सन 1902 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन अपनी भारत यात्रा पर मत्स्य प्रदेश की रियासत जयपुर में राजा माधो सिंह से मिलने के लिए जयपुर आए हुए थे ।उनके साथ में उनके अंगरक्षक के रूम में एक ब्रिटिश आर्मी अधिकारी भी साथ में था। जब राज महलों में वायसराय लार्ड कर्जन राजा माधो सिंह से मिलने के लिए आए, साथ में उनके ब्रिटिश आर्मी अधिकारी चल रहे थे । महल में प्रवेश करते समय मीणा सरदार रघुनाथ का मिलन हो जाता है तथा अपने लिबास के अंदर एक बहादुर योद्धा अपनी बहादुरी और वीरता भरे जोशीले बदन और शेर के समान ताकत रखने वाला गठन शरीर महल के अंदर राजा माधव सिंह के नजदीक ही खड़े थे। जब ब्रिटिश अधिकारी अंदर जाने लगा तो रघुनाथ सिंह जी ने भी उनसे हाथ मिलाने की चेष्टा की। ब्रिटिश सैन्य अधिकारी को अपनी भुजाओं पर गर्व था उन्होंने अपनी ताकत के बल से हाथ मिलाते समय रघुनाथ के हाथ को दबाना चाहा परंतु मीणा सरदार बुद्धि में श्रेष्ठ पहले ही समझ चुका था कि यह ब्रिटिश अधिकारी कुछ गड़बड़ी कर सकता है। तथा आभास हो गया था कि यह अपनी ताकत का उपयोग करेगा ज्यूं ही उन्होंने उनका हाथ मिलाया और ताकत आजमाने की कोशिश की, वैसे ही रघुनाथ जी ने इतनी ताकत से उनके हाथ की अंगुलियों को जकड़ के दबाया की उसकी अंगुलियों की नसे ही टूट गई और दर्द के मारे करहाने लगा । राजा माधोसिंह व लॉर्ड कर्जन ने जब यह दृश्य देखा तो थोड़ा मुस्कुराए और उसकी वीरता की प्रशंसा की तथा महाराज माधोसिंह ने उसकी बहादुरी के करतब को देखकर हमेशा अपने साथ सलाह मशवरा के रूप में रखने का निश्चय किया और समय-समय पर जो भी सलाह मशवरा सैन्य प्रक्रिया के तहत करने पड़ते थे । उसके लिए विचार विमर्श उनसे करते रहते थे।
इस बहादुरी के लिए महाराज माधव सिंह ने रघुनाथ जी को सेना में कप्तान की उपाधि से भी अलंकृत किया तथा एक सेना के भाग को उसके निर्देशन में काम करने का जिम्मा सौंपा। ब्रिटिश आर्मी अधिकारी की भुजाओं की ताकत आजमाने के लिए उनको महाराज माधोसिंह द्वितीय ने सवा किलो सोने का कड़ा भेंट स्वरूप प्रदान किया उसी के साथ उनको कई सम्मानों से नवाजा। मत्स्य प्रदेश के वीरों के लिए कहा भी गया है कि इनकी बहादुरी के सामने सभी प्रकार की बाधाएं तुच्छ हैं तथा यह कुल और समाज का नाम रोशन करते हैं और अपने वतन के लिए कुर्बानी को तैयार रहते हैं , जिसके लिए कवि ने बताया है
जल खारै सरपा जवां,डारण नहीं डंरत।
वसुधा भोगै वीर वे ,कुल में नाम करंत।।
लगातार…..
लेखक तारा चंद मीणा “चीता” कंचनपुर सीकर