अंक 01 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनन्दन है। शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवता राम मीणा, श्री करना राम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत ,श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट सीकर भाग -1

अंक 01 में आप सभी पाठकों हार्दिक अभिनन्दन है।

शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी सांवता राम, करना राम मीणा भाग -1
राजस्थान का इतिहास लोक कथाओं में बहुत पुराना है पिछले सैकड़ों वर्षों से यहां के गायकार अपने-अपने वाद्य यंत्रों व तरह-तरह की लोक गाथाओं के माध्यम से गांव गांव ढाणी ढाणी में जाकर यहां की संस्कृति वीरता ,बहादुरी, दान शीलता और वीर प्रसूता आदि की गाथाएं बहुत ही सुंदर ढंग से लोगों के मध्य पहुंचाते थे। जिससे जनता उनके द्वारा गाए जाने वाली गाथा को बड़े प्रसन्न चित्त मन से सुनती थी इस तरह की गाथाओं को अधिकतर भोपा नाम की जाति के लोग गाया करते थे जिनका सहयोग उनकी धर्मपत्नी भोपी देती थी इस तरह इन जातियों के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इस तरह की गाथा गाया करते थे
लोककथा का मतलब है जनमानस से जुड़ी हुई घटना जिसमें सुनने वाले व्यक्ति में वीर ,रसात्मक, पौराणिक श्रृगारात्मक ,प्रेम कथात्मक ,रोमांचक और निर्वेदात्मक आदि का संचार होता था राजस्थान की लोक कथाओं में मुख्य रूप से गोगा जी, पाबूजी ,तेजाजी, बगड़ावत डूंगजी, जवाहर जी राजपूत, सांवताराम मीणा, करनाराम मीणा लोठू जाट जैसी एक वीरत्वमुल्क चरित्र के अनुरूप होने से राजस्थान के यहां के जनमानस के हृदय में बैठी हुई लोककथा हैं ।यह लोककथा शेखावाटी अंचल के सरदारों की जिन्होंने अपनी बहादुरी से यहां की जनता का दिल जीता और शेखावाटी के वीर बहादुर खूंखार जनता के चहेते अंग्रेज सरकार के दुश्मन जिनमें महान योद्धा सांवताराम राम मीणा कानाराम मीणा ,जवाहर जी ,डूगजी राजपूत और लोठू जाट 19वीं शताब्दी के जननायक रहे हैं इनकी लोकप्रियता के किस्से लोगों की जुबान पर रच बस गए उनकी वीरता के किस्से चारों दिशाओं पहुंचाने के लिए भोपा जाति अपने वाद्य यंत्र के माध्यम से गाकर पहुंचाते थे। जहां तक मैं मानता हूं किसी भी इतिहास के लिए सामग्री एकत्रित करना बहुत ही अधिक परिश्रम, समय और व्ययसाध्य कार्य है।
विषय वस्तु इतिहास संकलन में कितनी दिक्कतें आती हैं उसके लिए कहा भी गया है
जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई ।।
जैसा कि इतिहास लिखने वाला महसूस करता है कि उसको कितनी दिक्कतें आती हैं जिस तरह जिसके पैर में यदि कोई पीड़ा ना हो ,या कोई दर्द नहीं हो ,या पैरों में बिवाइयां फट जाती हैं उसी तरह इतिहास लिखने में तथ्य संग्रह करने में कितना कष्ट उठाना पड़ता है कितना धन, समय और श्रम लगता है यह वही जानता है जो इतिहास निकालता है या लिखता है।
आप पाठकों के लिए बहुत ही वीरता पूर्ण गाथा लेकर आ रहे हैं हमारी संस्था का एक दुसाध्य कार्य है जो एक टीम के माध्यम से किया जा रहा है तो आज शेखावाटी के महान वीर योद्धाओं का इतिहास आप सभी पाठकों की मांग के अनुसार आप सबके लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।
शेखावाटी क्षेत्र में सन् 1818 से लेकर 1857 स्वतंत्रता की प्रथम क्रांति के महान जननायकों का यह इतिहास अपने आप में एक गौरवान्वित इतिहास था ।यदि इस इतिहास को पढ़ाया जाता तो बालक अपने आप को बहुत ही गौरवान्वित महसूस करते, तो आइए आज के इतिहास की शुरुआत करते हैं। जिसमें शेखावाटी के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सांवताराम मीणा, करनाराम मीणा ,डूंगजी, जवाहर जी राजपूत और महान ताकतवर लोठू जाट आजादी की क्रांति के अग्रदूत बने और अंग्रेजों व उनके पीछ लघु देसी रियासतों के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाया जो अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति तक जारी रहा। इनका तेज धावक ऊंटों का काफिला शेखावाटी क्षेत्र में बिना रोक-टोक विचरण करता रहा ,गांव के बाहर रेत के टीलों पर इनके रात्रि विश्राम की अनेक गांव के बड़े बुजुर्गों से इनके किस्से चर्चा सुनने को मिलती है विदेशी शासन के अत्याचारों से संघर्षों के कारण यह अपने समय के महान जननायक बने और क्षेत्र की जनता का इनको भरपूर समर्थन मिलता रहा था इन सूरमाओं उनकी स्मृति में कवियों, भाट ,चारणों द्वारा रचित यशोगान ढाणी ढाणी गांव-गांव घर-घर इनके गौरव की गाथा को चारण भाट भोपा आदि गाकर वीर भावना का विरद सुनाते रहते थे तथा भोपा भोपी अपने वाद्ययंत्र रावण हत्था के द्वारा इनका यशोगान गाया करते थे,तब पुरुषों की भुजाएं भी फड़कने लग जाती थी जब इनकी वीरता पूर्ण कथा को लोगों के मुख के सामने गाया जाता था तो जोश भर जाता था जब उन वीरों की शेर की दहाड़ गुंजती होगी तब क्या गजब होता होगा आदि काल से जितने भी आज तक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने निस्वार्थ निष्काम भाव से जनहित के कार्य करवाए हैं चाहे कितना ही कठिनाई आई हो ,कुर्बानियां और प्राणों की आहुति देनी पड़ी हो ।
कारण चाहे कुछ भी रहे हो ।
आत्मसम्मान का हो या नारी के अपमान का हो!
चाहे स्वाभिमान का हो !
उसके लिए उन्होंने सिर कटा दिए मगर जुल्म अत्याचार अनाचार अन्याय और अनैतिकता के आगे कभी ये लोग लालच व सिर नहीं झुकाया।
ऐसे त्यागी तपस्वी बलिदानी सर्वस्व न्योछावर करने वाले महापुरुषों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में या शहीद दिवस स्मृति के रूप में मनाते तो कितना अच्छा होता ।
जिसका उद्देश्य वर्तमान जीवन जीने वाले जनमानस को भविष्य के लिए सही दिशा ,दीक्षा ,शिक्षा के परिणाम मिल सके जिससे सभी का कल्याण हो सकता है।
कई बार ऐसा होता है कि कुछ लोग कानून की नजर में अपराधी होते हैं लेकिन समाज व जन सामान्य के लिए वे आदरणीय होते हैं ऐसे व्यक्ति साधारण जनता के हितों के लिए शासन के खिलाफ खड़े होते हैं ।
देश की आजादी के लिए विदेशी सरकार के विरुद्ध बगावत करने वाले भी ऐसे ही लोग थे,
उनको उस समय के राजा महाराजा और अंग्रेज सरकार के नुमाइंदे उनको डाकू का नाम देकर बदनाम किया जबकि वह अमीर लोगों के आवश्यकता से अधिक धन को लूट कर गरीब जनता की मांग को पूरा करते थे तथा सामंत लोगों के जुल्मों के विरुद्ध आवाज उठाकर शस्त्र उठाने वाले वे लोग ऐसे थे जो कानून के हिसाब से डाकू या अपराधी थे परंतु गरीब लोगों में बहुत ही लोकप्रिय और आदरणीय थे उन्हीं में से सांवता राम मीणा ,करणा मीणा ,डूंगजी, जवाहर जी राजपूत और लोठू जाट नामक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने गरीबों की बहुत मदद की उनके दुख दर्द में काम आए सांवता राम मीणा और करणाराम मीणा दोनों भाई बड़े वीर थे ,वे जानते थे कि इतने बड़े तूफान अंग्रेजी सरकार के सामने वे नहीं टिक सकेंगे लेकिन फिर भी साहस बनाए रखा ,अंग्रेज सरकार ने भी उनको पकड़ने के लिए जासूस छोड रखे थे ,लेकिन उन्होंने कभी परवाह नहीं की मुगल साम्राज्य के पतन के उपरांत भारत में राजनीतिक गतिविधियों में मराठा शक्ति का उदय हुआ भारतीय संस्कृति एवं धरातल पर जब तक मुगल शासकों का राज रहा तब तक यहां अन्य किसी शासकों प्रवेश नहीं होने दिया परंतु धीरे-धीरे इनकी शक्ति कमजोर हो गई जिससे यहां कई शक्तिशाली शासक अपना आधिपत्य जमाने लगे जिसमें मुख्य रूप से मराठा शक्ति सबसे महत्वपूर्ण थी जो एक आंधी की तरह पूरे भारतवर्ष में छा गई मुगल साम्राज्य के प्रति जनता में बहुत क्रोध छा गया
था उनके रक्त पात से जनता दुखी हो गई थी उसमें राजस्थान के राजपूत शासकों के हालात बहुत ही खराब हो गए थे ,कई पीढ़ियों से यहां के रजवाड़े मुगलों के शोषण दमन से निसप्राण हो गए थे इस कारण राजपूत राजा आपसी फूट के कारण काफी कमजोर पड़ गए थे इसी समय मराठों का मुगलों के साथ युद्ध वह रजवाड़ों पर आक्रमण करके उनकी धन संपत्ति को लूटा जिससे रजवाड़ों को बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ा इसके लिए कहा भी गया था कि
कोढ़ में खाज उत्पन्न होना ।
लगातार—————-

लेखक तारा चन्द मीणा “चीता”
प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर