अंक – 4 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा ,श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 4
राजा उमाऊ राव की पुत्री चंद्रमणि पद्मिनी सी सुंदर कन्या थी ।
अलाउद्दीन खिलजी के पास जब उसकी सुंदरता की चर्चा पहुंची तो उसने मीणा राव से उसकी पुत्री का डोला मांगा, मीणा राव के मना करने पर अलाउद्दीन खिलजी ने बुलेल खां के अधीन इस आदेश के साथ सेना भेजी कि वह उमराव को गिरफ्तार करें और उसकी रूपवती पुत्री चंद्रमणि को दिल्ली ले आए ।नवाब बुलेल खां छापोली के गढ़ पर आक्रमण किया तो 12 गांवों के मीणा सरदार एक होकर अलाउद्दीन खिलजी की भेजी हुई सेना का सामना किया तथा डटकर मुकाबला किया ।
इस रणक्षेत्र में छापोली के आसपास के 140 मीणा सरदार वीरगति को प्राप्त हुए। उमरावऊ अपने चारों बेटों सहित अपनी आन बान शान को बचाते हुए शहीद हो गए । परंतु उमाऊ राव की रानी विश्वस्त मीणा सरदारों के सहयोग से अपनी पुत्री चंद्रमणि तथा चारों पुत्रवधुओं को साथ में लेकर अपने पोते सहित चिलावरी गांव पहुंचा दी गई। ऊमाऊ राव के पोत्र का नाम अलगरा था जो सुरक्षित बच गया था शेखावाटी क्षेत्र में स्थित है,गुड़ा,पोंख,जहाज, गिरावड़ी, मावंडा ,टीबाबसई,गणेश्वर ,गांवड़ी ,
बागोरा ,तोंदा,खेड़,जिलो आदि गांव छापोला गोत्रिय मीणों द्वारा बसाए गए हैं।
शेखावाटी और तोरावटी दोनों ही क्षेत्रों के मीणे अपनी दिलेरी संघर्षशीलता और जुझारू पन के लिए प्रसिद्ध रहे हैं कच्छाओं द्वारा छल कपट से सता च्युत करने के पश्चात भी इस क्षेत्र के मीणाओं ने उस समय के शासकों को कभी चैन से नहीं बैठने दिया और हमेशा उन्हें नाको चने चबाते रहें।
मीनों के अंतहीन संघर्ष से तंग आकर अनंत: उस समय के शासकों ने उनसे समझौता करना पड़ा।
इस व्यावहारिक समझौते के कारण मीणा समाज के लोगों की आर्थिक समस्या हल हो गई। इस क्षेत्र के गांवों की सुरक्षा व्यवस्था मीणा समाज के सरदारों को सौंप दी गई ।
जिसके बदले में उन्हें गांव से एक प्रकार की लाग यानीकि टैक्स वसूल करने का अधिकार मिल गया। अंग्रेजी राज्य की स्थापना तक यह व्यवस्था निर्बाध रूप से चलती रही थी और इस क्षेत्र के मीणा शांतिपूर्वक जीवन यापन करते रहे थे।
21 जून 1818 को जयपुर राज्य और अंग्रेजो के बीच सरंक्षण संधि हो गई जयपुर के तत्कालीन महाराजा ने अपने अधीन ठिकानेदारों जागीरदारों को उक्त संधि से परिचित कराया और उस पर उनके हस्ताक्षर करवाए। शेखावाटी के कुछ शेखावत सरदार इस संधि से नाखुश थे उन्होंने दबाव में आकर हस्ताक्षर किए थे तोरावटी के पाटन ठिकाने के राव अथवा उनके किसी प्रतिनिधि ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए फिर भी सामान्यत: यह संधि सभी ठिकानेदारों पर लागू मानी गई इस संधि पर हस्ताक्षर न करने वाले पाटन ठिकाने को सन् 1835 में जयपुर राज्य के मार्फत पहले अंग्रेजों का करद राज्य बनाया गया । तथा तत्पश्चात सन् 1837 में सीधे जयपुर के अधीन कर दिया गया
जयपुर राज्य की अंग्रेजों से संधि हो जाने के बाद अंग्रेजों ने राज्य के कामों में दखल देना शुरू कर दिया धीरे-धीरे वे अपने समर्थकों को राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर बैठाने लगे प्रशासन में अंग्रेजों की इस दखलअंदाजी को लेकर सियासत के जागीरदारों में असंतोष पैदा होने लगा अंग्रेज विरोधी सामंतो द्वारा भड़काए जाने पर मीणा सरदारों ने महसूस किया कि देर सबेर संधि का प्रभाव उन पर भी पड़ेगा ही । अतः उन्होंने अंग्रेज विरोधी सामंतों की सलाह के अनुसार अंग्रेज समर्थक जागीरदारों के क्षेत्र में लूटमार डाकाजनी आदि विरोधी गतिविधियां करना शुरू कर दी तथा उनके क्षेत्र की फसलें नष्ट कर देते थे उनके क्षेत्र में लूटमार करते थे और वहां से जो कुछ मिलता था उसको उठा ले जाते थे जो उनका पेट पालन पोषण करने के काम आता था,अंग्रेज विरोधी सामंतों का खुला समर्थन मिलता रहा था ।
उन्हें अपने गुप्त शरण स्थलों में शरण देते थे।
नीम का थाना क्षेत्र में तो समाज ने अपने खुद के स्थल बना रखे थे।धाहड़ा डालकर मीणा समाज के ताकतवर लोग उसमें एक हिस्सा कुछ उस क्षेत्र के जागीरदार को देते थे जो उन्हें शरण देता था और शेष भाग आपस में बांट कर उसमें कुछ हिस्सा गरीबों की मदद के लिए रखते थे
व सन् 1831 में कर्नल लॉकेट ने लिखा है ,साथ ही यह भी कहना होगा कि तोरावाटी के मीणा जो टैक्स के रूप में रुपया वसूल करते थे। उसमें से राव साहब पाटन भी अपना हिस्सा लेते थे।
जयपुर रियासत मैं शेखावाटी का सीमा क्षेत्र व्यापारिक मार्ग के लिए महत्वपूर्ण था यह सीमा बीकानेर और जोधपुर राज्य से मिलती थी ।इसी क्षेत्र में अवस्था का मतलब था तीनों राज्यों में अव्यवस्था ,कर्नल लॉकेट की रिपोर्ट पर नसीराबाद छावनी तोपखाना और घुड़सवार सैनिकों सहित ब्रिटिश सेना की एक ब्रिगेड भेजी गई ताकि शांति और व्यवस्था इस क्षेत्र में अंग्रेज सरकार की ओर से प्रभावशाली तरीके से बनाई जा सके तथा इसी के साथ कर्नल लाकेट ने झुंझुनू क्षेत्र को मुख्य मानते हुए यहां झुंझुनू ब्रिगेड की स्थापना की तथा इसका क्षेत्र स्थान झुंझुनू रखा गया आज भी उस जगह को फॉरेस्ट गंज के नाम से जाना जाता है।
इस ब्रिगेड की स्थापना के साथ ही इसका खर्चा भी निश्चित किया गया जिसमें इसका खर्चा उस समय ₹73500 का था जिसमें ₹22000 का अर्थ बार बीकानेर राज्य पर और ₹51500 का भार शेखावाटी के सरदारों पर डाला गया ।
ब्रिटिश ब्रिगेड जहां लूटपाट होती थी वहां कार्यवाही करती थी ।इस कार्रवाई के रूप में अन्य सरदारों के गठजोड़ किए गए क्योंकि वे लोग इन महलों में जो लूटपाट करते थे यूं कहो कि अपना टेक्स वसूल करते थे ।
फल स्वरुप शेखावाटी ब्रिगेड का विरोध होता रहा सन् 1843 में यह ब्रिगेड हटा दी गई और इसकी जगह पैदल सिपाहियों की एक रेजीमेंट रख दी गई इसका भी खर्चा सरकार स्वयं वहन करती थी ।जयपुर राज्य में शांति और व्यवस्था के नाम पर राजमाता के समर्थक सामंतों को कुचलने के लिए शेखावाटी और तोरा वाटी पर आक्रमण किया गया इससे सैनिक अभियान के खर्चे की वसूली के लिए सांभर झील तथा जिले को ब्रिटिश सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया सन् 1835 में शेखावाटी और तोरा वाटी पर अंग्रेजों के आक्रमण का कारण वस्तुतः मीनों की विद्रोही गतिविधियां थी ।
जिन्हें राजमाता समर्थक सामंतों ने समर्थन दे रखा था मीणा लोग अंग्रेज समर्थकों को ही लूटते थे और अंग्रेज समर्थक सामंतों के क्षेत्र में ही अशांति तथा अव्यवस्था पैदा करते थे।
लगातार———
नोट:-
इन लेखों को विस्तृत रूप से पढ़ने के लिए
“”” शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी नामक पुस्तक का अध्ययन कीजिए””
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर