जागीर प्रदान करने के साथ ही ब्रम्हपुरी में बंगला आवंटन किया।
पहलवान रघुनाथ सिंह के द्वारा शेर को परास्त करने के उपरांत जनता के जोश को देखकर मर्जीदास खवास बाला बख्स काफी डर रहे थे तथा अपनी ओछी हरकत पर पश्चाताप भी कर रहे थे तथा सोच रहे थे कि कप्तान साहब अब मुझे माफ नहीं करेंगे । इस तरह की मन में बातें सोच कर वहां से खिसक लिए परंतु कप्तान साहब ने इस बहादुरी कारनामे के उपरांत मन ही- मन उस दुष्ट व्यक्ति को माफ करते हुए अपने आप पर गर्व किया तथा अपनी अंतरात्मा में एक शेरनी का दूध पिया हुआ समझते हुए महान योद्धा का यह खिताब प्राप्त किया कि किस तरह से एक सेवक ने अपनी दुष्टता से कप्तान साहब को राजमहलों से हटाने की अपनी योजना बनाई थी । परंतु प्रकृति और सूर्य देव के आशीर्वाद से सब कुछ उल्टा हुआ तथा इस बहादुरी भरे कारनामे को देखकर राजा माधो सिंहजी ने रघुनाथ सिंह जी को बांदीकुई के पास किशनपुरा गांव की जागीर प्रदान की जिसमें लगभग 21सौ बीघा जमीन बख्शीश कर पुरस्कृत किया ।यह जमीन सात घोड़ों की जागीर के बराबर मानी जाती थी।
इसके साथ ही सिरोपाव ,एक खांडा और कुछ मोहरे भी इनायत की तथा सेना के मुख्य पद पर उनको पदस्थापित किया ।उस समय मीणा सरदार कप्तान की आयु 37 वर्ष की थी। प्रत्यक्षदर्शी शिव बख्स करोल भी उस प्रदर्शन को देखने में शामिल थे तथा कई सरदार जागीरदार भी वहां दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे ।भानपुर कला गांव से जयपुर महानगर के किले की चारदीवारी के भीतर ब्रह्मपुरी क्षेत्र में तीन मंजिला एक बंगला जो शहर के प्रसिद्ध दरवाजा सम्राट के पास में स्थित था उसको आवंटित किया । जहां उन्होंने इसके अलावा 2 मंजिली हवेली भी बनाई।यह तीन मंजिल आवासीय हवेली बहुत ही शानदार बनी हुई थी जिसको देखते हुए उस समय की हकूमत टपक पड़ती है और आज भी देखने में बहुत ही सुंदर है । हवेली के पीछे बहुत ही सुंदर बगीचा था जिसमें तरह-तरह के फलों के वृक्ष थे तथा आसपास में काफी जमीन थी । ब्रह्मपुरी में यह स्थान मीनों का मोहल्ला के नाम से जाना जाता था और एक प्रसिद्ध जगह थी, बाग बगीचे व फुलवारी से आच्छादित बगीचाआज दिनांक तक कप्तान रघुनाथ सिंह जी की याद को ताजा करता है। इसी के साथ ही चांदी का रथ और सहायक प्रदान किए। किशनपुरा में आज भी इनके वंशज उनके द्वारा निर्मित छोटे से महल में रह रहे हैं जो कप्तान साहब की याद को ताजा करता हैं तथा सैकड़ों बीघा जमीन थी वह आज भी एक छोटे टुकड़े के रूप में उनके वंशजों के पास लगभग 15, 20 बीघा जमीन शेष रही है तथा आजादी के बाद ब्रह्मपुरी वाला बंगला परिस्थितियों के कारण किसी राजपूत समाज के व्यक्ति ने इसको खरीद लिया तथा आज उसमें राजपूत परिवार इस बंगले में निवास कर रहा है ।उसी के आसपास रघुनाथ जी कप्तान के परिवार के लोग ब्रह्मपुरी में रह रहे हैं। जिसमें रघुनाथ जी के छोटे भाई जोता राम जिनकी शादी गांव बास्को के सोनाराम जी जारवाल की पुत्री पारा के साथ हुई पारा के संतान के रूप में गोविंद शरण जी हुए गोविंद शरण जी की शादी अमसर शाहपुरा के छोटू राम झरवाल की पुत्री जानकी के साथ संपन्न हुई जिनके भैरूसहायजी पैदा हुए। भैरूसहाय जी की दो शादियां हुई जिसमें प्रथम पत्नी बिंजा नौगाडा की पुत्री नानगी से हुआ तथा द्वितीय पत्नी पोखरका वास के सेडू रामजी छोलक की बेटी सजना के साथ संपन्न हुआ। प्रथम पत्नी से रामस्वरूप और रामधन तथा द्वितीय पत्नी से रामशरण जी हुए जिनके सभी परिवार के सदस्य आज ब्रह्मपुरी में निवास कर रहे हैं इसी परिवार में रामसरण जी की पत्नी गायत्री देवी राजस्थान पुलिस में हेड कांस्टेबल के रूप में सेवा दे रही है।
लगातार……..
लेखक तारा चंद्र मीणा चीता कंचनपुर सीकर