिर पर सोने का मुकुट लगा लो कानों में मामा मूरकियां पहनाओ गले में गोप डाल दो।
लाल मोचा की मामा जूतियां पहना दो ,मामाओ की ओर से लाल किरारी की धोती पहना दो। लाल जामा और लाल पगड़ी पहनाकर मस्त ऊंटों पर सवार कर दो।
सभी बाराती अपने अपने हाथों में गुप्त रूप से हथियार ले लो साथ में खाने का सामान बांध लो और बारात को आगरा की ओर प्रस्थान कर दो तथा सूर्य देव का स्मरण करते हुए मां जीण भवानी की याद करके अपने सभी कामों को स्मरण करते हुए रात को प्रस्थान कर दो तथा बरात रात रात में रास्ता को कवर करेगी तथा दिन निकलते ही बरात रुक जाएगी यानी की बरात आराम करेगी इस तरह करना राम मीणा व लोठू जाट ने डूंगजी को आगरा की जेल से छुड़ाने के लिए मजबूत सेना का गठन किया तथा सभी साथियों को अच्छे हथियारों से लैस किया साथ में किले को तोड़ने के लिए छेनी हथौड़ी आदि सामान प्राप्त मात्रा में लिया जिससे आगरा की मजबूत जेल को तोड़ा जा सके क्योंकि जेल को तोड़ने के लिए सख्त औजारों की जरूरत होगी ।इसके लिए दो होशियार लोहार भी लिए गए जिसमें सांखू लुहार मुख्य था ।आखिर में सभी सामान का बंदोबस्त कर के बरात बठोठ से रवाना हुई ।रवाना होने के उपरांत जैसे जैसे गांवों में से निकलते गए बारातियों का हर जगह सम्मान की दृष्टि से लोग देख रहे थे।तथा आगे से आगे उनकी सेवा के लिए प्रस्थान होते हैं इस तरह से बरात रूपी सैनिक आगरा के नजदीक पहुंच जाते हैं जहां से आगरा की दूरी मात्र 9 किलोमीटर के लगभग रहती है वहां करनाराम मीणा व लोठू जाट अपने दिमाग का उपयोग करते हैं कि हम किस तरह से आगरा शहर में प्रवेश कर सकते हैं।
इसके लिए हमें नई योजना बनानी चाहिए इस बात पर करना राम मीणा के दिमाग में एक बात उपजती है और कहते हैं यह दोस्त जाट में एक काम करता हूं यमुना के किनारे भेड़ों का रेवड़ चर रहा है उसमें से मैं एक मींडा खरीद के लाता हूं तथा उसको मार कर कुछ उपाय करते हैं इतनी देर में जवाहरजी करनाराम की बात को सुन लेते हैं और कहते हैं करनाराम आप मींडा क्या करोगे । क्या तुम उसे खाओगे हमें समझ नहीं आ रहा तेरी क्या योजना है हमें तो बताओ करनाराम!
करनाराम जवाहर जी को कहते हैं ठाकुर साहब हम मींडा का मीडासिंह बनाएंगे तथा उसको मार कर मुर्दा बनाना है और मुर्दा बनाकर कंपनी बाग में इसको जलाएंगे तथा उसकी धुंआ चारों तरफ फैल जाएगी फिर वहीं उसका क्रिया कर्म करेंगे ।
इस दरमियान अपनी योजना के लिए किले में प्रवेश की बना लेंगे ।
जब जवाहर सिंह व उसके साथी ने कहा अरे वाह!
करना राम मीणा तेरे दिमाग को सलाम करते हैं!
तुम तो बहुत होशियार हो!
वाकई में आपको तो वीर हनुमान की पदवी देनी चाहिए!
जो तुम इस कार्य को बुद्धि से कर रहे हो! अब आगे की योजना के बारे में क्या कहते हो !
तब लोटिया जाट करण्या मीणा और अन्य लोग अब आगे की कार्रवाई पर विचार करने लगे।
उन्होंने सोचा कि अब हमें सही अवसर की तलाश करनी चाहिए ।
उसके लिए बारात का रुकना जरूरी है।
मगर बिना ठोस कारण के बरात रूक नहीं सकती ।
दुश्मनों को संदेह हो जाए, इसलिए मैंने यह योजना बनाई है! करनाराम मीणा ने कहा!
लगातार —
लेखक तारा चंद मीणा श्रीमाधोपुर सीकर

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