अंक -3 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 3

अंक -3 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है ।
शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा ,श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 3

स्वतंत्रता के आंदोलन में भारत देश के आदिवासी लोग अंग्रेजी शासन के बहुत घोर विरोधी थे ।परंतु इतिहास के मुख्य पृष्ठ पर इन स्वतंत्रता संग्राम के प्रेमियों का कहीं भी बढ़-चढ़कर वर्णन नहीं किया गया है ।आदिवासी मीणा जाति के लोग सामंतों ,अंग्रेजों से काफी लड़े उनके साथ खैराड़ के मीणाओं ने अंग्रेजी शासन और उनके आश्रित मेवाड़ के महाराणाओं की सता को गंभीर चुनौती भी दी थी, इसके साथ ही तोरावटी के मीणा विशेषकर शाहजहांपुर के रणबांकुरे अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।
राजस्थान में भारत के अन्य प्रांतों की भांति क्रांति का श्री गणेश सैनिक छावनियों से हुआ।
परंतु धीरे-धीरे स्थानीय जनता की इसमें रुचि व स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना निश्चित रूप से आयुध जीवी आदिवासी मीणा जाति का हाथ बहुत ही अधिक रहा है। जहां सैनिक छावनी में क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित हो रही थी वैसे ही आदिवासी क्षेत्रों के मीणा जाति के लोगों की भावना भी देश की आजादी के लिए प्रबल थी ।
राजस्थान के अन्य जगहों के मीणों की भांति शेखावाटी के मीणा भी साहस व वीरता में किसी से कम नहीं थे ।
राजपूतों से उनका कोई विरोध नहीं था
परंतु जब बड़ी-बड़ी रियासतें अपना स्वाभिमान खोकर अंग्रेजों की संरक्षण संधि में बंध गई तब मीणा जाति के लोग आक्रोश में आ गए तथा वे अंग्रेजी राज के प्रबल शत्रु के रूप में उभरने लगे ।सहयोग से अंग्रेज विरोधी जागीरदारों का भी उनको समर्थन मिल गया ।इस क्षेत्र के आदिवासी मीणा जाति के नवयुवक भी इस अभियान में कूद पड़े जिसमें इस क्षेत्र के लगभग 1000 आदिवासी मीणा जाति के लोग थे ।जिनका मुख्य कार्य अंग्रेजी छावनियों एवं खजानों को लूटना था तथा इस लुटे हुए माल को गरीब जनता के अंदर बांटकर उनके हितेषी बनते थे।स्वतंत्रता प्रेमीयों का दल यह देखना चाहता था कि अंग्रेजी शासन अपने संरक्षित शासकों को कहां तक रक्षा कर सकता है ।
सन् 1857 की क्रांति के पहले ही राजस्थान के आदिवासी मीणा जाति के लोग आजादी का शंखनाद सन् 1837 में ही कर चुके थे ।जिसमें सांवता राम मीणा, करनाराम मीणा और उनकी टीम में शेखावाटी क्षेत्र के कई गांवों के लोग आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे ।उनका एक आदर्श वाक्य था
काची काया को बणयों मांनखो,पेट दुख मर जाए रे
एक बार में लूटूं छावनी ,करूं मुल्क में नाम रे
अर्थात-
मानव के शरीर का कोई पता नहीं उसकी कब मृत्यु हो जाए और वह कब मिट्टी में मिल जाए ,मनुष्य कई बार छोटी-मोटी बीमारियों से भी अपनी ही लीला समाप्त कर लेता है और उनके अनुसार पेट दुखने पर भी मनुष्य मर जाता है तो इससे अच्छा यह है कि अपने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों की छावनी को लूट कर खजाने को लूटा जाए और गरीब लोगों में बांटा जाए, यदि उस लूट में मृत्यु भी हो जाती है तो देश के लिए नाम अमर करके जाते हैं और खुद का नाम भी अमर हो जाता है।
प्राचीन काल में राजस्थान के छापोलीवाटी क्षेत्र मत्स्य महाजनपद के अंतर्गत आता था यह क्षेत्र विराटनगर के पश्चिम दक्षिण में स्थित है।वर्तमान सीकर, चूरू और झुंझुनूं जिलों के अंतर्गत आता है इसमें तोरावटी के अंतर्गत सीकर जिले की नीमकाथाना तहसील और जयपुर जिले का कोटपूतली शाहपुरा तथा विराट नगर का क्षेत्र आता था प्राचीन काल में संपूर्ण क्षेत्र पर मीनों की सता थी ।उनका राज्य था पुराने जमाने में मत्स्य क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला छापोली कस्बा मीनो का एक प्रमुख स्थान रहा है इसी गांव के पीछे मीनों की एक प्रसिद्ध खाप छापोला कहलाई, चौदवीं शताब्दी के प्रारंभ में यहां अलाउद्दीन खिलजी के साथ छापोली के मीणा सरदारों का बहुत भयंकर युद्ध हुआ और उस युद्ध में काफी मीणा सरदार आहत हुए तथा दिल्ली के सुल्तान खिलजी का उस पर आधिपत्य हो गया तथा छापोली के छापोला गोत्री मीणा राजाओं का राज्य अपदस्थ हुआ ।अलाउद्दीन खिलजी मुस्लिम शासक एक बहुत ही अयासी पर्वर्ती का राजा था ।उसको जिस भी राजघराने में जहां भी विशेष रूपवती महिलाओं का पता चल जाता था तो वह उसको अपने हरम में लाने का बड़ा ई शौकीन था। उसी पर उनको अपने जासूसों के द्वारा पता चल गया कि राजा ऊमाऊराव मत्स्य क्षेत्र के छापोली क्षेत्र के राजा की एक रुपवती —-
लगातार———-
लेखक तारा चंद मीणा “चीता” प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *