रघुनाथ जी को उनके पिता ने सभी प्रकार की शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत शादी योग्य समझ कर गांव चावंडिया जिला दौसा के श्री सुखाराम झरवाल की पुत्री सगरी देवी के साथ इनको प्रणय सूत्र में बांधा तथा राजकार्यों में महाराजा माधो सिंह के साथ रहने के दौरान राजशाही रहन सहन से इनकी कार्य शैली में निखार आने लगा। लेखक तारा चंद मीणा “चीता” कंचनपुर सीकर
सगरी देवी के संतान के रूप में कप्तान रघुनाथ सिंह को सन् 1886 में एक पुत्री प्राप्त हुई जिसका नाम चंदन रखा
राजसी ठाठ बाट से चंदन बाईसा का लालन-पालन किया गया परंतु काफी समय निकलने के उपरांत भी अन्य संतान उत्पन्न नहीं होना रघुनाथ सिंह जी को काफी अखरा तथा उन्होंने दूसरी शादी करने का विचार किया और मीनावाला सिरसी जयपुर के लादूराम जी गोत्र बासणवाल की पुत्री फत्ती देवी के साथ इनका विवाह संपन्न हुआ। परंतु इनके भी कोई संतान पैदा नहीं हुई। चंदन भाई सा बड़ी होने पर शादी योग्य समझ कर रघुनाथ सिंह जी ने उसका संबंध सीकर जिले की तहसील श्रीमाधोपुर शहर में बालूराम जी पबड़ी के पुत्र राम प्रताप जी पबड़ी के साथ इनका विवाह किया।विवाह के समय रघुनाथ सिंह जी ने अपनी पुत्री को विदाई में रथ, सोने चांदी के बहुमूल्य आभूषण तथा अन्य दहेज में सामान दिया तथा कार्य करने के लिए उनको दासी के रूप में सहयोगनी भी दी। यह अपने आप में एक अनूठी परंपरा थी। श्रीमाधोपुर में चंदन बाईसा के दो पुत्र और दो पुत्री हुई जिसमें बड़े पुत्र रामकिशोर जी छोटा सौभाग जी व दो पुत्री रामचंद्री व रतन बाई थी।इनका भरा पूरा परिवार फला फूला था,चंदन बाइसा सन् 1970 में वृद्धावस्था के कारण स्वर्ग सिधार गई तथा राम प्रताप जी सन 1980 में 96 वर्ष की उम्र में स्वर्गवासी हो गए।आज इनके वंशज श्री माधोपुर में भागचंद जी ,राम नारायण जी, बाबूलाल जी, किशन लाल जी, रामअवतार जी और रामनिवास जी पबड़ी निवास कर रहे हैं।
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अंक 21 में आप सभी महानुभावों का हार्दिक अभिनन्दन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा”बागड़ी” जागीरदार जयपुर भाग-3
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