करनाराम मीणा के द्वारा सेना का संगठित करना तथा डूंगजी को छुड़ाने की योजनाएं बनाना उस समय जवाहरजी को लोटिया जाट कुछ कहता है।
बड़के बोले जाट लोटिया सुन शेखावत बात जी।
जोर जरब रौ काम नी ,उठे हैं अंग्रेजी राज जी।।
बात सुनकर जवाहर जी ने लोटिया जाट को कहा मैं अभी मेरे सभी सदस्यों को आदेश करता हूं कि वह अपने सभी सगे संबंधियों को यहां यह निमंत्रण भेजे कि हमें हमारे साथी, हमारे भाई ,हमारे सरदार डूगजी को छुड़ाना है तथा मैं इसी वक्त सभी को सही स्थिति से परिचित कराता हूं तथा चारों और बालिया नाई को भेजकर उनके गुप्तचर विभाग को सूचित करता है तथा बालू नाई अपने हिसाब से चारों तरफ मीणा वीर योद्धाओं को यह समाचार पहुंचाता है देखते ही देखते बटोट में बड़े ही गुप्त ढंग से शेखावत ,बिदावत, पंवार, मेड़तिया ,नरूका ,चौहान ,मीणा, बढ़ई ,नाई, लोहार, सुनार, चंद गुसाईं ,साधु संत और दादूपंथी संत सभी जमा हो गए।उस समय साधु संत भी अंग्रेजों के विरुद्ध एक आंदोलन चला रहे थे इसलिए वह भी इन इस आंदोलन में शरीक हो गए ।रात्रि के समय गुप्त स्थान पर बैठक हुई बैठक बठोठ में तहखाने में आयोजित हुई ।
बड़े ही गुप्त ढंग से सभी प्रकार की योजनाएं बनाई गई तथा इस बात का ध्यान रखा गया कि यहां की बात किसी को कानों कान तक खबर ना हो। गुप्त बैठक में काफी कसम कस करने के उपरांत एक निर्णय करना मीणा के द्वारा सुझाया गया कि अपने को आगरा चलने के लिए एक बारात बनानी है और उसमें एक दुला बनाना है जिसको बहुत ही सजी दे तरीके से हम बराती बनाकर यहां से आगरा के लिए प्रस्थान करेंगे तथा रास्ते में कहीं भी यह पता नहीं चलना चाहिए कि हम कौन हैं । बस सभी की नजर में यह हो कि यह बरात राजस्थान से आई है तथा इसका अगला पड़ाव आगरा में जाकर निश्चित स्थान पर रुकेगा।
सभी ने करना राम मीणा की बात को सराहा तथा योजना बनाने के लिए सब अपने अपने तरीके सुझाए तथा सभी तरह के हथियार गुप्त ढंग से रखने के लिए तैयार किए गए।
एक कविता के माध्यम से बरात के लिए कहा गया है।।