अंक- 28 में आप सभी महानुभावों का हार्दिक अभिनन्दन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा “बागड़ी” जागीरदार भाग-10

कप्तान साहब व्यक्तित्व के धनी
जयपुर शहर की सुरक्षा के लिए जब राजा जयसिंह ने सन 1727 में इसकी स्थापना कि उस समय पूरे क्षेत्र को चारों तरफ से दीवार से घेरा गया था तथा शहर के सात दरवाजों के माध्यम से ही शहर में आना जाना होता था तथा इन सात दरवाजों पर तैनात सभी दरबारियों पर निगरानी का जिम्मा सन् 1902 में कप्तान रघुनाथ सिंह जी के जिम्मे था यानिकि संपूर्ण शहर के रक्षा विभाग राजा माधोसिंह जी ने गोपनीय रूप से कप्तान रघुनाथ सिंह वीर योद्धा को ही सौंप रखा था ।मत्स्य प्रदेश की मीणा जनजाति सदा से ही स्वतंत्रता प्रेमी रही थी मीणा जाति का जयपुर रियासत के शासन में महत्वपूर्ण स्थान रहा था राजकोष एवं महलों ,शहर, स्थाई चौकियों से राज्य की सुरक्षा का उत्तरदायित्व मीणा जाति पर था
राज्य में नगर व राज्य के ग्रामों की सुरक्षा का भार भी मीणा सरदारों पर ही था। इसको हम रक्षा मंत्री का भी दर्जा दे सकते हैं क्योंकि शहर में प्रवेश के लिए इन्हीं सातों दरवाजों से आना जाना होता था ।यह महाराजा माधोसिंह जी के काफी नजदीक थे तथा कई बड़े-बड़े मामलों की मुलाकात के लिए अन्य बड़े सरदारों को जब महाराजा से मिलना होता था तो कप्तान रघुनाथ सिंह जी उसमें मध्यस्थता की भूमिका निभाते थे। तथा महाराज से उनकी मुलाकात कराते थे सभी तरह से व्यक्तित्व के धनी थे। रियासत की ओर से उनको एक पालकी भी मिली हुई थी जिसमें 4 आदमी बैठ सकते थे और कोई 12 मेहरे या कहार उठाकर उसको ले जाते थे। इस पालकी में हाथी दांत और चांदी के पत्रों की चड़ाई चढ़ी हुई थी यह महाराजा माधो सिंह जी की ओर से उनको सप्रेम भेंट में मिली हुई थी।
रघुनाथ जी उम्र के अंतिम पड़ाव तक जयपुर रियासत के अधिन अपनी बुद्धिमता का उपयोग करते हुए इस रियासत में अपनी भूमिका निभाई तथा परिवारजनो व जनश्रुतियों के अनुसार 91वर्ष की उम्र में वयोवृद्ध अवस्था होने से अपनी अंतिम सांस सन 1936 में स्वर्ग सिधार गए व्यक्तित्व और अपनी बुद्धि शारीरिक बल निष्ठा के कारण रघुनाथ जी अपने पीछे अपनी यादों को छोड़कर इस दुनिया से चले गए जो प्रत्येक परिस्थिति में हर समस्या को हल कर लेते थे तथा जिन के बड़े-बड़े महाराजा भी कायल थे ऐसे व्यक्तित्व के धनी वीर योद्धा रघुनाथ कप्तान थे।
उनकी द्वितीय पत्नी गुलाब बाई भी उनके नौ वर्ष पश्चात सन 1945 में स्वर्ग सिधार गई थी

लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर

अंक 27- में आप सभी महानुभावों का हार्दिक अभिनंदन। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा “बागड़ी” जागीरदार जयपुर भाग-9

असाधारण शारीरिक बलिष्ठ–
जागीरदार वीर योद्धा कप्तान रघुनाथ सिंह अपने शरीर की बलिष्ठा के कारण काफी प्रसिद्ध थे और असाधारण ताकत के धनी थे। उनका शारीरिक गठन बलिष्ठ था ।प्रामाणिक था।जिसका कोई सानी नहीं था। हमेशा शारीरिक व्यायाम करना तथा अपने शरीर को प्रकृति मय रखना यह उनकी खासियत थी तथा अपनी सवारी के लिए स्वयं एक घोड़ा रखते थे जिसका नाम रामप्रताप था तथा कहीं दूर का सफर करना होता था तो कप्तान रघुनाथ सिंह जागीरदार साहब इसी घोड़े से आते जाते थे ।बताया जाता है कि स्वयं घोड़े पर बैठे बैठे ही अपना व्यायाम शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कर लेते थे।रघुनाथ जी के रिहायशी क्षेत्र ब्रह्मपुरी में बरगद के दो भारी पेड़ थे ।
कप्तान साहब कई बार बरगद के पेड़ के नीचे से जब निकलते थे तो घोड़े के ऊपर से बरगद के पेड़ की डाल को पकड़कर अपने पैरों की ऐसी आंटी (जकड़ )लगाते थे कि घोड़े सहित उस डाल के साथ जमीन से ऊपर उठ जाते थे यानिकि अपने पैरों की ताकत से घोड़े को भी ऊंचा उठा लेते थे ।अब इसी से हम अंदाजा लगा सकते हैं कि उन में कितनी ताकत थी ।जो घोड़ा उनको लेकर दौड़ता था उसी घोड़े को अपने पैरों से ऊपर उठा लेना बहुत ही अजूबे की बात है।
लगातार–…………
लेखक तारा चंद मीणा “चीता” कंचनपुर सीकर

अंक- 26 में आप सभी महानुभावों का हार्दिक अभिनन्दन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा “बागड़ी” जागीरदार जयपुर भाग- 8

इंग्लैंड के पहलवान को मात देना:-
सन 1902 में राजा माधो सिंह जी द्वितीय अपने एक विशिष्ट 125 सदस्यों के साथ रघुनाथ सिंह को भी इंग्लैंड ले जाने के लिए तैयार किया गया वैसे भी कप्तान रघुनाथ सिंह को महाराज माधो सिंह जी वैसे भी सैनिक दृष्टि से कप्तान साहब को साथ रखते थे और वायसराय ने भी उनको आमंत्रित किया था। इस दल के द्वारा ब्रिटिश सरकार के वहां पहुंचकर अपने राज्य की बहुत सी योजनाओं के बारे में चर्चा करना था। जिसके लिए एक पूरा जहाज ही राजा साहब ने रिजर्व करवाया था। (राजा माधो सिंह जी भी कप्तान साहब के हम उम्र ही थे राजा साहब का जन्म 29 अगस्त सन् 1861 में हुआ था और पहले इनका नाम कायम सिंह था ।) इन्होंने भी काफी परेशानियों भुगतने के उपरांत राजा पदवी को 19 सितंबर 1880 को जयपुर के रियासत पर अपना आसन ग्रहण किया था।राजा माधो सिंह अपने 125 सदस्य दल के साथ राजकीय कार्य हेतु इंग्लैंड को सन उन्नीस सौ दो में लंदन पहुंच जाते हैं ।लंदन में वायसराय से मिलकर एक जगह रुकते हैं। जब लार्ड कर्जन को यह पता चल जाता है कि मत्स्य प्रदेश से जयपुर रियासत के पहलवान रघुनाथ भी इस दल के साथ आए हुए हैं ।
उन्होंने अपने मन-ही मन पहले ही निश्चय किया था कि मैं मेरे देश में हमारे नामी पहलवान लंदन के ओराज व मत्स्य प्रदेश के पहलवान रघुनाथ से कुश्ती जरूर करवाऊंगा ।
उन्होंने अपनी मन की इच्छा को पूर्ण होते देखकर 1 दिन कुश्ती का दंगल तैयार करवाते हैं तथा अपने पहलवान ओराज और रघुनाथ कप्तान पहलवान को आमंत्रित करते हैं। दोनों पहलवानों की कुश्तियां शुरू होती है दोनों ने आपस में दांव पर दाव लगा कर दोनों जोर आजमाइश करते हैं तथा एक दूसरे को परास्त करने का प्रयास करते हैं‌ परंतु मीणा सरदार मत्स्य प्रदेश जयपुर रियासत के नामी पहलवान रघुनाथ कप्तान कुछ देर तो उस पहलवान को सीखने के लिए इधर उधर करते रहते हैं।
परंतु कुछ ही समय में अपने दांव पेच ऐसे चलाते हैं कि उसको हाथों में उठा कर कंधे के ऊपर डाल कर मैदान में चारों तरफ घूमाते हैं तथा घुमाते- घुमाते दोनों हाथों से उसकी ऐसी चकरी बनाते हैं कि देखने वाले दंग रह जाते हैं तथा मैदान के बाहर गेंद की तरह फेंक देते हैं जैसे कोई छोटी सी गेंद को फेंका हो।यह दृश्य देखकर दर्शकों की भीड़ ने तालियों की गड़गड़ाहट से मत्स्य प्रदेश के नामी पहलवान रघुनाथ की जय जय कार का उद्घोष किया। इनामों की बौछार लगती है और मत्स्य प्रदेश जयपुर रियासत का नाम रोशन हो जाता है ।
जब माधोसिंह यहां से अपने देश लौटे तो मत्स्यप्रदेश भारत देश जयपुर रियासत में वापस आते हैं तो वहां से रेल लाइन का प्रस्ताव लेकर राजा साहब जयपुर से सवाईमाधोपुर के बीच में 1903 में रेल लाइन का बिछाने का काम शुरू करवाते हैं।
लगातार……..
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर

अंक 25 में आप सभी महानुभावों का हार्दिक अभिनन्दन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा “बागड़ी” जागीरदार जयपुर भाग-7

जागीर प्रदान करने के साथ ही ब्रम्हपुरी में बंगला आवंटन किया।
पहलवान रघुनाथ सिंह के द्वारा शेर को परास्त करने के उपरांत जनता के जोश को देखकर मर्जीदास खवास बाला बख्स काफी डर रहे थे तथा अपनी ओछी हरकत पर पश्चाताप भी कर रहे थे तथा सोच रहे थे कि कप्तान साहब अब मुझे माफ नहीं करेंगे । इस तरह की मन में बातें सोच कर वहां से खिसक लिए परंतु कप्तान साहब ने इस बहादुरी कारनामे के उपरांत मन ही- मन उस दुष्ट व्यक्ति को माफ करते हुए अपने आप पर गर्व किया तथा अपनी अंतरात्मा में एक शेरनी का दूध पिया हुआ समझते हुए महान योद्धा का यह खिताब प्राप्त किया कि किस तरह से एक सेवक ने अपनी दुष्टता से कप्तान साहब को राजमहलों से हटाने की अपनी योजना बनाई थी । परंतु प्रकृति और सूर्य देव के आशीर्वाद से सब कुछ उल्टा हुआ तथा इस बहादुरी भरे कारनामे को देखकर राजा माधो सिंहजी ने रघुनाथ सिंह जी को बांदीकुई के पास किशनपुरा गांव की जागीर प्रदान की जिसमें लगभग 21सौ बीघा जमीन बख्शीश कर पुरस्कृत किया ।यह जमीन सात घोड़ों की जागीर के बराबर मानी जाती थी।
इसके साथ ही सिरोपाव ,एक खांडा और कुछ मोहरे भी इनायत की तथा सेना के मुख्य पद पर उनको पदस्थापित किया ।उस समय मीणा सरदार कप्तान की आयु 37 वर्ष की थी। प्रत्यक्षदर्शी शिव बख्स करोल भी उस प्रदर्शन को देखने में शामिल थे तथा कई सरदार जागीरदार भी वहां दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे ।भानपुर कला गांव से जयपुर महानगर के किले की चारदीवारी के भीतर ब्रह्मपुरी क्षेत्र में तीन मंजिला एक बंगला जो शहर के प्रसिद्ध दरवाजा सम्राट के पास में स्थित था उसको आवंटित किया । जहां उन्होंने इसके अलावा 2 मंजिली हवेली भी बनाई।यह तीन मंजिल आवासीय हवेली बहुत ही शानदार बनी हुई थी जिसको देखते हुए उस समय की हकूमत टपक पड़ती है और आज भी देखने में बहुत ही सुंदर है । हवेली के पीछे बहुत ही सुंदर बगीचा था जिसमें तरह-तरह के फलों के वृक्ष थे तथा आसपास में काफी जमीन थी । ब्रह्मपुरी में यह स्थान मीनों का मोहल्ला के नाम से जाना जाता था और एक प्रसिद्ध जगह थी, बाग बगीचे व फुलवारी से आच्छादित बगीचाआज दिनांक तक कप्तान रघुनाथ सिंह जी की याद को ताजा करता है। इसी के साथ ही चांदी का रथ और सहायक प्रदान किए। किशनपुरा में आज भी इनके वंशज उनके द्वारा निर्मित छोटे से महल में रह रहे हैं जो कप्तान साहब की याद को ताजा करता हैं तथा सैकड़ों बीघा जमीन थी वह आज भी एक छोटे टुकड़े के रूप में उनके वंशजों के पास लगभग 15, 20 बीघा जमीन शेष रही है तथा आजादी के बाद ब्रह्मपुरी वाला बंगला परिस्थितियों के कारण किसी राजपूत समाज के व्यक्ति ने इसको खरीद लिया तथा आज उसमें राजपूत परिवार इस बंगले में निवास कर रहा है ।उसी के आसपास रघुनाथ जी कप्तान के परिवार के लोग ब्रह्मपुरी में रह रहे हैं। जिसमें रघुनाथ जी के छोटे भाई जोता राम जिनकी शादी गांव बास्को के सोनाराम जी जारवाल की पुत्री पारा के साथ हुई पारा के संतान के रूप में गोविंद शरण जी हुए गोविंद शरण जी की शादी अमसर शाहपुरा के छोटू राम झरवाल की पुत्री जानकी के साथ संपन्न हुई जिनके भैरूसहायजी पैदा हुए। भैरूसहाय जी की दो शादियां हुई जिसमें प्रथम पत्नी बिंजा नौगाडा की पुत्री नानगी से हुआ तथा द्वितीय पत्नी पोखरका वास के सेडू रामजी छोलक की बेटी सजना के साथ संपन्न हुआ। प्रथम पत्नी से रामस्वरूप और रामधन तथा द्वितीय पत्नी से रामशरण जी हुए जिनके सभी परिवार के सदस्य आज ब्रह्मपुरी में निवास कर रहे हैं इसी परिवार में रामसरण जी की पत्नी गायत्री देवी राजस्थान पुलिस में हेड कांस्टेबल के रूप में सेवा दे रही है।
लगातार……..
लेखक तारा चंद्र मीणा चीता कंचनपुर सीकर

अंक 24 में आप सभी महानुभावों हार्दिक अभिनंदन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा “बागड़ी” जागीरदार जयपुर भाग-6

वीर योद्धा रघुनाथ को शेर के साथ दंगल माढने के लिए उचित समय दिया गया तथा आमेर के पास में रामसागर तालाब के पास जगह उचित जगह जानकर वहां वीर योद्धा मीणा सरदार व जंगल के राजा शेर की कुश्ती का ऐलान किया गया। इस महा दंगल को देखने के लिए बहुत से लोग आसपास के वहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे महान योद्धा पहलवान रघुनाथ सिंह और शेर के साथ युद्ध का आयोजन निश्चित समय पर किया गया। युद्ध के मैदान में बहुत बड़े पिंजरे में शिकारियों द्वारा एक शेर को बंद करके लाया गया तथा प्रदर्शन स्थल पर पिंजरा रखा गया जिसमें शेर था
हजारों लोगों की भीड़ इस नजारे को अपनी आंखों में समा लेना चाहती थी कि आज रघुनाथ मीणा के अंतिम दर्शन कर लें ऐसे योद्धा वीर कभी-कभी जन्म लेते हैं ।
माधो सिंह को सूचना दी गई कि मैदान (दंगल )मांड दिया गया है। राजा सहाब से निवेदन किया कि आप अपने कर कमलों से दंगल की शुरुआत कराएं तथा इस महान दृश्य को देखकर स्वयं उस महान बलशाली पहलवान को ताकत का जोश दिलाएं।
यह दृश्य बाला बक्स भी देख रहा था तथा सुनकर बहुत ही खुश हो रहा था कि आज मेरे विरोधी का पत्ता साफ हो जाएगा ।
महाराज माधो सिंह को संपूर्ण तैयारी का समाचार मिलता है तो वहां ब्रिटिश वायसराय लार्ड कर्जन भी आए हुए थे राजा जी ने उनको भी कहा कि चलो हमारे देश में ऐसे महान योद्धा पहलवान रहते हैं जो शेरों के साथ कुश्ती लड़ते हैं आप भी उनकी कुश्ती का थोड़ा नजारा देखिएगा वायसराय ने जब इस बात को सुना तो बहुत ही अचंभित हुए तथा इस दृश्य को देखने के लिए राजा साहब के साथ हो लिए तत्कालीन वायसराय तथा राजा साहब एक मचान पर ऊंचाई पर आकर अपने आसन को ग्रहण किया तथा उस कुश्ती के लिए अपने टीम प्रभारी को ऐलान किया कि शेर और हमारे पहलवान रघुनाथ कप्तान की कुश्ती का ऐलान करें,उनको दंगल में उतारा जाए चारों तरफ की भीड़ इस आवाज को सुनी तो उनकीआंखों में आंसू भर आए।भीड़ मन ही मन अपने आंसुओं के घूंट को पी रही थी। सभी लोग सोच रहे थे कि आज हमारे वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा का अंत होने वाला है परंतु कर भी क्या सकते थे ।
राजा का आदेश था इसलिए सभी दर्शक मंत्रमुग्ध होकर आत्मा को कसोसकर इस दृश्य को देखने के लिए लालायित हो रहे थे।
जब मैदान में शेर का पिंजरा आ चुका था इधर से महान मीणा सरदार को शेर के पिंजरे के लिए मैदान में उतारा जाता है ।
यह शेर अपने जोशीले बदन, गठीले शरीर के साथ मैदान में उतरता है चारों तरफ मीणा सरदार की जय का उद्घोष हो रहा था मत्स्यप्रदेश के उस वीर की आंखों में खून खोल रहा था कि मैं इस शेर के पिंजरे में शेर से भिड़ने के लिए जा रहा हूं।इसी दरमियान भीड़ में से लोगों की आवाज आ रही थी एक शेर दूसरे शेर से भिड़ने के लिए जा रहे हैं ।
उधर से मैदान में जब शेर को पिंजरे में लाया गया इधर से कप्तान साहब अपने फौजी लिबास में बख्तर और हाथों में दस्ताने पहनकर शेर का मुकाबला करने के लिए अपनी मां को स्मरण करते हुए सूर्य भगवान को याद करते हुए अपनी उर्जा को सूर्य के समान समझते हुए शेर के पिंजरे में उतर जाते हैं।
भूखा शेर टूट कर रघुनाथ के ऊपर अपना पंजा मारता है परंतु मीणा सरदार उससे पहले ही संभल जाता है तथा शेर से कहीं भी कम नहीं था जो आखेट के समय शिकार करते समय उसने कई चितों, शेरों भालूओं को भी पछाड़ा था । वह अपने जोश के साथ इस तरह शेर पर झपटा की शेर ने अपना जबड़ा खोला और कप्तान रघुनाथ सिंह को पकड़ने के लिए फैलाया तुरंत समय की नजाकता को देखते हुए रघुनाथ सिंह ने शेर के जबड़े को इस तरह पकड़ा कि ऊपर का जबड़ा ऊपर और नीचे का नीचे ।
अपने पैर के नीचे उसका पैर दबा कर शेर के जबड़े के दो टुकड़े कर दिए।
इस दृश्य को महाराजा माधो सिंह के साथ में तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन देख रहे थे ।सभी की आंखों में खुशी के आंसू बह रहे थे तथा उधर आग लगाने वाला बाला बख्स इस दृश्य को देखकर वहां से दुम दबाकर भागने के लिए मजबूर हो रहा था तथा अपनी बात पर पश्चाताप कर रहा था कि अब मुझे मीना सरदार छोड़ेगा नहीं ?
बहादुर रघुनाथ सिंह ने शेर को एक ही झटके में उसकी गर्दन को मरोड़ कर सीधा मौत के आगोश में पहुंचा दिया इस तरह से रघुनाथ ने अपनी बहादुरी का परिचय दिया तथा स्वयं महाराजा और लॉर्ड कर्जन ने बहादुर को अपने गले से लगाया तथा इनामों की बौछार लगा दी ।
यह घटना सन् 1902 में गठित हुई थी जिस समय कप्तान रघुनाथ की उम्र 37 वर्ष थी तथा वायसराय ने ऐसे महान पहलवान को अपने देश आने का निमंत्रण दिया।

यह थे रघुनाथ कप्तान महान योद्धा जिन्होंने अपनी वीरता का शानदार परिचय दिया। इस बहादुरी के लिए पुरस्कार स्वरूप उनको जागीर प्रदान की।

लगातार……………

लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर

अंक 23- में आप सभी महानुभावों का हार्दिक अभिनन्दन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा “बागड़ी” जागीरदार जयपुर भाग-5

कप्तान रघुनाथ सिंह मीणा की शेर के साथ दंगल (कुश्ती)।
महाराज माधोसिंह जी कप्तान रघुनाथ पर इतना विश्वास करने लग गए थे कि जहां भी जाते थे उनको साथ रखते थे तथा बहुत से फैसले जो अंतरंग मन के होते थे। वह कप्तान साहब की सलाह मशवरा से करते थे। उनकी दिलेरी और वफादारी से इतने खुश हो चुके थे कि आखेट खेलने जाते तो विशेषकर कप्तान रघुनाथ सिंह जी को साथ लेकर जाते थे ।इस तरह की बातें महाराजा के खास सेवक बाला बख्स को नागवार गुजरी तथा वह रघुनाथ जी से ईर्ष्या रखने लग गया व मौके की तलाश में रहने लगे कि मैं कैसे भी रघुनाथ सिंह को महाराज श्री के पास से हटाकर इसकी दूरियां बनाऊं। इसके लिए समय-समय पर वह महाराज को कप्तान के खिलाफ कुछ न कुछ बहकाता रहता था ।एक दिन राजा साहब दरबार में अकेले ही बैठे थे तब बाला बख्स उनके पास जाकर रघुनाथजी को ठिकाने लगाने के लिए राजा साहब को उनके प्रति कान भरने लगा और कहा महाराज मैं आपको एक ऐसे यौद्धा के बारे में परिचय कराना चाहता हूं जो खूंखार से खूंखार शेर को भी पछाड़ सकता है यदि आप उस महान वीर योद्धा का नाम सुनेंगे तो आप के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे ऐसी बातें बाला बख्स सेवक, महाराज माधो सिंह जी से करने लगा। जब महाराज ने बाला बख्स को कहा कि बातें बनाने की जरूरत नहीं! बताओ ऐसा कौन योद्धा है?
जो शेर से भी भिड़ सकता है?
तब निवेदन करते हुए बाला बख्स कहता है महाराज आपके ही पास में आपके ही निजी और सहयोगी सलाहकार के रूप में कप्तान रघुनाथ सिंह जी हैं !
जो खूंखार से खूंखार शेर से भी कुश्ती लड़ कर उसको मात दे सकते हैं ।
जब यह बातें राजा माधो सिंह जी ने सुनी तो बड़े ही अचंभित हुए।
मन ही मन सोचने लगे कि ऐसा भी हो सकता है क्या?
इतनी ताकत कि जो शेर से भी भीड़ने की अपनी औकात रखता है ।
उस समय कप्तान रघुनाथ सिंह राजकीय कार्य से कहीं बाहर गए हुए थे राजा के मन में एक के बाद एक प्रश्न उसकी बहादुरी के प्रति आने लगे और उन्हें कप्तान साहब का इंतजार बेसब्री से करने लगे तथा अपने सेवक के माध्यम से कप्तान साहब को बुलाने का आदेश पारित करते है। कप्तान रघुनाथ सिंह के पास जब यह समाचार लेकर सेवक पहुंचता है कि राजा साहब ने आप को आमंत्रित किया है।
कप्तान साहब राजा के बुलावे पर तुरंत दरबार में हाजिर होते हैं तथा दुआ सलाम करके निवेदन करते हैं कि आपने मुझे याद किया आदेश कीजिए मेरे लिए क्या हुक्म है।
तब राजा ने कप्तान साहब से पूछा कि हमने सुना है कि आप इतने दिलदार और ताकतवर योद्धा हैं कि आप शेर के साथ कुश्ती लड़ सकते हैं तथा आपकी बहादुरी के सामने शेर की ताकत फीकी पड़ती है ।
इस तरह की बातें कप्तान साहब से कही जाती है।
जब कप्तान साहब यह बातें सुन रहे थे बड़े ही अचंभित हुए तथा इन शब्दों को सुनकर दंग रह गए ।
लेकिन बात को भापंते हुए कुछ ही क्षणों में ही सोच कर कहा हां महाराज क्यों नहीं?
यह तो मेरे बाएं हाथ का खेल है!
रघुनाथ कप्तान सिंह ने सोचा कि यदि मैं इनको मना करूंगा तो यह वैसे भी मुझे राज्य आदेश के अनुसार मेरे ऊपर क्रोधित हो जाएंगे तथा हो सकता है मुझे वैसे भी मरवा दें।
तो क्यों न मैं शेर के साथ युद्ध करके ही वीरता से शहीद होऊं।
इसके हाथों से सजा पाना मेरे लिए कलंक होगा।
जबकि शेर से मैं यदि युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त करता हूं तो एक योद्धा की मौत पाकर शहीद का दर्जा मुझे प्राप्त होगा ।
इसलिए मन ही मन कप्तान साहब ने सोचा और शेर से युद्ध करने के लिए तैयार हुए तथा सोच विचार कर मन ही मन उन्होंने हां कर दी और कहा कि महाराज आपका आदेश होगा उसी के अनुरूप में शेर से कुश्ती लड़ने के लिए तैयार हूं ।
क्या था राज्य में ढिंढोरा पिटवा दिया गया की हमारे राज्य के महान योद्धा कप्तान रघुनाथ सिंह मीणा शेर के साथ कुश्ती लड़ेंगे। इस तरह की योजना बनाकर आसपास के क्षेत्र में इसकी सूचना प्रसारित करा दी और उसके लिए दंगल की तैयारी सुनियोजित तरीके से कराई गई वहां खड़ा बाला बख्स मन ही मन अपनी योजना पर प्रसन्न चित्त हो रहा था तथा अपने विरोधी को ठिकाने लगाने के लिए उसकी योजना सफल होती नजर आ रही थी ।
परंतु पास में खड़े अन्य लोग काफी चिंतित हो गए कि जो काफी दिनों से बाला बख्स इसके पीछे पड़ा था ।
आज वह अपनी मंजिल को सफलता की ओर बढ़ते देख रहा है सभी के मन में बड़ा अफसोस भी था परंतु कर भी क्या सकते थे राजा राजा ही होता है ।
उसके सामने दूसरे का क्या जोर चले आदि बातें सोच कर सभी चिंतित हुए।
लगातार…………..
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर

अंक 22 में आप सभी महानुभावों का हार्दिक अभिनन्दन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा “बागड़ी” जागीरदार जयपुर भाग-4

सन 1902 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन अपनी भारत यात्रा पर मत्स्य प्रदेश की रियासत जयपुर में राजा माधो सिंह से मिलने के लिए जयपुर आए हुए थे ।उनके साथ में उनके अंगरक्षक के रूम में एक ब्रिटिश आर्मी अधिकारी भी साथ में था। जब राज महलों में वायसराय लार्ड कर्जन राजा माधो सिंह से मिलने के लिए आए, साथ में उनके ब्रिटिश आर्मी अधिकारी चल रहे थे । महल में प्रवेश करते समय मीणा सरदार रघुनाथ का मिलन हो जाता है तथा अपने लिबास के अंदर एक बहादुर योद्धा अपनी बहादुरी और वीरता भरे जोशीले बदन और शेर के समान ताकत रखने वाला गठन शरीर महल के अंदर राजा माधव सिंह के नजदीक ही खड़े थे। जब ब्रिटिश अधिकारी अंदर जाने लगा तो रघुनाथ सिंह जी ने भी उनसे हाथ मिलाने की चेष्टा की। ब्रिटिश सैन्य अधिकारी को अपनी भुजाओं पर गर्व था उन्होंने अपनी ताकत के बल से हाथ मिलाते समय रघुनाथ के हाथ को दबाना चाहा परंतु मीणा सरदार बुद्धि में श्रेष्ठ पहले ही समझ चुका था कि यह ब्रिटिश अधिकारी कुछ गड़बड़ी कर सकता है। तथा आभास हो गया था कि यह अपनी ताकत का उपयोग करेगा ज्यूं ही उन्होंने उनका हाथ मिलाया और ताकत आजमाने की कोशिश की, वैसे ही रघुनाथ जी ने इतनी ताकत से उनके हाथ की अंगुलियों को जकड़ के दबाया की उसकी अंगुलियों की नसे ही टूट गई और दर्द के मारे करहाने लगा । राजा माधोसिंह व लॉर्ड कर्जन ने जब यह दृश्य देखा तो थोड़ा मुस्कुराए और उसकी वीरता की प्रशंसा की तथा महाराज माधोसिंह ने उसकी बहादुरी के करतब को देखकर हमेशा अपने साथ सलाह मशवरा के रूप में रखने का निश्चय किया और समय-समय पर जो भी सलाह मशवरा सैन्य प्रक्रिया के तहत करने पड़ते थे । उसके लिए विचार विमर्श उनसे करते रहते थे।
इस बहादुरी के लिए महाराज माधव सिंह ने रघुनाथ जी को सेना में कप्तान की उपाधि से भी अलंकृत किया तथा एक सेना के भाग को उसके निर्देशन में काम करने का जिम्मा सौंपा। ब्रिटिश आर्मी अधिकारी की भुजाओं की ताकत आजमाने के लिए उनको महाराज माधोसिंह द्वितीय ने सवा किलो सोने का कड़ा भेंट स्वरूप प्रदान किया उसी के साथ उनको कई सम्मानों से नवाजा। मत्स्य प्रदेश के वीरों के लिए कहा भी गया है कि इनकी बहादुरी के सामने सभी प्रकार की बाधाएं तुच्छ हैं तथा यह कुल और समाज का नाम रोशन करते हैं और अपने वतन के लिए कुर्बानी को तैयार रहते हैं , जिसके लिए कवि ने बताया है
जल खारै सरपा जवां,डारण नहीं डंरत।
वसुधा भोगै वीर वे ,कुल में नाम करंत।।
लगातार…..
लेखक तारा चंद मीणा “चीता” कंचनपुर सीकर

अंक 21 में आप सभी महानुभावों का हार्दिक अभिनन्दन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा”बागड़ी” जागीरदार जयपुर भाग-3

रघुनाथ जी को उनके पिता ने सभी प्रकार की शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत शादी योग्य समझ कर गांव चावंडिया जिला दौसा के श्री सुखाराम झरवाल की पुत्री सगरी देवी के साथ इनको प्रणय सूत्र में बांधा तथा राजकार्यों में महाराजा माधो सिंह के साथ रहने के दौरान राजशाही रहन सहन से इनकी कार्य शैली में निखार आने लगा।
सगरी देवी के संतान के रूप में कप्तान रघुनाथ सिंह को सन् 1886 में एक पुत्री प्राप्त हुई जिसका नाम चंदन रखा
राजसी ठाठ बाट से चंदन बाईसा का लालन-पालन किया गया परंतु काफी समय निकलने के उपरांत भी अन्य संतान उत्पन्न नहीं होना रघुनाथ सिंह जी को काफी अखरा तथा उन्होंने दूसरी शादी करने का विचार किया और मीनावाला सिरसी जयपुर के लादूराम जी गोत्र बासणवाल की पुत्री फत्ती देवी के साथ इनका विवाह संपन्न हुआ। परंतु इनके भी कोई संतान पैदा नहीं हुई। चंदन भाई सा बड़ी होने पर शादी योग्य समझ कर रघुनाथ सिंह जी ने उसका संबंध सीकर जिले की तहसील श्रीमाधोपुर शहर में बालूराम जी पबड़ी के पुत्र राम प्रताप जी पबड़ी के साथ इनका विवाह किया।विवाह के समय रघुनाथ सिंह जी ने अपनी पुत्री को विदाई में रथ, सोने चांदी के बहुमूल्य आभूषण तथा अन्य दहेज में सामान दिया तथा कार्य करने के लिए उनको दासी के रूप में सहयोगनी भी दी। यह अपने आप में एक अनूठी परंपरा थी। श्रीमाधोपुर में चंदन बाईसा के दो पुत्र और दो पुत्री हुई जिसमें बड़े पुत्र रामकिशोर जी छोटा सौभाग जी व दो पुत्री रामचंद्री व रतन बाई थी।इनका भरा पूरा परिवार फला फूला था,चंदन बाइसा सन् 1970 में वृद्धावस्था के कारण स्वर्ग सिधार गई तथा राम प्रताप जी सन 1980 में 96 वर्ष की उम्र में स्वर्गवासी हो गए।आज इनके वंशज श्री माधोपुर में भागचंद जी ,राम नारायण जी, बाबूलाल जी, किशन लाल जी, रामअवतार जी और रामनिवास जी पबड़ी निवास कर रहे हैं।
लगातार………..

लेखक तारा चंद मीणा “चीता” कंचनपुर सीकर

अंक- 20 में आप सभी महानुभावों का हार्दिक अभिनन्दन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा बागड़ी जागीरदार जयपुर भाग 2

एक बार आमेर के पहलवानी दंगल में कुश्ती का दंगल हो रहा था और वहां राजा माधव सिंह जी को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। स्वयं महाराजा अपनी सेना के लिए योग्य जवान को ऐसे दंगलों को देखने के उपरांत चुनने की रूचि रखते थे।इसलिए इस दंगल को देखने की अधिक रूचि थी । यहां उचित स्थान पर अपना आसन ग्रहण करने के उपरांत महाराज श्री के आदेश से कुश्ती की शुरुआत का इंतजार ही था।
जब रघुनाथ जी के सामने बहुत ही ताकतवर पहलवान मैदान में उतरा चारों तरफ पहलवान की बहादुरी की प्रशंसा हो रही थी कि रघुनाथ सिंह इसके सामने कुछ भी नहीं है।
यह बहुत ताकतवर है और रघुनाथ सिंह को तुरंत परास्त कर देगा जब रघुनाथ सिंह से पहलवान से कुश्ती के दंगल में हाथ मिलाया और मंचासीन राजा माधव सिंह ने इशारे के माध्यम से कुश्ती की शुरुआत कराई पहलवानों के दांव पेंच चलते रहे जिसमें एक- दूसरे को पटकनी देने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे थे।
रघुनाथ जी की पहलवानी देखने योग्य थी लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट सभी दर्शकों के कानों में गूंज रही थी महाराजा माधव सिंह जी भी यह दृश्य देख रहे थे ।देखते -देखते ही रघुनाथ जी ने प्रतिद्वंदी पहलवान को ऐसी पटकनी मारी की पहलवान चित्त होकर परास्त हो गया ।चारों तरफ कुश्ती का दंगल पहलवान रघुनाथ जी के जयकारों से गूंजने लगा तथा राजा माधव सिंह अपने शुभचिंतकों के साथ इस दृश्य को देखकर बहुत ही अचंभित हुए तथा इस पहलवान को अपने साथ रखने के लिए उन्होंने अपने सलाहकारों को निर्देश दिया तथा इसी के साथ उन्होंने अपने रियासत के वरिष्ठ सलाहकारों से सलाह मशवरा करके रघुनाथ सिंह को अपने राज्य के नीति-निर्माताओं में शामिल करके हमेशा अपने साथ रखने लगे । अपने दल का मुख्य सदस्य समझकर उनसे हमेशा राज्य के हित में चर्चा करते रहते थे जैसे आजकल मोदी सरकार में सीधे ही संयुक्त सचिव बनाया जाकर उनको उस मंत्रालय की बागडोर सौंपी जा रही है ,उसी अनुरूप उनको रियासत की सुरक्षा की विशेष जिम्मेदारी सौंपी।
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निवेदक
लेखक तारा चंद मीणा “चीता” कंचनपुर सीकर

अंक -19 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा बागड़ी जागीरदार जयपुर भाग-1

कप्तान वीर रघुनाथ सिंह मीणा जागीरदार मत्स्य प्रदेश की पवित्र भूमि जिसको आमेर और चौमू के आसपास के क्षेत्र को राजाटी के नाम से जाना जाता था। इस रमणीक और वैभवशाली धरती जहां अरावली पर्वत श्रंखला की गोद में पसरा हुआ गांव भानपुर कला जो मांच नगरी( जमवा रामगढ़) के राजा मैदा सीहरा के अधीनस्थ आता था ।उसी में ठिकाना
भानपुर कला पहाड़ी क्षेत्र में अरावली की वादियों को सुशोभित करने वाला गांव है। जिस गांव में चित्रकारी सुसज्जित हवेलियां अपनी अलग पहचान रखती है।यह भूमि अच्छी पैदावार के लिए बहुत ही प्रसिद्ध थी।
यहां जयपुर रियासत का आधिपत्य था वैसे भी यह क्षेत्र आमेर और मांच नगरी के नजदीक होने से यहां के योद्धाओं की इन मीणा राजधानियों में काफी पहचान थी तथा यह क्षेत्र शुरू से ही मीणाओं के अधिनस्थ रहा था। यहां के अधिकतर क्षेत्र में मीणा लोगों का बाहुल्य है। इस भूमि पर मीणा समाज के महान वीर योद्धा बुद्धि में प्रवीण श्री रघुनाथ मीणा का जन्म पिता रणजीत सिंह गोत्र बागड़ी मीणा, माता नानी पुत्री श्री जवानजी ,गोत्र नाडला गांव खेड़ा की कोख से सन् 1865 में भानपुर कला तहसील मांचनगरी(जमवारामगढ़) में हुआ,
श्री रणजीत सिंह के दो पुत्र हुए जिनमें बड़े रघुनाथ जी तथा छोटे जोता रामजी दोनों का लालन पालन बहुत ही ढंग से किया गया। बालकों की परवरिश माता पिता के द्वारा अच्छी की गई तथा पिता ने अपने दोनों पुत्रों को सभी तरह की शिक्षा देने में कोई कमी नहीं छोड़ी । रणजीत सिंह जी अपने जयपुर रियासत के रिसालदार (सुबेदार) और इस क्षेत्र के चौकीदार थे तथा भानपुर कला के आसपास के क्षेत्र पर इनकी राजसत्ता थी। उस समय जयपुर रियासत के राजा रामसिंह द्वितीय का राज था जो सन् 1835 से 1880 तक रहा ।इनके कार्यकाल के दौरान इनको रिसालदार(सुबेदार) की जिम्मेदारी दी थी। इस क्षेत्र को सत्ताइसा के नाम से भी जाना जाता था।
जो इस प्रकार हैं:-
चंदवाजी, पीलवा, कोलवा, भोजपुरा, घासीपुरा, नांगल, गठवाड़ी, अरनिया, कंवरपुरा, भुरहानपुर कला ,श्यामपुरा, बुड्ढा हरवाड़ा, देव हरवाड़ा, भूरी डूंगरी, सुंदरपुरा ,लखेर, मांजीपुरा , गठवाड़ा,छारसा,राजपरा,चिताणु, कुशलपुरा,चांदास,बोबाड़ी,सिरोही,
रतनपुरा और जुगलपुरा
इन गांवों की जिम्मेदारी भी इन्हीं के कन्धों पर थी।उस जमाने में सुबेदार पदवी बहुत बड़ी होती थी जिसकी जिम्मेदारी बहुत अधिक होती थी।
रणजीत सिंह जी अपने दोनों पुत्रों को उच्च शिक्षा के साथ साथ अस्त शस्त्र कला में निपुण किया तथा बालक अपने पिता की तरह वीरता और बहादुरी के साथ अन्य लोगों से हटकर काम करने लगा। इसमें ही
रघुनाथजी पहाड़ी इलाकों के जंगलों में जाना। आखेट खेलना तथा युद्ध कला में निपुण होना ,भाला चलाना ,तलवारबाजी सीखना आदि कला भी अपने साथियों के साथ सीखते रहे तथा पिता का आशीर्वाद भी इनके साथ था ।पिता ने भी अपनी योग्यता के अनुसार बालक रघुनाथ को अपनी कला में निपुण करने की सम्पूर्ण कोशिश की। बालक रघुनाथ जंगल में जंगली जानवरों से आखेट (शिकार) करना खूंखार शेर ,चीता, भालू ,जंगली सूअरों आदि का शिकार करना तथा अपनी धनुर्विद्या में पारंगत होने के साथ साथ भाला चलाने में इतने पूर्ण हो चुके थे कि जिस शिकार को लक्ष्य बनाकर अपने भाले को जिधर फेंक दिया उधर शिकार का बचना मुश्किल था और शिकार उसके चुंगल में फंस ही जाती थी। गठिले, शानदार,रौबदार और जोशीले बदन के उनके पुत्र रघुनाथ युवावस्था में अपने पिता के साथ जयपुर दरबार में उनके साथ कभी-कभी चले जाते थे उनके चेहरे से आभा ऐसे चमकती थी जैसे सूर्य की चमक उनके चेहरे पर उतर आई हो दरबार में बालक का जाना तथा रियासत के मालिक माधव सिंह के पास में आने जाने से राज दरबार में उनकी घनिष्ठता बढ़ती गई।
बालक रघुनाथ अपनी वीरता, पहलवानी, बहादुरी बुद्धि चातुर्य और बल के कारण आसपास के क्षेत्र में बहुत ही प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय हो गए, तत्कालीन समय में रणजीत सिंह जी जयपुर के ब्रह्मपुरी क्षेत्र से लेकर मनोहरपुर शाहपुरा तक जाने-माने चर्चित सत्ताइसा गांवों के चौकीदार के नाम से अपनी पहचान रखते थे। वीर रघुनाथ पहलवानी में अपना दमखम जहां मौका मिलता था वहां दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ते और कुश्ती के दंगलों में पहुंच जाते थे ।इस तरह वीर रघुनाथ का राजा माधव सिंह जी के संपर्क में आना यह एक बहादुरी और जोशीला वाकइया है।
निवेदक
लेखक तारा चंद मीणा “चीता” कंचनपुर सीकर