अंक- 26 में आप सभी महानुभावों का हार्दिक अभिनन्दन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा “बागड़ी” जागीरदार जयपुर भाग- 8

इंग्लैंड के पहलवान को मात देना:-
सन 1902 में राजा माधो सिंह जी द्वितीय अपने एक विशिष्ट 125 सदस्यों के साथ रघुनाथ सिंह को भी इंग्लैंड ले जाने के लिए तैयार किया गया वैसे भी कप्तान रघुनाथ सिंह को महाराज माधो सिंह जी वैसे भी सैनिक दृष्टि से कप्तान साहब को साथ रखते थे और वायसराय ने भी उनको आमंत्रित किया था। इस दल के द्वारा ब्रिटिश सरकार के वहां पहुंचकर अपने राज्य की बहुत सी योजनाओं के बारे में चर्चा करना था। जिसके लिए एक पूरा जहाज ही राजा साहब ने रिजर्व करवाया था। (राजा माधो सिंह जी भी कप्तान साहब के हम उम्र ही थे राजा साहब का जन्म 29 अगस्त सन् 1861 में हुआ था और पहले इनका नाम कायम सिंह था ।) इन्होंने भी काफी परेशानियों भुगतने के उपरांत राजा पदवी को 19 सितंबर 1880 को जयपुर के रियासत पर अपना आसन ग्रहण किया था।राजा माधो सिंह अपने 125 सदस्य दल के साथ राजकीय कार्य हेतु इंग्लैंड को सन उन्नीस सौ दो में लंदन पहुंच जाते हैं ।लंदन में वायसराय से मिलकर एक जगह रुकते हैं। जब लार्ड कर्जन को यह पता चल जाता है कि मत्स्य प्रदेश से जयपुर रियासत के पहलवान रघुनाथ भी इस दल के साथ आए हुए हैं ।
उन्होंने अपने मन-ही मन पहले ही निश्चय किया था कि मैं मेरे देश में हमारे नामी पहलवान लंदन के ओराज व मत्स्य प्रदेश के पहलवान रघुनाथ से कुश्ती जरूर करवाऊंगा ।
उन्होंने अपनी मन की इच्छा को पूर्ण होते देखकर 1 दिन कुश्ती का दंगल तैयार करवाते हैं तथा अपने पहलवान ओराज और रघुनाथ कप्तान पहलवान को आमंत्रित करते हैं। दोनों पहलवानों की कुश्तियां शुरू होती है दोनों ने आपस में दांव पर दाव लगा कर दोनों जोर आजमाइश करते हैं तथा एक दूसरे को परास्त करने का प्रयास करते हैं‌ परंतु मीणा सरदार मत्स्य प्रदेश जयपुर रियासत के नामी पहलवान रघुनाथ कप्तान कुछ देर तो उस पहलवान को सीखने के लिए इधर उधर करते रहते हैं।
परंतु कुछ ही समय में अपने दांव पेच ऐसे चलाते हैं कि उसको हाथों में उठा कर कंधे के ऊपर डाल कर मैदान में चारों तरफ घूमाते हैं तथा घुमाते- घुमाते दोनों हाथों से उसकी ऐसी चकरी बनाते हैं कि देखने वाले दंग रह जाते हैं तथा मैदान के बाहर गेंद की तरह फेंक देते हैं जैसे कोई छोटी सी गेंद को फेंका हो।यह दृश्य देखकर दर्शकों की भीड़ ने तालियों की गड़गड़ाहट से मत्स्य प्रदेश के नामी पहलवान रघुनाथ की जय जय कार का उद्घोष किया। इनामों की बौछार लगती है और मत्स्य प्रदेश जयपुर रियासत का नाम रोशन हो जाता है ।
जब माधोसिंह यहां से अपने देश लौटे तो मत्स्यप्रदेश भारत देश जयपुर रियासत में वापस आते हैं तो वहां से रेल लाइन का प्रस्ताव लेकर राजा साहब जयपुर से सवाईमाधोपुर के बीच में 1903 में रेल लाइन का बिछाने का काम शुरू करवाते हैं।
लगातार……..
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर

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