कप्तान वीर रघुनाथ सिंह मीणा जागीरदार मत्स्य प्रदेश की पवित्र भूमि जिसको आमेर और चौमू के आसपास के क्षेत्र को राजाटी के नाम से जाना जाता था। इस रमणीक और वैभवशाली धरती जहां अरावली पर्वत श्रंखला की गोद में पसरा हुआ गांव भानपुर कला जो मांच नगरी( जमवा रामगढ़) के राजा मैदा सीहरा के अधीनस्थ आता था ।उसी में ठिकाना
भानपुर कला पहाड़ी क्षेत्र में अरावली की वादियों को सुशोभित करने वाला गांव है। जिस गांव में चित्रकारी सुसज्जित हवेलियां अपनी अलग पहचान रखती है।यह भूमि अच्छी पैदावार के लिए बहुत ही प्रसिद्ध थी।
यहां जयपुर रियासत का आधिपत्य था वैसे भी यह क्षेत्र आमेर और मांच नगरी के नजदीक होने से यहां के योद्धाओं की इन मीणा राजधानियों में काफी पहचान थी तथा यह क्षेत्र शुरू से ही मीणाओं के अधिनस्थ रहा था। यहां के अधिकतर क्षेत्र में मीणा लोगों का बाहुल्य है। इस भूमि पर मीणा समाज के महान वीर योद्धा बुद्धि में प्रवीण श्री रघुनाथ मीणा का जन्म पिता रणजीत सिंह गोत्र बागड़ी मीणा, माता नानी पुत्री श्री जवानजी ,गोत्र नाडला गांव खेड़ा की कोख से सन् 1865 में भानपुर कला तहसील मांचनगरी(जमवारामगढ़) में हुआ,
श्री रणजीत सिंह के दो पुत्र हुए जिनमें बड़े रघुनाथ जी तथा छोटे जोता रामजी दोनों का लालन पालन बहुत ही ढंग से किया गया। बालकों की परवरिश माता पिता के द्वारा अच्छी की गई तथा पिता ने अपने दोनों पुत्रों को सभी तरह की शिक्षा देने में कोई कमी नहीं छोड़ी । रणजीत सिंह जी अपने जयपुर रियासत के रिसालदार (सुबेदार) और इस क्षेत्र के चौकीदार थे तथा भानपुर कला के आसपास के क्षेत्र पर इनकी राजसत्ता थी। उस समय जयपुर रियासत के राजा रामसिंह द्वितीय का राज था जो सन् 1835 से 1880 तक रहा ।इनके कार्यकाल के दौरान इनको रिसालदार(सुबेदार) की जिम्मेदारी दी थी। इस क्षेत्र को सत्ताइसा के नाम से भी जाना जाता था।
जो इस प्रकार हैं:-
चंदवाजी, पीलवा, कोलवा, भोजपुरा, घासीपुरा, नांगल, गठवाड़ी, अरनिया, कंवरपुरा, भुरहानपुर कला ,श्यामपुरा, बुड्ढा हरवाड़ा, देव हरवाड़ा, भूरी डूंगरी, सुंदरपुरा ,लखेर, मांजीपुरा , गठवाड़ा,छारसा,राजपरा,चिताणु, कुशलपुरा,चांदास,बोबाड़ी,सिरोही,
रतनपुरा और जुगलपुरा
इन गांवों की जिम्मेदारी भी इन्हीं के कन्धों पर थी।उस जमाने में सुबेदार पदवी बहुत बड़ी होती थी जिसकी जिम्मेदारी बहुत अधिक होती थी।
रणजीत सिंह जी अपने दोनों पुत्रों को उच्च शिक्षा के साथ साथ अस्त शस्त्र कला में निपुण किया तथा बालक अपने पिता की तरह वीरता और बहादुरी के साथ अन्य लोगों से हटकर काम करने लगा। इसमें ही
रघुनाथजी पहाड़ी इलाकों के जंगलों में जाना। आखेट खेलना तथा युद्ध कला में निपुण होना ,भाला चलाना ,तलवारबाजी सीखना आदि कला भी अपने साथियों के साथ सीखते रहे तथा पिता का आशीर्वाद भी इनके साथ था ।पिता ने भी अपनी योग्यता के अनुसार बालक रघुनाथ को अपनी कला में निपुण करने की सम्पूर्ण कोशिश की। बालक रघुनाथ जंगल में जंगली जानवरों से आखेट (शिकार) करना खूंखार शेर ,चीता, भालू ,जंगली सूअरों आदि का शिकार करना तथा अपनी धनुर्विद्या में पारंगत होने के साथ साथ भाला चलाने में इतने पूर्ण हो चुके थे कि जिस शिकार को लक्ष्य बनाकर अपने भाले को जिधर फेंक दिया उधर शिकार का बचना मुश्किल था और शिकार उसके चुंगल में फंस ही जाती थी। गठिले, शानदार,रौबदार और जोशीले बदन के उनके पुत्र रघुनाथ युवावस्था में अपने पिता के साथ जयपुर दरबार में उनके साथ कभी-कभी चले जाते थे उनके चेहरे से आभा ऐसे चमकती थी जैसे सूर्य की चमक उनके चेहरे पर उतर आई हो दरबार में बालक का जाना तथा रियासत के मालिक माधव सिंह के पास में आने जाने से राज दरबार में उनकी घनिष्ठता बढ़ती गई।
बालक रघुनाथ अपनी वीरता, पहलवानी, बहादुरी बुद्धि चातुर्य और बल के कारण आसपास के क्षेत्र में बहुत ही प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय हो गए, तत्कालीन समय में रणजीत सिंह जी जयपुर के ब्रह्मपुरी क्षेत्र से लेकर मनोहरपुर शाहपुरा तक जाने-माने चर्चित सत्ताइसा गांवों के चौकीदार के नाम से अपनी पहचान रखते थे। वीर रघुनाथ पहलवानी में अपना दमखम जहां मौका मिलता था वहां दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ते और कुश्ती के दंगलों में पहुंच जाते थे ।इस तरह वीर रघुनाथ का राजा माधव सिंह जी के संपर्क में आना यह एक बहादुरी और जोशीला वाकइया है।
निवेदक
लेखक तारा चंद मीणा “चीता” कंचनपुर सीकर