अंक – 8 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-8

डूंगर सिंह व जवाहर सिंह सरदार अपने सेनानायक सांवता राम मीणा से बोले कि सांवता राम आप घोड़ों को तो घास डाल दो और सभी ऊंटों पर आसन लगा दो तथा सभी सैनिकों को कह दो कि वह तैयार हो जाएं वे अपने अपने हथियार संभाल ले और घोड़ों और ऊंटों पर सवार होकर घाटवा गांव की तरफ अपने को चलना है जहां घाटा के पास में अंग्रेजों का सामान लादकर व्यापारियों द्वारा ले जाया जा रहा है जिनमें अनाज भरा हुआ है ज्यादातर उन में मूंग की बोरियां हैं,जो ऊंटों पर ले जाई जा रही हैं ।
जो रामगढ़ फतेहपुर सीकर होते हुए अजमेर पहुंचनी हैं इनको बीच रास्ते में हमें इन बोरियों को लूटना है तथा अपनी गरीब जनता जो किसान वर्ग भूखा है उसको बांटना है सावता राम और लोठू जाट ने भेष बदलकर रामगढ़ गांव की रेकी की जिसमें लोठू जाट ने बांस लिया व सांवताराम मीणा ने ढोलक ली तथा वे सीधे रामगढ़ शहर पहुंच गए शहर की सुंदरता देख सावताराम लोठू जाट की आंखें बड़ी बड़ी हवेलियों पर टिक गई और कहा वाह क्या चित्रकला है, कितनी सुंदर वास्तुकला है सेठो का माल ऊंटों, घोड़ों पर बाहर से आता है, कई सेठों का माल बाहर जाता दोनों खेल तमाशा करते-करते एक बड़े सेठ की हवेली के सामने जा पहुंचे सेठ के महल में सोने से बनी पनिहारी एक रानी की मूर्ति भी दिखाई दे पैसे मांगने के बहाने लोठू जाट मुनीमजी के पास गया सेठ मुनीम के बातचीत चल रही थी जो अंग्रेज सरकार को अजमेर भेजे जाने वाले माल को लेकर हो रही थी रामगढ़ में ही विश्राम किया तथा माल अजमेर भेजने की तारीख व राशि की संपूर्ण जानकारी लेकर वापस अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गए तथा रामगढ़ के सेठों का भेद लेकर सांवताराम अपने साथी डूंगर सिंह के पास पहुंचे तथा सभी बातें बताई गई तथा सभी विद्रोही सरदारों की गुप्त मीटिंग बुलाई गई सांवता राम मीणा के दल ने नसीराबाद छावनी में लूट की मंडावा में धाड़ा मारकर अंग्रेजों की छावनी नसीराबाद को लूटने का इरादा किया और सावता राम मीणा व लोठू जाट को छावनी की खोज खबर लाने के लिए भेजा दोनों व्यक्ति गुजराती नटों का भेष धारण करके छावनी में गए सांवताराम ने वहां की खोज खबर ली और वापस आकर डूगजी को बताया भरी दोपहर में छावनी पर धावा बोल दिया मौके पर खड़े रक्षा सिपाहियों व अंग्रेज अफसरों को मारकर बहुत सा धन माल लूट लिया वहां से बारोटिया माल सामान लेकर पुष्कर जी के घाट पर आ गए और गरीबों चारण भाट और भोपों को खुले हाथ माल लुटा दिया। एक दिन सावता राम ने डूंगजी को उनकी जासूस के रूप में एक सूचना दी कि नसीराबाद छावनी में बड़े टके पैसे हैं उसे लूटना चाहिए।तो शीघ्रता करें बस अपने दल के साथ लेकर चल पड़े । छावनी के सैनिक उनका का सामना नहीं कर सके। सांवताराम के दल की जीत हो गई।सावता राम के तीर बाण ,लोठू की बंदूक के शिकार हो गए और जिनमें कई घायल हो गए इस घटना के बाद अंग्रेजों की शक्ति का मजाक उड़ाया जाने लगा तथा उनकी इज्जत पर कलंक सा लग गया।
सावता राम मीणा बड़े ही क्रोधित स्वभाव के साथ1 दिन जोश में आकर जवाहर सिंह जी को कहते हैं कि यह विदेशी अपना धन माल लूट लूट कर अपने देश को ले जा रहे हैं और इनका कोई प्रतिरोध नहीं कर रहा है हम लोग तलवार को हाथ में रखकर इसे क्यों लजा रहे हैं !फेंक दो इससे अपने नाजुक हाथों में चुड़ला धारण कर लो! इस सुकोमल देह को जनानी कपड़ों से सजा लो!
फिरगियों का अन्याय दिन-ब-दिन बढ़ रहा है ।
उनके अत्याचारों की कोई सीमा नहीं है और न ही हमारी सहनशक्ति का कोई अंत है।
पूरूषवहीन होकर हम सब चुपचाप सहते चले जा रहे हैं कुछ भी शर्म हो तो जहर खा कर मर जाओ!
तालाब में डूब मरो !
या गले में घागरा डालकर पुरुष कहलाने का अधिकार त्याग दो!
कहां गई वह तुम्हारी वीरता !
कहां लुप्त हो गई तुम्हारी वीरता!
शान आत्मसम्मान को भुला कर केवल टुकड़ों के मोहताज हो !
तुम किसी भी बहाने जीना चाहते हो!
धिकार है तुम्हें सरदारों वीरता का!
तुम सच्चाई के मार्ग से भ्रष्ट हो गए हो!
प्रतिष्ठा तुम्हारी मिट्टी में मिल गई है !
नष्ट हो गई है तुम्हारी बुद्धि!
इन विदेशियों को, देश की धरती से बाहर खदेड़ने के लिए केवल युद्ध ही एकमात्र समाधान है !
केसरिया बाना पहन लो !
कमर पर तलवार कस लो !
हाथों में बरछी और कटार थाम लो !
विदेशियों को खदेड़ने के लिए युद्ध होगा !
चंचल घोड़ों पर सवार हो जाओ !
घोड़ों और ऊंटों पर सवार होकर तुम्हें केवल अपने लक्ष्य को ही सामने देखना है !सामने विदेशी हैं सामने युद्ध है पीछे घर की ओर न झांकना और पिछे की ओर एक कदम भी नहीं हटना।चाहे कट कट कर रेत में मिल जाना !पर हार कर लौटने की दुर्भावना को कभी भी अपने मन में मत लाना।
सावता राम जवाहर जी से कहता है कि यह विदेशी हमें क्या गुलाम बनाकर रखेंगे मैं आपको बताऊं यह राजा महाराजा अपने साथ मिल जाए तो अच्छा होता ।परंतु उन्होंने तो औरतों के वेश धारण कर रखे हैं और सभी 1 तरह के ही हो गए हैं क्या सभी ने भांग पी ली।इन विदेशियों को बाहर निकालने के लिए पूरी ताकत लगानी पड़ेगी यदि हिंदू मुसलमान एक हो जाए तो यह अंग्रेज 1 दिन भी भारत में नहीं रूक पाएंगे ।देश की 36 कौमों को समझाना पड़ेगा कि यह फिरंगी आप सभी के दुश्मन हैं यह आपका माल लूट लूट कर सात समुद्र पार अपने देश को ले जा रहे हैं ।आपको जो भी सामान चाहिएगा वह वहीं से खरीदना पड़ेगा !आप सभी देश के जवानों को एक झंडे के नीचे एकत्रित करो ।उसके बाद में जैसे यह समुद्र पार से आए थे उसी तरह वापस पहुंचा देंगे! इसलिए हमें विदेशियों की बड़ी बड़ी छावनियों पर धावा बोलकर उनको लूटना चाहिए! करनाराम मीणा अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते बोलता है कि राजाओं ने तो अपने शरीर पर औरतों के वेश धारण कर लिए हैं ।
सांची बात तो यह है कि राजाओं को तो राज से मोह है और राजसी ठाठ बाट चाहिए उनको फिर अंग्रेजों से क्या मतलब वे तो उनकी छाती पर चढते आ रहे हैं और तो और उनके सामने पलक पांवड़े बिछा रहे हैं बड़े शर्म की बात है!
लगातार—–

लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर श्रीमाधोपुर

अंक -7 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-7

सांवता राम मीणा का जन्म बटोट ग्राम में लगभग सन 1795 के आसपास हुआ था इनका बचपन का नाम सैलो था इनके पिता जी का नाम नाथूराम और माता का नाम श्रीमती हाला था।
बालक सांवता राम एकांत प्रिय क्रोधी स्वभाव और चिंतनशील प्रकृति के थे।
इनकी जीवनशैली इस प्रकार रही है इनका शारीरिक गठन बहुत चित्ताकर्षक था उन की आकृति बड़ी सुंदर थी उसके अंग प्रत्येक से बहादुरी वीरता टपकती थी ।उनका व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली था और उसको देखते ही हर कोई उनको महान योद्धा समझ लेता था, उनका सौंदर्य उनकी दाढ़ी मूछों के साथ-साथ उनके शारीरिक गठन में था उनका शारीरिक गठन बड़ा ही सुंदर था उनकी आकृति में सांसारिक बातें कम तथा राष्ट्रभक्ति अधिक थी, चेहरे और शारीरिक गठन से वह राजकीय गौरव के योग्य प्रतीत होते थे, हंसते समय आकृति विकृत हो जाती थी किंतु गंभीर मुद्रा में उसमें सुंदर स्वभाव तथा बड़प्पन स्पष्ट दृष्टिगोचर होता था। क्रोध की मुद्रा में उनकी आकृति अनुपम रूप धारण करती थी सावता राम का ललाट ऊंचा उसकी भुजाएं लंबी, उसका कद साढे छह फीट का था।दाढ़ी मूंछ काली थी सीना चौड़ा नाक का नथुना फैले हुए था,वह बहुत मोटा पतला था उसकी टांगे एकदम सीधी थी और लंबी थी जिससे उसको ऊंट की सवारी में बड़ी सहायता मिलती थी। उसका हाथ तथा उसकी भुजाएं लंबी थी उसकी आवाज बुलंद में प्रभावशाली थी, सांवताराम बिना विश्राम के घंटों परिश्रम कर सकता था ,वे अपने कार्य क्षेत्र में थकावट महसूस कभी नहीं करते थे लोठू जाट के साथ एक बार एक दिन में बटोट से नसीराबाद अपने ऊंट पर इतनी दूरी का सफर लगभग 200 किलोमीटर का तय लेते थे,वह अपने शारीरिक शक्ति के बल पर मस्त ऊंटो , घोड़ों को वशीभूत कर लेते थे उनका शरीर निरोग एवं स्वस्थ था वेशभूषा में ज्यादा लगाव नहीं रखते थे शरीर पर केवल कमर तक धोती पहनते थे शेष शरीर नग्न रखते थे, सिर पर भारी पगड़ी बांधते थे जो इतनी भारी होती थी कि दुश्मन सिर पर वार भी कर दे तो सिर को कोई नुकसान नहीं होता था और सिर व शरीर सुरक्षित बच जाते थे अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित रहते थे उनके कंधों पर सदा धनुष लटका रहता था हाथ में फरसा लिए रहते थे ।
सांवता राम मीणा कई भाषाओं के जानकार थे जिनमें मुख्य अंग्रेजी, गुजराती,हिंदी ,राजस्थानी ,मेवाती ,ब्रज ,शेखावाटी आदि जो इनको दुश्मन की पहचान करने में काम देती थी इन भाषाओं पर इनकी अच्छी पकड़ थी, स्वभाव से बहुत अच्छे थे सभी भाइयों में सबसे बड़ा होने की वजह से सभी के प्रति शालीनता रखते थे अपने मधुर संबंधों से जवाहर जी के दिल को छू लिया था जो इनको अपने साथ हमेशा रखते थे। हास्य विनोद प्रेमी थे उसमें दिल खोल कर भाग लेते थे । साधारण जनता के प्रति उसके विचार सराहनीय थे उनका नाम भी नहीं होता था ।वह बड़ा दयालु और कोमल स्वभाव के थे।
जब गरीब जनता की आंखों में भूख देखते थे तो उनको क्रोध उत्पन्न होता था।तब उनकी भूख मिटाने की कोशिश करते थे । परंतु कभी शांत हो जाता था। अपने संबंधियों से प्रेम करते थे और उनकी गलतियों को क्षमा कर देते थे।इनकी दिनचर्या बहुत ही अच्छी थी और व्यर्थ में अपना समय नहीं गंवाते थे ।अपना अधिकांश समय गरीब असहाय जनता की देखभाल में व्यतीत करते थे तथा शेष समय में भाषा ज्ञान ,लोक कला, नाटक कला आदि में खर्च करते थे जो इनके दूरदराज क्षेत्रों में अंग्रेजों की छावनी को लूट से लगान वसूल करने के काम आती थी,इनकी अभिरुचि जंगली शिकार तथा घोड़ों की सवारी करने में आनंद समझते थे । एक उच्च कोटि का उंट सवार थे, धनुष बाण से निशाना साधने वाले थे ऐसा बताया जाता है कि उनका निशाना अचूक था , मानसिक शक्ति उच्च कोटि की थी जैसा कि पहले बताया कि कई भाषाओं के जानकार कला संस्कृति में शिक्षित होने के साथ ही बुद्धिमान थे ।मानसिक विकास प्राप्त था जिसके आधार पर निर्णय कर लेते थे। उसको इतिहास सामाजिक न्याय दर्शन आदि वाद विवाद करने की निर्णय सकती थी ।उसका ज्ञान प्राप्त कर लेते थे बात भी कर लेते थे जवाब आसानी से देते थे उच्च कोटि के होते थे । दानवीर धार्मिक भक्ति में पूर्ण थे। तथा अपनी मां को देवी स्वरूप मानते थे और सबसे बड़ी उनकी भावना धार्मिक प्रवृत्ति की थी कि भूखे और गरीब लोगों की सहायता करते थे।सांवता राम मीणा एक उच्च कोटि के सेनानायक लड़ाई दहाड़ा डालना आदि विषमता भयंकर परिस्थितियों में तनिक भी विचलित नहीं होते थे ।वास्तव में उनको संघर्ष से प्रेम था , सांवता राम को संगठन से प्रेम था उसका संपूर्ण ज्ञान था। सांवतराम मीणा की न्याय प्रियता राजनीति निपुणता तथा नीतिमत्ता अद्वितीय थी। उसने अपने साथी जवाहर सिंह के साथ रहकर गरीब जनता का बहुत सहयोग किया जिसको आज भी भोपा व भाट गाते बजाते हैं अपने घर को त्याग कर गरीब जनता और देश के प्रति अपना संपूर्ण जीवन लगा देना इस प्रकार सांवता राम मीणा समस्त गुण होते हुए भी अपना जीवन विलासिता से दूर का देश हित ,तो गरीब जनता का भला चाहने वाला सांवता राम मीणा जीवन भर अविवाहित रहा और पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी जीवन का पालन किया कभी भी अपने ऊपर दाग लगने का मौका नहीं दिया ।स्पष्ट छवि स्पष्ट आचरण शुद्ध विचार से परिपूर्ण थे सांवताराम को लेकर शेखावाटी क्षेत्र में उच्च स्थान प्राप्त था उसकी गणना उसके गुणों तथा उसके कारण राजस्थान की प्रमुख स्वतंत्रता सेनानीयों में की जाती है। सर्वगुण संपन्न था उनकी जानकारी हेतु कई घटनाओं का वर्णन हम आपके सामने प्रस्तुत करेंगे सांवता राम मीणा कई भाषाओं की जानकारी रखते थे जो उनको रेकी करने में कोई परेशानी नहीं रहती थी ।आसपास की भाषाओं में भी बात कर लेते थे जिससे वहां के रहने वाले लोग उन पर शक की दृष्टि से नहीं देख सकते थे और वहां की पूरी जांच कर आते थे ।लगभग 9 भाषाओं के जानकार सावता राम मीणा अपने आप में एक पहचान होती थी जिनमें अंग्रेजी ,हिंदी ,उर्दू ,गुजराती, मेवाती, ढूंढाड़ी, राजस्थानी,ब्रज शेखावाटी बोलियां अच्छी तरह से बोले थे जो उनको जासूसी के लिए काम आती थी । आगरा का वर्णन इस प्रकार है
लोटियो जाट सावतो मीणो अकल बड़ो उस्ताद जी।
लांबा लांबा लिया बांसड़ा करे नटा रा भेस जी ।
ऊंची ऊंची पहर दोतड़ी किया नटा रा भेस जी।
डावी बगल में झेल ढोलकी माल हेरवाई जाए जी।
आडो आडो फिरै मेण को सिरै बजारां जाट जी।
हाटा बैठा दीठा बानिया वै जल भर्ती पनिहार जी ।
साहिब रे बंगले के आगे बांस दिया रोपायजी ।
नव लख झीझा बाज रया स खूब मांड्यो ख्याल जी ।
साहिब ने तो राजी करने बड़िया बंगला मांई जी।
देखें पुरबिया बंगला के माईलो माल जी ।
माल देरब तो खूब देखो अंग्रेज रे पास जी ।
सोने री पुतलियां देखी ,हीरा तणो व्यापार जी।
चवदै तो चपरासी देख्या, 15 चौकीदार जी।
नंगी तलवारा पैहरो लागे ,हवा बाग रै पास जी।
सांझ पड़े दिन हाथमेस लोटयो डेरा के मांय जी।
बड़कै बोले सुण डूंगसिंह जी कहो चौधरी बात जी।
तम तो गया था किले आगरे, कहो माल री बात जी।
क्या कहूं मेरे रावजी स ,न,कहयो ,न म्हासूं जाए जी ।
माल दरब तो खूब देखयो, अंग्रेज रे पास जी ।
सोने री पुतलियां देखी ,हीरा तणो व्यापार जी।
14 तो चपरासी देख्या 15 चौकीदार जी ।
आधी रैण पौर कै तड़के, दियो पागड़े पांव जी।
पोल भांग दरवाजा ,भाग्य भाग्य लाल किवाड़ जी।
राढा रीढो असौ मांडियो सैहर छावनी मांयजी।
मानवीय की मुंडी टूटी,बहे रगतां रा खालजी।
धरती माता असी बनी ,ने जाने खंडी गुलाल जी।
बड़ी छावनी लूट ली आदि ने दीवी जलाए जी।
नव गोरा नाक काटिया बंगला दीन्हा बाल जी।
साठ ऊंट माया सूं भरिया कपड़ा भरी कतार जी ।
बाल कतारा नीसरास ,बै पौखरजी न्हाबा जाए जी।
रात दिन रा करया मामला , गया पोखर जी घाट जी। पुष्करजी रै गुऊ घाट पर गहरा किया स्नानजी।
पोखरजी री लाल पैड़िया बैठा जाजम ढाल जी।
लगातार————
लेखक तारा चंद मीणा “चीता” कंचनपुर सीकर

नोट – आदरणीय पाठको विस्तार से पढ़ने के लिए शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी नामक पुस्तक का अध्ययन कीजिए।

अंक -6 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 6

परम आदरणीय पाठको आज हम उन महान योद्धाओं का परिचय पढ़ते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता के प्रथम आंदोलन का बिगुल बजाया वे कर्णधार कौन थे ,कैसे थे ,कहां के रहने वाले थे ,जिसमें सबसे पहले परिचय हम बड़े भाई सांवता राम मीणा व छोटे भाई करना राम मीणा का परिचय आपको प्रस्तुत कर रहे हैं जिन्होंने अपनी वाकपटुता से संपूर्ण शेखावाटी क्षेत्र का दिल से जीता था।
सांवता राम मीणा शेखावाटी के वीरवर श्री नाथू लाल जी के जेष्ठ पुत्र थे और करनाराम नाथूलाल जी के पांचवी संतान के रूप में तीसरे पुत्र के रूप में पैदा हुए थे इनकी माता जी का नाम श्रीमती हाला था, सांवता राम का जन्म लगभग सन् 1795 में तथा करना राम का जन्म लगभग सन् 1800 में गांव मंगलूना तहसील लक्ष्मणगढ़ जिला सीकर राजस्थान में हुआ था। टांई पाटोदा जिला झुंझुनू के नाथूराम जी मीणा जिनका कांगस गोत्र में जन्म हुआ, जब यह बड़े हुए तो जीवनोपार्जन हेतु आदिवासी घुमक्कड़ जीवन बिताते हुए अपना गुजर-बसर करते हुए रोजगार की तलाश में सन 1790 के आसपास ग्राम मंगलूना में पहुंचे यहां एक कुटिया बनाकर अपना आशियाना बनाया और पास के गांव बटोट पाटोदा के सामंत ठाकुर दलेल सिंह उदय सिंह से रोजगार के लिए संपर्क किया ठाकुर दलेल सिंह ने नाथूराम का सुदृढ़ शरीर तथा आचार विचार देकर अपनी जागीर में उनको चौकीदार के पद पर नियुक्त कर लिया। नाथूराम अपनी विश्वसनीयता कर्मठता त्याग की भावना से ठाकुर दलेल सिंह उदय सिंह के दिल को भा गए और उसको एक वफादार सेवक मानकर अपनी सेना में प्रतीत हो रहा था , सूर्य भगवान की कृपा से नाथूराम को पुत्र रतन 1795 के आसपास एक लड़का पैदा हुआ जिसका नाम सेलो रखा गया ,इसके उपरांत चार और
पुत्रों ने नाथूराम जी के घर में जन्म लिया जो भीगो, करणो, मान और कालू हुए सभी बालक समय के साथ-साथ बड़े होने लगे इनमें से सैलो और करना बालक जन्म से ही होनहार थे, माता श्रीमती हाला ने इनकी परवरिश बड़े ही लाड चाव से और संस्कार पूर्व की थी। यह बालक जैसे-जैसे आयु प्राप्त कर रहे थे इनकी बहादुरी, वीरता उद्दंडता आदि से माता रोज परिचित होती रहती थी ।अपने नन्हे नन्हे बच्चों के करतब देखकर माता काफी खुश होती थी ।उधर ठाकुर दलेल सिंह उदय सिंह के विजय सिंह जवाहर सिंह ज्ञान सिंह डूंगर सिंह व रामनाथ सिंह नामक बालक पल पढ़ रहे थे ।
नाथूराम का ठाकुरों के संपर्क में रहने से उसके बालक भी राजकुमारों के संपर्क में आने लग गए और धीरे-धीरे इन बालकों में घनिष्ठ दोस्ती हो गई बालक ज्यू ही बड़े हुए युवावस्था पार की तो जवाहर सिंह डूंगर सिंह और सैलो सांवता राम व करनाराम में घनिष्ठ मित्रता हो गई ।डूंगर सिंह बड़ा हुआ तो उनके ठिकाने की जागीर बटोट ठिकाने की शेखावाटी ब्रिगेड की घुड़सवार फौज का रिसालदार के पद पर 16 वर्ष की उम्र में नियुक्ति मिल गई थी ,शेखावाटी ब्रिगेड की स्थापना अंग्रेजों की संधि में रावराजा सीकर से थी,डूंगजी शेखावाटी ब्रिगेड में काम करते थे परंतु धीरे-धीरे अंग्रेजों की चाल समझ गए और अंग्रेजों की ब्रिगेड से 1834 में त्याग पत्र दे दिया और बागी बन गए क्योंकि अंग्रेजों की नीति फूट डालो राज करो की थी।इस तरह डूंगजी अपने गांव बठोठ में ही अपने भाई जवाहर सिंह को साथ लेकर अंग्रेजो के विरुद्ध एक दल की स्थापना की और उसी समय तक सांवता राम मीणा और करनाराम भी होशियार हो गए थे।
जब डूंगजी का इनसे संपर्क हुआ और दोनों भाइयों की बहादुरी, वीरता ,शारीरिक गठन, वाकपटुता ,चंचलता सर्वगुण संपन्न जानकर इनको साथ लेकर अंग्रेजो के खिलाफ एक दल का गठन किया ।
इस दल में सांखू लुहार शोभन सुनार और लौठू जाट आदि जवानों को भर्ती किया और अंग्रेजों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई दलों में अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी गई और आप दल के अग्रणी नेता बने सांवताराम, करना राम मीणा और इन्हीं के साथ लोठू जाट नाम का जवान था इन तीनों की बहादुरी देखकर डूंगर सिंह ने इनको अलग-अलग दलों का सरदार नियुक्त कर दिया। एक दल में डूंगर सिंह अपने साथ करना मीणा व लोठू जाट को रखने लगा दूसरे दल में जवार सिंह अपने साथ सांवता राम मीणा को सरदार बना कर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का अभियान छेड़ा इनका मुख्य लक्ष्य अमीरों का माल लूट कर गरीबों को बांटना तथा अंग्रेजों की छावनी को लूट कर हथियारों को अपने कब्जे में रखना तथा धन को असहाय गरीब जनता में बांट देना यही इनका प्रमुख उद्देश्य था। डूंगजी जवाहर जी अपने साथियों को साथ रखते थे किसी भी तरह की वारदात करते तो एक साथ करते थे इनके साथी वफादार थे कोई भाड़े के टट्टू नहीं थे वे देश की स्वतंत्रता के पहले सिपाही थे।
ये स्वतंत्रता आंदोलन की नींव के पत्थर थे।स्वतंत्रता की लड़ाई में मीणाओं की अहम भूमिका रही किंतु एक साजिश के तहत उनके नामों का उल्लेख इतिहास में कहीं नहीं मिलता है !
कहीं थोड़ा बहुत मिलता है तो नाम मात्र का!
भारत के बुद्धिजीवियों ने अपना वर्चस्व बनाने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में मीणाओं के सहयोग को इतिहास का हिस्सा नहीं बनने दिया !
इतना ही नहीं उन्होंने अंग्रेजों का द्वारा किए गए अत्याचारी कृत्यों को भी देशी राजाओं के नाम डाल कर उनको भी बदनाम करने और आम भारतीय में उनके प्रति घृणा का प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
“” अंग्रेज स्वयं लुटेरे थे जो भारत का धन लूट लूट कर इंग्लैंड ले जा रहे थे और कई देशी रियासतों के राजा उनके पिछलग्गू बने हुए थे अतः सांवता राम मीणा करनाराम मीणा,वीर लोठू जाट ,डूंगजी ,जवाहर जी राजपूत का दल अंग्रेजों के राज्य में अजमेर ,मेरवाड़ा ,जयपुर ,जोधपुर ,
पटियाला आदि क्षेत्रों में डाका डाल कर लाते और शेखावाटी क्षेत्र में गरीबों की पुत्रियों की शादी करने भात भरने और असहायों की मदद करने में खर्च करते थे।शेखावाटी में इन्होंने गरीबों को नहीं सताया इसलिए यहां की जनता ने इनको मान सम्मान दिया और सिर पर इनको ताज की तरह रखते थे उनका प्रारंभिक ध्येय,असामाजिक तत्व एवं सूदखोर सेठों में भय बिठाना था नैतिकता की रक्षा करने का उनका प्रयास था बड़े सेठों के यहां धहाडे डालते और उनकी काली करतूतों के लिए उन्हें फटकारते। उनके बही बस्ते अग्नि देवता को सौंप देते थे, जिससे गरीबों के ऊपर तकाजा न कर सकें ।यदि उनको धन से मोह होता और धन प्राप्ति के लिए डाके करते तो उनकी बहियां क्यों फूंकते ।
उनकी इस प्रकार की कार्रवाई से गरीब लोगों को राहत मिली व सांवताराम व करनाराम के पक्षधर बनने लगे जहां बात चलती वहां गांव के लोग इन महावीरों की भूरि भूरि प्रशंसा करते थे । सेठों को और बदमाश लोगों को आंख दिखाने लगे यद्यपि उनका ध्येय नैतिकता बनाए रखने का था लेकिन फिर भी अच्छे विचार रखते हुए उनसे कहीं भूल भी हुई होगी। मानव स्वभाव भूल करना है ।
भल्ले काम करने वाला कभी कभी गलत काम भी कर बैठता है ।जानबूझकर या अनजाने में लोठू जाट ,डूंगसिंह जवाहर सिंह इन के विश्वासपात्र साथी थे यह सदा उनके साथ रहते थे धीरे-धीरे उनके दल में दूसरे लोग भी शामिल होने लगे उनके ऊंट इतने तेज थे जब चलते थे तो हवा से बात करते थे उनके ऊंट चारा कम खाते थे घी ही पीते थे ।
चारा चराने के लिए समय भी उनके पास कहां था। धहाड़ो में लूटा हुआ धन प्राय गरीबों में बांट दिया करते थे। अपने लिए या अपने परिवार के लिए उनको फिक्र नहीं रहती थी ।
ऊंटों के लिए घी खरीदने के शिवाय उनका अन्य कोई खर्च नहीं था।
उनको आर्थिक सहयोग दूसरी ओर से मिलता था आसपास के जागीरदार गुप्त रूप से मदद करते थे।
शेखावाटी के जो सेठ अंग्रेजो के खिलाफ थे वे अपनी रक्षार्थ उन्हें धन भेजते रहते थे इससे उनका तथा उनके परिवार का खर्च चलता था उनके तीन भाई बिगो मान और कालू गांव में रहते थे और घर का काम देखते थे अपने भाइयों एवं गांव के लोगों से इनका अच्छा प्रेम था वे लोग इनको सलाह देते रहे थे तथा इन्हीं योजनाओं को गुप्त रखते थे जब इनको भूख लगती तो किसी गरीब के घर में घुसते और छाछ,राबड़ी, ठंडी ,बासी जैसी मिलती खा लेते थे।
गरीब लोग भी इनको खिला कर बहुत खुश होते थे तथा इनका आना-जाना गुप्त रखते थे ।पुलिस की कार्यवाही संबंधी समस्त सूचना इनको पहुंचा दिया करते थे ।अपने गांव के अतिरिक्त आसपास के गांवों के लोग भी इनके मधुर संबंध थे व अपनत्व रखते थे ।कभी-कभी गांव में आते तो उनसे मिलते उनके दुख-सुख की सुनते। अपनी क्षमता अनुसार उनका सहयोग करते इनका कोई खर्चीला शौक नहीं था सादगी पूर्वक रहते थे कपड़े भी साधारण किसान जैसे ही पहनते थे।
किसी पराई स्त्री की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखते थे जिस घर में जाते वहां की औरत को बाई या मां के नाम से संबोधित करते थे।
जिस घर में डाका मारते वहां कभी महिलाओं को परेशान नहीं किया करते थे इसके अतिरिक्त चोरी करने का मानस कभी नहीं रहा जो काम करते सामने होकर करते थे किसी के घर में सेंध नहीं लगाई ।सोते हुए लोगों के घर में कभी भी चोरी नहीं करी ।गोलियां हवा में चला कर घर में सोए लोगों को जगाकर लूटते थे ।सेठ लोग डर के मारे कांपने लगते और अपने धन में से कुछ हिस्सा निकाल कर इनको दे देते थे ।इन गुणों के कारण ही गरीब वर्ग में लोकप्रिय हुए दोनों भाई वीर होने के साथ-साथ सांहसी थे ।
यह भली-भांति जानते थे कि इतने बड़े तूफान के सामने नहीं टिक सकेंगे ।अंग्रेजों की फोज अधिक थी ।लेकिन फिर भी उनका जज्बा था ।लेकिन फिर भी साहस बनाए रखा अंग्रेज सरकार ने उनको पकड़ने के लिए जासूस छोड रखे थे ।लेकिन उन्होंने कभी परवाह नहीं की। स्वतंत्रता की लड़ाई में मीणाओं के बलिदान का सही मूल्यांकन नहीं हुआ जो होना चाहिए था सांवता राम मीणा करनाराम मीणा शेखावाटी के बड़े क्रांतिकारियों में से एक थे। जिन्होंने अंग्रेजों के खजाने को लूटा और गरीबों में बांटा उन्होंने अंग्रेजों को कभी चैन से नहीं बैठने दिया ।अंग्रेजों के विरुद्ध लोगों के हौसले बुलंद रखने में मदद की ।
लगातार——–

विस्तार से पढ़ने के लिए शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी नामक पुस्तक का अध्ययन करें।
लेखक तारा चंद मीणा “चीता” प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर

अंक -5 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 5

इन स्वतंत्रता प्रेमियों की गतिविधियों पर नियंत्रण पाने के लिए ही शेखावाटी और तोरावाटी पर आक्रमण किया जाता था, इनके सुरक्षा स्थलों को अंग्रेजी सरकार व देसी रियासतों के ठिकानेदारों द्वारा नष्ट कर दिया जाता था ।
सन 1834 के समय तोरावटी की समस्या महाराज बन्ने सिंह के शासनकाल में अलवर राज्य के तोरावटी के मीणा सरदारों के लिए अंग्रेज सरकार के आदेशों का पालन नहीं करना और वहां की फसल को टैक्स के रूप में ले जाना जिससे वहां का राजस्व वहां के क्षेत्रीय रियासतों के ठेकेदारों के पास जमा ना होना।
इसलिए अंग्रेज सरकार ने इन स्वतंत्रता प्रेमियों को डकैत घोषित कर दिया तथा इनके ऊपर फसल चुराने तथा कई तरह के इल्जाम लगाने शुरू कर दिए ,अंग्रेज सरकार के आदेशानुसार राव राजा अलवर ने तोरावाटी में दो रिसाला घुड़सवार सैनिक सहायता भेजी, जिसने तोरावटी में मीनों की इस लगान वसूली करने की तरीके को डकैती नाम देकर समाप्त करने के लिए शांति व्यवस्था कायम करने का जिम्मा अपने ऊपर लिया ।
4 जून 1835 को कर्नल एल्विन तथा उसके सहायक मार्टिन ब्लैक पर जयपुर में घातक हमला हुआ जिसमें ब्लैक और उसके 5 नौकरों को दिनदहाड़े बीच शहर में भीड़ के द्वारा मार दिया गया और उसमें भी मीणा सरदारों का नाम अग्रिम पंक्ति में क्षेत्रीय रियासत दारों के द्वारा लिखवाया गया और उन्हीं में दो मीणा सरदारों को फांसी के फंदे तक पहुंचा दिया गया।
शेखावाटी और तोरावाटी के मीनों पर अंग्रेजों के आक्रमण ने जयपुर के मीणाओं को उत्तेजित कर रखा था।
अतः वह केवल अवसर की तलाश में थे ,प्रंसगवश यहां यह बता देना असंगत नहीं होगा कि उस समय अल्प व्यस्क महाराजा रामसिंह द्वितीय का राज था अंग्रेज समर्थक रावल बेरी साल उनका सरंक्षक बना हुआ था। अंग्रेज विरोधी गुट राजमाता माझी चंद्रावत को राज्य की रिजेंट बनाना चाहता था इसी कारण वहां अव्यवस्था फैली थी। अंग्रेजों ने शेखावाटी और तोरावटी के सैनिक अभियान के खर्चे की वसूली के लिए सांभर झील को अपने नियंत्रण में ले लिया था राजस्थान के स्वाधीनता संग्राम के अनुसार सन् 1835 में सांभर झील पर अधिकार शेखावाटी और तोरावाटी पर नियंत्रण शेखावाटी ब्रिगेड का गठन आदि ऐसी घटनाएं थी जिनमें रानी मां की स्थिति को दुर्बल बनाया था ।
आखिरकार 1835 में रानी के विश्वासपात्र झूथा राम को अल्पव्यस्क शासक को जहर देकर मारने के झूठे आरोप में राज्य से बाहर भेज दिया और बिना मुकदमा चलाए उसे बंदी रखा ।इस विवरण से यह निष्कर्ष सहज ही निकल सकते हैं कि शेखावाटी और तोरावटी के मीनों की अंग्रेज विरोधी गतिविधियां राजमाता के समर्थन में थी न कि मीनों द्वारा आदतन गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त रहने के कारण जैसा कि सरसरी तौर पर अधिकांश इतिहासकारों ने माना है ।
वस्तुतः यह शासन में अंग्रेजों की दखलअंदाजी का नतीजा था ।जयपुर रियासत के सामंतों में अंग्रेजो के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह का बिगुल बजाने वाले बठोठ जागीरदार डूंगर सिंह और उसकी टीम का था।
उन्होंने सन् 1837 में सिंगरावट के किले से अंग्रेजी सेना का सामना किया ।उसका साथ देने वाले महान योद्धा सांवता राम मीणा, करनाराम मीणा ,लोठू जाट और उनके सहयोगी थे। जागीरदारों के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप को लेकर ही सांवता राम मीणा, डूंगर सिंह व उनका भाई जवाहर सिंह प्रसिद्ध क्रांतिकारी करना राम मीणा , लोठू जाट ,सुरजाराम बलाई ,बालू नाई आदि ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इनके दल का उस समय में ऐसा आतंक था कि जयपुर, बीकानेर और जोधपुर के राजा महाराजा उनके नाम से डरते थे।
शेखावाटी क्षेत्र में डूगजी,जवाहर सिंह जी, और सांवता राम करणा, राम मीणा के नाम भी बहुत ही प्रसिद्ध है।
यह लोग धन वालों को उचित धन के साथ लूटते थे और लूट का धन गरीबों में उसकी आवश्यकता अनुसार बांट देते थे और उसमें से कुछ बचता था उसको अपने लिए अंग्रेजो के खिलाफ और अंग्रेजो के पीच्छलग्गों रियासतों के साथ विद्रोह करने में काम लेते थे ।
सन् 1847 में अपने चार पांच सौ साथियों के साथ नसीराबाद की अंग्रेजी छावनी को भी लूटा था इस क्षेत्र के मीणाओं के अतीत से इस अवधारणा को बल मिलता है कि1835 में शेखावाटी और तोरावटी के क्षेत्र में अंग्रेजों के सैनिक अभियान से ज्यादा समय तक शांति स्थापित नहीं रह सकी थी। इसके बाद भी उन्होंने अपनी विद्रोही गतिविधियां सांवता राम मीणा करनाराम मीणा, डूंगजी जवाहर जी के संयुक्त नेतृत्व में जारी रहा था ।शेखावाटी और तोंरावटी क्षेत्र के मीणाओ की सूझबूझ और दिलेरी के अनेक किस्से इतिहास की पुस्तकों में बहुत से जगह बिखरे पड़े हैं जो किसी भी शोधार्थी के लिए रोचक विषय बन सकता है ।
राजा महाराजा या सामंतों द्वारा मीणाओं को वह काम सौंपा जाता था,जो और किसी से नहीं होता था,उसे वे अचूक रुप से संपन्न करते थे एक और उदाहरण प्रस्तुत है शेखावाटी के क्षेत्र के मीनों की महान दिलेरी का।
शेखावाटी क्षेत्र में स्वतंत्रता परिणाम प्रेमियों की बढ़ती हुई गतिविधियों को दबाने के लिए मेजर फॉरेस्ट्रर की नियुक्ति की, शेखावाटी क्षेत्र में की गई जिसमें मेजर ने गुढा के ठाकुर धीर सिंह की गडढी पर तोपों से गोले बरसाए और उसे ढहा दिया। तथा ठाकुर का सिर काटकर झुंझुनू ले गया और उसे सैनिकों के पहरे में रखवा दिया। ठाकुर के दाह संस्कार के लिए सिर अति आवश्यक था। इसलिए शेखावाटी क्षेत्र के महान योद्धा मीणा समाज के नव युवकों में से एक युवक का चयन किया गया जो सैनिक छावनी से सैनिकों की पहरेदारी में रखे हुए ठाकुर साहब का शव रात के पहरे में सैनिकों की छावनी में से उठाकर ले आया तब राजपूतों ने ठाकुर का दाह संस्कार किया दूसरे दिन जब सुबह मेजर फॉरेस्ट को इस बात का पता लगा बहुत ही अचंभित हुए और मीणा युवक को कड़े पहरे के बीच से ठाकुर का शरीर कैसे ले गया इस बात पर वह चर्चा करने लगे तथा उसकी दिलेरी, बुद्धिमानी आदि बातों पर मैजर फॉरेस्टर काफी दंग हो गए ,काफी तथ्य और किस्से सुनने के उपरांत यह पाया जाता है कि शेखावाटी के मीणा बहादुरी में किसी से कम नहीं थे और बुद्धि में सबसे तेज थे। जयपुर रियासत में अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष शेखावाटी और तोंरावटी के मीणो ने किया था जिसे अंग्रेज विरोधी जागीरदारों का खुला समर्थन प्राप्त था ।
परंतु इतिहासकारों और वर्तमान लोकतंत्र के ठेकेदारों ने कुछ लोगों को तो स्वतत्रता सेनानी का खिताब दे दिया और दूसरी तरफ शेखावाटी के मीणाओं का अंग्रेजो के खिलाफ इतना व्यापक विद्रोह उनकी उपेक्षा का ही शिकार बना रहा और उन्हें चोर डाकू का खिताब दिया जाता रहा ।
आधार विहिन मान्यताएं जातीय विद्वेष और पूर्वाग्रह की मानसिकता के अलावा इसका और क्या हुआ कारण हो सकता है।
सावता राम मीणा करना राम मीणा लोठू जाट, डूगजी और जवाहर जी राजपूत ,इनको डकैत धाड़वी लुटेरे आदि हीनता पूर्ण संबोधन उसे अपने इतिहास में वर्णित किया है ।भारतीय स्वतंत्रता तथा राष्ट्र प्रेम पूर्ण ऐसे कार्यो को विदेशी शत्रु और कृतघ्न देशद्रोही डकैती कर उनकी राष्ट्रभक्ति पर सफेदी पोत सकते हैं। राजस्थान में सत्ता के बिना अन्याय के प्रतिकार स्वरूप विद्रोह करने वाले योद्धाओं को बारोठिया शब्द से घोषित किया जाता रहा है जनमानस उन्हीं की वंदना करता है जो महान लक्ष्य के लिए उच्च आदर्शों पर गमन करते हैं ।
सांवता राम मीणा, करनाराम मीणा, डूगजी ,जवाहर जी सुरजाराम बलाई ,सोबन सुनार , सांखू लुहार,लोठू जाट, बालू राम नाई,आदि उच्च कोटि के मातृभूमि प्रेमी वीर थे उनके समकालीन राजस्थानी इतिहासकारों विशिष्ट राष्ट्रीय कवियों और लोक कवियों ने मुक्त स्वर से उनके वीर कार्यों की श्लाघा के दोहे ,सोरठे, गीत ,कवित्त और छांवलिया रचकर उनकी वीरता को अनुकरणीय तथा प्रेरणीय रूप में प्रस्तुत किया तब शिष्ट समाज में उनके प्रति कैसी श्रद्धा थी उसकी साक्षी संग्रहित वीर गीतों में मुखरित है।
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लेखक तारा चंद मीणा चीता प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर

नोट:-
विस्तार से पढ़ने के लिए शेखावाटी वीर स्वतंत्रता सेनानी नामक पुस्तक का अध्ययन कीजिए।
धन्यवाद।

अंक – 4 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा ,श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 4

राजा उमाऊ राव की पुत्री चंद्रमणि पद्मिनी सी सुंदर कन्या थी ।
अलाउद्दीन खिलजी के पास जब उसकी सुंदरता की चर्चा पहुंची तो उसने मीणा राव से उसकी पुत्री का डोला मांगा, मीणा राव के मना करने पर अलाउद्दीन खिलजी ने बुलेल खां के अधीन इस आदेश के साथ सेना भेजी कि वह उमराव को गिरफ्तार करें और उसकी रूपवती पुत्री चंद्रमणि को दिल्ली ले आए ।नवाब बुलेल खां छापोली के गढ़ पर आक्रमण किया तो 12 गांवों के मीणा सरदार एक होकर अलाउद्दीन खिलजी की भेजी हुई सेना का सामना किया तथा डटकर मुकाबला किया ।
इस रणक्षेत्र में छापोली के आसपास के 140 मीणा सरदार वीरगति को प्राप्त हुए। उमरावऊ अपने चारों बेटों सहित अपनी आन बान शान को बचाते हुए शहीद हो गए । परंतु उमाऊ राव की रानी विश्वस्त मीणा सरदारों के सहयोग से अपनी पुत्री चंद्रमणि तथा चारों पुत्रवधुओं को साथ में लेकर अपने पोते सहित चिलावरी गांव पहुंचा दी गई। ऊमाऊ राव के पोत्र का नाम अलगरा था जो सुरक्षित बच गया था शेखावाटी क्षेत्र में स्थित है,गुड़ा,पोंख,जहाज, गिरावड़ी, मावंडा ,टीबाबसई,गणेश्वर ,गांवड़ी ,
बागोरा ,तोंदा,खेड़,जिलो आदि गांव छापोला गोत्रिय मीणों द्वारा बसाए गए हैं।
शेखावाटी और तोरावटी दोनों ही क्षेत्रों के मीणे अपनी दिलेरी संघर्षशीलता और जुझारू पन के लिए प्रसिद्ध रहे हैं कच्छाओं द्वारा छल कपट से सता च्युत करने के पश्चात भी इस क्षेत्र के मीणाओं ने उस समय के शासकों को कभी चैन से नहीं बैठने दिया और हमेशा उन्हें नाको चने चबाते रहें।
मीनों के अंतहीन संघर्ष से तंग आकर अनंत: उस समय के शासकों ने उनसे समझौता करना पड़ा।
इस व्यावहारिक समझौते के कारण मीणा समाज के लोगों की आर्थिक समस्या हल हो गई। इस क्षेत्र के गांवों की सुरक्षा व्यवस्था मीणा समाज के सरदारों को सौंप दी गई ।
जिसके बदले में उन्हें गांव से एक प्रकार की लाग यानीकि टैक्स वसूल करने का अधिकार मिल गया। अंग्रेजी राज्य की स्थापना तक यह व्यवस्था निर्बाध रूप से चलती रही थी और इस क्षेत्र के मीणा शांतिपूर्वक जीवन यापन करते रहे थे।
21 जून 1818 को जयपुर राज्य और अंग्रेजो के बीच सरंक्षण संधि हो गई जयपुर के तत्कालीन महाराजा ने अपने अधीन ठिकानेदारों जागीरदारों को उक्त संधि से परिचित कराया और उस पर उनके हस्ताक्षर करवाए। शेखावाटी के कुछ शेखावत सरदार इस संधि से नाखुश थे उन्होंने दबाव में आकर हस्ताक्षर किए थे तोरावटी के पाटन ठिकाने के राव अथवा उनके किसी प्रतिनिधि ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए फिर भी सामान्यत: यह संधि सभी ठिकानेदारों पर लागू मानी गई इस संधि पर हस्ताक्षर न करने वाले पाटन ठिकाने को सन् 1835 में जयपुर राज्य के मार्फत पहले अंग्रेजों का करद राज्य बनाया गया । तथा तत्पश्चात सन् 1837 में सीधे जयपुर के अधीन कर दिया गया
जयपुर राज्य की अंग्रेजों से संधि हो जाने के बाद अंग्रेजों ने राज्य के कामों में दखल देना शुरू कर दिया धीरे-धीरे वे अपने समर्थकों को राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर बैठाने लगे प्रशासन में अंग्रेजों की इस दखलअंदाजी को लेकर सियासत के जागीरदारों में असंतोष पैदा होने लगा अंग्रेज विरोधी सामंतो द्वारा भड़काए जाने पर मीणा सरदारों ने महसूस किया कि देर सबेर संधि का प्रभाव उन पर भी पड़ेगा ही । अतः उन्होंने अंग्रेज विरोधी सामंतों की सलाह के अनुसार अंग्रेज समर्थक जागीरदारों के क्षेत्र में लूटमार डाकाजनी आदि विरोधी गतिविधियां करना शुरू कर दी तथा उनके क्षेत्र की फसलें नष्ट कर देते थे उनके क्षेत्र में लूटमार करते थे और वहां से जो कुछ मिलता था उसको उठा ले जाते थे जो उनका पेट पालन पोषण करने के काम आता था,अंग्रेज विरोधी सामंतों का खुला समर्थन मिलता रहा था ।
उन्हें अपने गुप्त शरण स्थलों में शरण देते थे।
नीम का थाना क्षेत्र में तो समाज ने अपने खुद के स्थल बना रखे थे।धाहड़ा डालकर मीणा समाज के ताकतवर लोग उसमें एक हिस्सा कुछ उस क्षेत्र के जागीरदार को देते थे जो उन्हें शरण देता था और शेष भाग आपस में बांट कर उसमें कुछ हिस्सा गरीबों की मदद के लिए रखते थे
व सन् 1831 में कर्नल लॉकेट ने लिखा है ,साथ ही यह भी कहना होगा कि तोरावाटी के मीणा जो टैक्स के रूप में रुपया वसूल करते थे। उसमें से राव साहब पाटन भी अपना हिस्सा लेते थे।
जयपुर रियासत मैं शेखावाटी का सीमा क्षेत्र व्यापारिक मार्ग के लिए महत्वपूर्ण था यह सीमा बीकानेर और जोधपुर राज्य से मिलती थी ।इसी क्षेत्र में अवस्था का मतलब था तीनों राज्यों में अव्यवस्था ,कर्नल लॉकेट की रिपोर्ट पर नसीराबाद छावनी तोपखाना और घुड़सवार सैनिकों सहित ब्रिटिश सेना की एक ब्रिगेड भेजी गई ताकि शांति और व्यवस्था इस क्षेत्र में अंग्रेज सरकार की ओर से प्रभावशाली तरीके से बनाई जा सके तथा इसी के साथ कर्नल लाकेट ने झुंझुनू क्षेत्र को मुख्य मानते हुए यहां झुंझुनू ब्रिगेड की स्थापना की तथा इसका क्षेत्र स्थान झुंझुनू रखा गया आज भी उस जगह को फॉरेस्ट गंज के नाम से जाना जाता है।
इस ब्रिगेड की स्थापना के साथ ही इसका खर्चा भी निश्चित किया गया जिसमें इसका खर्चा उस समय ₹73500 का था जिसमें ₹22000 का अर्थ बार बीकानेर राज्य पर और ₹51500 का भार शेखावाटी के सरदारों पर डाला गया ।
ब्रिटिश ब्रिगेड जहां लूटपाट होती थी वहां कार्यवाही करती थी ।इस कार्रवाई के रूप में अन्य सरदारों के गठजोड़ किए गए क्योंकि वे लोग इन महलों में जो लूटपाट करते थे यूं कहो कि अपना टेक्स वसूल करते थे ।
फल स्वरुप शेखावाटी ब्रिगेड का विरोध होता रहा सन् 1843 में यह ब्रिगेड हटा दी गई और इसकी जगह पैदल सिपाहियों की एक रेजीमेंट रख दी गई इसका भी खर्चा सरकार स्वयं वहन करती थी ।जयपुर राज्य में शांति और व्यवस्था के नाम पर राजमाता के समर्थक सामंतों को कुचलने के लिए शेखावाटी और तोरा वाटी पर आक्रमण किया गया इससे सैनिक अभियान के खर्चे की वसूली के लिए सांभर झील तथा जिले को ब्रिटिश सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया सन् 1835 में शेखावाटी और तोरा वाटी पर अंग्रेजों के आक्रमण का कारण वस्तुतः मीनों की विद्रोही गतिविधियां थी ।
जिन्हें राजमाता समर्थक सामंतों ने समर्थन दे रखा था मीणा लोग अंग्रेज समर्थकों को ही लूटते थे और अंग्रेज समर्थक सामंतों के क्षेत्र में ही अशांति तथा अव्यवस्था पैदा करते थे।
लगातार———

नोट:-
इन लेखों को विस्तृत रूप से पढ़ने के लिए
“”” शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी नामक पुस्तक का अध्ययन कीजिए””
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर

अंक -3 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 3

अंक -3 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है ।
शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा ,श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 3

स्वतंत्रता के आंदोलन में भारत देश के आदिवासी लोग अंग्रेजी शासन के बहुत घोर विरोधी थे ।परंतु इतिहास के मुख्य पृष्ठ पर इन स्वतंत्रता संग्राम के प्रेमियों का कहीं भी बढ़-चढ़कर वर्णन नहीं किया गया है ।आदिवासी मीणा जाति के लोग सामंतों ,अंग्रेजों से काफी लड़े उनके साथ खैराड़ के मीणाओं ने अंग्रेजी शासन और उनके आश्रित मेवाड़ के महाराणाओं की सता को गंभीर चुनौती भी दी थी, इसके साथ ही तोरावटी के मीणा विशेषकर शाहजहांपुर के रणबांकुरे अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।
राजस्थान में भारत के अन्य प्रांतों की भांति क्रांति का श्री गणेश सैनिक छावनियों से हुआ।
परंतु धीरे-धीरे स्थानीय जनता की इसमें रुचि व स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना निश्चित रूप से आयुध जीवी आदिवासी मीणा जाति का हाथ बहुत ही अधिक रहा है। जहां सैनिक छावनी में क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित हो रही थी वैसे ही आदिवासी क्षेत्रों के मीणा जाति के लोगों की भावना भी देश की आजादी के लिए प्रबल थी ।
राजस्थान के अन्य जगहों के मीणों की भांति शेखावाटी के मीणा भी साहस व वीरता में किसी से कम नहीं थे ।
राजपूतों से उनका कोई विरोध नहीं था
परंतु जब बड़ी-बड़ी रियासतें अपना स्वाभिमान खोकर अंग्रेजों की संरक्षण संधि में बंध गई तब मीणा जाति के लोग आक्रोश में आ गए तथा वे अंग्रेजी राज के प्रबल शत्रु के रूप में उभरने लगे ।सहयोग से अंग्रेज विरोधी जागीरदारों का भी उनको समर्थन मिल गया ।इस क्षेत्र के आदिवासी मीणा जाति के नवयुवक भी इस अभियान में कूद पड़े जिसमें इस क्षेत्र के लगभग 1000 आदिवासी मीणा जाति के लोग थे ।जिनका मुख्य कार्य अंग्रेजी छावनियों एवं खजानों को लूटना था तथा इस लुटे हुए माल को गरीब जनता के अंदर बांटकर उनके हितेषी बनते थे।स्वतंत्रता प्रेमीयों का दल यह देखना चाहता था कि अंग्रेजी शासन अपने संरक्षित शासकों को कहां तक रक्षा कर सकता है ।
सन् 1857 की क्रांति के पहले ही राजस्थान के आदिवासी मीणा जाति के लोग आजादी का शंखनाद सन् 1837 में ही कर चुके थे ।जिसमें सांवता राम मीणा, करनाराम मीणा और उनकी टीम में शेखावाटी क्षेत्र के कई गांवों के लोग आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे ।उनका एक आदर्श वाक्य था
काची काया को बणयों मांनखो,पेट दुख मर जाए रे
एक बार में लूटूं छावनी ,करूं मुल्क में नाम रे
अर्थात-
मानव के शरीर का कोई पता नहीं उसकी कब मृत्यु हो जाए और वह कब मिट्टी में मिल जाए ,मनुष्य कई बार छोटी-मोटी बीमारियों से भी अपनी ही लीला समाप्त कर लेता है और उनके अनुसार पेट दुखने पर भी मनुष्य मर जाता है तो इससे अच्छा यह है कि अपने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों की छावनी को लूट कर खजाने को लूटा जाए और गरीब लोगों में बांटा जाए, यदि उस लूट में मृत्यु भी हो जाती है तो देश के लिए नाम अमर करके जाते हैं और खुद का नाम भी अमर हो जाता है।
प्राचीन काल में राजस्थान के छापोलीवाटी क्षेत्र मत्स्य महाजनपद के अंतर्गत आता था यह क्षेत्र विराटनगर के पश्चिम दक्षिण में स्थित है।वर्तमान सीकर, चूरू और झुंझुनूं जिलों के अंतर्गत आता है इसमें तोरावटी के अंतर्गत सीकर जिले की नीमकाथाना तहसील और जयपुर जिले का कोटपूतली शाहपुरा तथा विराट नगर का क्षेत्र आता था प्राचीन काल में संपूर्ण क्षेत्र पर मीनों की सता थी ।उनका राज्य था पुराने जमाने में मत्स्य क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला छापोली कस्बा मीनो का एक प्रमुख स्थान रहा है इसी गांव के पीछे मीनों की एक प्रसिद्ध खाप छापोला कहलाई, चौदवीं शताब्दी के प्रारंभ में यहां अलाउद्दीन खिलजी के साथ छापोली के मीणा सरदारों का बहुत भयंकर युद्ध हुआ और उस युद्ध में काफी मीणा सरदार आहत हुए तथा दिल्ली के सुल्तान खिलजी का उस पर आधिपत्य हो गया तथा छापोली के छापोला गोत्री मीणा राजाओं का राज्य अपदस्थ हुआ ।अलाउद्दीन खिलजी मुस्लिम शासक एक बहुत ही अयासी पर्वर्ती का राजा था ।उसको जिस भी राजघराने में जहां भी विशेष रूपवती महिलाओं का पता चल जाता था तो वह उसको अपने हरम में लाने का बड़ा ई शौकीन था। उसी पर उनको अपने जासूसों के द्वारा पता चल गया कि राजा ऊमाऊराव मत्स्य क्षेत्र के छापोली क्षेत्र के राजा की एक रुपवती —-
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लेखक तारा चंद मीणा “चीता” प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर

अंक -2 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है। शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा ,श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 2

शेखावाटी के वीर स्वतंत्रा सेनानी सांवता राम मीणा व करना राम मीणा भाग-2
जिससे रजवाड़े बर्बाद हो गए इधर अंग्रेज इस मौके की तलाश में फिर रहे थे उन्होंने सभी राजाओं से संधियां कर ली और उनको सुरक्षा का वचन दे दिया,
“”अंधे को क्या चाहिए दो आंख””
राजाओं को क्या चाहिए था उन्होंने इस बात को सहर्ष स्वीकार कर लिया और अपनी सुरक्षा का जिम्मा अंग्रेजों को सौंप कर चैन की बंसी बजाई ।जब अंग्रेजों ने रजवाड़ों की चारों तरफ अव्यवस्था व आपसी फूट दिखाई दी ।
तब उन्होंने रजवाड़े में आंतरिक दखलअंदाजी देना शुरू कर दिया।
देसी रियासतों के राजाओं को केवल अपनी सुरक्षा और आराम से मतलब था उन्होंने जिस तरह मुगलों और मराठों द्वारा अत्याचार सहन किए थे उसी तरह अंग्रेजों द्वारा भी अत्याचार व शोषण के शिकार होने लगे परंतु राजस्थान के स्वतंत्रता प्रेमी जागीरदार इस स्थिति से बहुत दुखी थे ।
देसी राजाओं द्वारा अंग्रेजों के प्रत्येक काम को आगे रखना उनको अच्छा नहीं लगता था ।
स्वतंत्रता प्रेमियों नेअंग्रेजो के खिलाफ खुली बगावत शुरू कर दी।
इनके पास ब्रिटिश शक्ति के सामने इतनी संगठन शक्ति भी नहीं थी परंतु देश की स्वतंत्रता की भावना से मरण मारण व बलिदान होने के लिए तैयार हो गए।
इन जागीरदारों में शेखावाटी के पाटोदा के ठाकुर डूंगजी, जवाहर जी और उनके रन योद्धा सांवताराम मीणा, करनाराम मीणा और लोठू जाट, बीकानेर के ठाकुर हरि सिंह बिदावत ,भोजोलाई का आनंद सिंह, सूरजमल ददरेवा आहुआ का ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत, बिशन सिंह मेड़तिया ,गूलर ,शिवनाथ सिंह आमोय, श्याम सिंह चौहटन बाड़मेर, नाथू सिंह देवड़ा बढ़ाना, सिरोही बलवंत सिंह गोठड़ा और कोटा नरेश का छोटा भाई पृथ्वी सिंह हाडा आदि प्रमुख थे ।
19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अंग्रेजो के खिलाफ एक संगठित और योजनाबद्ध विद्रोह का आयोजन किया गया जिससे अंग्रेजी सत्ता अचंभित हो गई इस संगठन में शेखावाटी क्षेत्र के प्रमुख भागीदार शामिल हुए जिसमें स्वरूप सिंह खिरोड़ देवता और मोहनवाड़ी आदि इन संगठन के साथ 36 जातियों का सहयोग था इनमें मुख्य रूप से मीणा, जाट राजपूत ,गुर्जर, बढ़ई ,लोहार और नाई आदि प्रमुख सहयोगी के रूप में बहादुरी से भाग लिया।
इसलिए आंदोलन एक समाज विशेष का न रहकर आम जनता का हो गया था ।
डूंगजी,जवाहर जी , सांवताराम मीणा, करण्या मीणा और लोठू जाट की तारीख में लिखी हुई काव्य सामग्री बहुत संख्या में है जिसकी महिमा दंगल ,गीत पवाड़ा और छावनियां में है इनके अलावा इन बहादुर वीरों की बहादुरी के चर्चे राजस्थानी में बहुत हैं जिनमें इनको अंग्रेज विरोधी हीरो बताया गया है और इनकी प्रशंसा खूब की गई है जिसमें अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ समाज में बुराई फैल चुकी थी जिसके लिए कवि ने लिखा भी है
मीनखा निठगी मोठ बाजरी ,घोड़ा निठग्यो घास।।
अर्थात- मानव के लिए खाने को अनाज नहीं रहा और पशुओं तथा घोड़ों के लिए चारा नहीं रहा।
शेखावाटी के वीर स्वतंत्रा सेनानी नामक पुस्तक में लेखक द्वारा इनकी बहादुरी की महिमा का वर्णन किया गया है।
इन बहादुरों के द्वारा मुगलों की राजधानी रही आगरा किले को दिनदहाड़े तोड़कर नसीराबाद की छावनी पर धाड़ा मारकर अंग्रेजों की मजबूत सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया था।
और इन्हीं के परिणाम 1857 की क्रांति हुई ।
सन 1805 तक अंग्रेजों की राजस्थान में कोई विशेष दखल नहीं थी सन 1819 तक यहां के सभी राजा आपसी लड़ाइयों से तंग आकर मराठों के बढ़ते हुए लालच से छुटकारा पाने के लिए बड़ी आसानी से कंपनी बहादुर की शरण में आ गए थे,
कभी किसी ने विरोध भी किया तो तत्कालीन विकट परिस्थितियों में आखिरी रूप से यह तय करना मुश्किल था कि
” ऊंट किस करवट बैठेगा “कंपनी व मराठों में जो भी ताकत राजाओं को भारी लगती उसी के साथ हो जाते थे, मुगलों की अधीनता स्वीकार करने के बाद राजस्थान के राजाओं की अपनी कोई ताकत शेष नहीं रही थी। केंद्रीय सत्ता के सारे बिना उनका जीना दूभर हो गया था ।
मुगलों के बाद उन्हें मराठों की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। मराठों और अमीर खां ने तो उनके पारिवारिक मामलों में हस्तक्षेप आरंभ कर दिया था।
वह जैसे जैसे उनका पीछा छुड़ाना चाहते थे अंग्रेजों से इस बाबत आश्वासन मिलने पर उन्होंने निर्विलम्ब उनकी दास्तां मंजूर कर ली।
आश्रित सेना की नीति ने तो राजाओं को अंग्रेजों की कठपुतली ही बना दिया अंग्रेज तत्कालीन हिंदुस्तानियों की हरकत से वाकिफ थे।
हर नई स्थिति का नए ही दांवपेच से मुकाबला करते थे और इसके विपरीत यहां का शासक वर्ग अपने में ही खोया था नई परिस्थितियों का पुरानी मान्यताओं से सामना करना जानते थे, शारीरिक ताकत से लड़ने भिड़ने से अधिक उनकी रणनीति का कोई दूसरा दायरा नहीं था, लड़ाई की शिवाय सीधा आत्मसमपण करना जानते थे दूसरा मार्ग उन्हें अधिक सरल दिखाई दिया जातीय संगठन पर किसी परिणाम मूलक उद्देश्य के अभाव में आपसी झगड़े तो कभी खत्म ही नहीं होते थे ।
राजा और बड़े-बड़े जागीरदारों के बीच हमेशा तलवारे तनी रहती थी मारवाड़ के राजा मानसिंह की तो पूरी उम्र ही जागीरदारों से युद्ध करने में बीत गई।
जागीरदार बड़े ताकतवर थे उन्होंने राजाओं के नाक में दम कर रखा था या मराठों के सिवाय घरेलु आफतों से बचने के लिए भी राजाओं ने अंग्रेजों की सहायता ली ,अंग्रेज ऐसे मौकों की तलाश में ही रहते थे। जरूरत पड़ने पर वे स्वयं भी ऐसी स्थिति पैदा करवा देते थे। चंद स्वार्थ के लिए देश का बड़ा से बड़ा नुकसान कर देने की हिंदुस्तान की स्थिति थी और अंग्रेजों ने उनका लाभ उठाया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में राजस्थान का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है ।
अंग्रेजी आतताईयों के विरुद्ध एक और जहां यहां के स्वतंत्रता सेनानी ने तलवार के जौहर दिखाए वही चारण, भाट आदि गीतकार ने अपनी लेखनी के माध्यम से स्वतंत्रता की भावना जागृत करने में विशेष भूमिका निभाई ।
सही अर्थों में देखा जाए तो इस राष्ट्रीय अभियान में आजादी के दीवानों का जितना महत्व रहा,
उतना ही महत्व इस प्रकार के साहित्य की रचना करने वाले कवियों का रहा,
क्योंकि उन्होंने केवल आजादी का अलख ही नहीं जगाया ।
बल्कि इसे गति में बनाए रखने में भी अपना विशेष योगदान दिया वास्तव में देखा जाए तो आजादी की लड़ाई का श्री गणेश उस समय हो गया था ।
जिसमें आतताईयों ने इस धरा पर आक्रमण कर यहां अपने पांव जमाने का प्रयास किया। शेखावाटी के वीर सपूत सांवताराम मीणा, करनाराम मीणा ,लोठू जाट, सुरजाराम बलाई और डूंगजी,जवाहर राजपूत आदि ने अंग्रेजी सत्ता का घोर विरोध करते हुए स्वाधीनता की भावना का अनुकरणीय परिचय दिया तथा अंग्रेजों की छावनी में लूट खसोट कर गोरों की सत्ता को हिला दिया यहां के चारण भाट कवियों ने यहां देश के उन सपूतों की वीरता भरी कर्तव्य परायणता और देशभक्ति का वर्णन बड़े सुंदर ढंग से किया है वहीं उन्होंने अंग्रेजों का पक्ष लेने वाले राजा महाराजा और स्वार्थी सरदारों की निंदा करते हुए उन्हें गुलामी की बेड़ियां तोड़ने की सीख दी है इसमें यह तो निश्चित है कि संघर्ष के नायक अंग्रेजी सता के घोर विरोधी थे।
उनके मन में ऐसी कोई भावना नहीं थी कि अंग्रेजों की छावनी या लूट कर अपना नाम कमाना हो उनका लक्ष्य केवल गरीब जनता की पेट की आग को बुझाना था ।व अंग्रेजो के द्वारा उनके साथ अत्याचार हो रहे थे उनको मिटाना था जबकि उनकी भावना में प्रजातंत्र स्थापित करने का कोई लक्ष्य नहीं था बस एक ही भावना थी कि गरीब लोगों की सहायता किस तरह की जा सके। जनता और सामाजिक समानता में समरसता की स्थापना मुख्य लक्ष्य था।
उनकी ख्याति को दूर-दूर तक फैलाने का कार्य यहां के कवियों ने किया। सन् 1818 ईसवी से ही सहायता संधि के जाल में फंसकर राजस्थान के बड़े-बड़े राजा महाराजा, अंग्रेजों की शरण में जा चुके थे ,पर यहां के आदिवासी विशेषकर मीणा जाति के लोगों ने कभी भी विदेशी शासन की अधीनता स्वीकार नहीं की थी क्योंकि उनको साधन सुविधा के स्थान पर अपनी परंपरा व लोक संस्कृति अधिक प्यारी थी उसमें मत्स्य प्रदेश के शेखावाटी क्षेत्र के ढूंढाड़, खेराड तोरावटी के मीणा ने अंग्रेजी शासन को हिला कर रख दिया था ।क्रांति में आदिवासी जनता ने बहुत ही बढ़ चढ़कर भाग लिया क्योंकि अंग्रेजी शासन से उन्हें सबसे अधिक हानि थी। पहले राज्य की रक्षा का उत्तरदायित्व आदिवासी मीणा जाति पर था, उसके बाद में देशी राजाओं को अंग्रेजों का संरक्षण प्राप्त होने से इनका प्रभाव कम होने लगा अंग्रेजी राज में नवीन उद्योग नीति से परंपरागत उद्योग धंधे चौपट होते जा रहे थे, अफीम का धन्धा अंग्रेजी शासन के अंतर्गत चला गया था भूमि किसानों के हाथ से निकल कर जा रही थी।
जिस तरह से आज आप सभी को पता है अखबारों की प्रत्येक दिन की सुर्खियां बनी होती हैं कि
आज रेल डिपार्टमेंट बिक गया ।
आज एयर इंडिया बिक गई ।
आज पुरातत्व विभाग बिक गए ।
आज एलआईसी बिक गई ।
इसी तरह सन् 1818 में देश की बागडोर धीरे-धीरे पूंजीपतियों व अंग्रेजों के अधीन होती जा रही थी ।
जब आदिवासियों को इस बात का पता चला तो उन्होंने इसको रोकने का बीड़ा उठाया और आदिवासी लोगों को ऐसी गुलामी में जीना अच्छा नहीं लगा। उनसे यह सहन नहीं हुआ क्योंकि राजा महाराजा अपने निजी खर्च का समस्त भार किसान ,जनता पर डालते जा रहे थे। ऐसी स्थिति में जनक्रांति के लिए उचित वातावरण तैयार होता जा रहा था इधर कुछ स्वाभिमानी सामंत भी अंग्रेजी शासन के विरोध में उठ खड़े हुए थे जैसे आज भी काफी लोगों ने एक बीड़ा उठाया है कि हम सब मिलकर हमारे संविधान को जो भारत देश की आत्मा है उसको कैसे भी बचाएंगे ।
ऐसे ही समय-समय पर प्रकृति व सूर्य भगवान की कृपा से कहीं न कहीं सच्चे दिल के मनुष्य उत्पन्न होते हैं जो अपनी प्रजा को बचाने के काम आते हैं राजा महाराजाओं को अंग्रेजों का संरक्षण प्राप्त होने से इनका प्रभाव कम होता जा रहा था ब्रिटिश शासन की स्थानीय अवस्था में रात दिन के ऐसे हस्तक्षेप से भी कुछ सामंत अंग्रेजों से नाराज थे इनमें आहुआ के ठाकुर कुशाल सिंह, सलूंबर, गूलर सामंतों का नाम विशेष उल्लेखनीय है यह अकेले सामंत अंग्रेजी शासन से लोहा कैसे ले सकते थे इनकी शक्ति तो आदिवासी जनता के ऊपर ही निर्भर थी।
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लेखक तारा चंद मीणा चीता प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर
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अंक 01 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनन्दन है। शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवता राम मीणा, श्री करना राम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत ,श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट सीकर भाग -1

अंक 01 में आप सभी पाठकों हार्दिक अभिनन्दन है।

शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी सांवता राम, करना राम मीणा भाग -1
राजस्थान का इतिहास लोक कथाओं में बहुत पुराना है पिछले सैकड़ों वर्षों से यहां के गायकार अपने-अपने वाद्य यंत्रों व तरह-तरह की लोक गाथाओं के माध्यम से गांव गांव ढाणी ढाणी में जाकर यहां की संस्कृति वीरता ,बहादुरी, दान शीलता और वीर प्रसूता आदि की गाथाएं बहुत ही सुंदर ढंग से लोगों के मध्य पहुंचाते थे। जिससे जनता उनके द्वारा गाए जाने वाली गाथा को बड़े प्रसन्न चित्त मन से सुनती थी इस तरह की गाथाओं को अधिकतर भोपा नाम की जाति के लोग गाया करते थे जिनका सहयोग उनकी धर्मपत्नी भोपी देती थी इस तरह इन जातियों के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इस तरह की गाथा गाया करते थे
लोककथा का मतलब है जनमानस से जुड़ी हुई घटना जिसमें सुनने वाले व्यक्ति में वीर ,रसात्मक, पौराणिक श्रृगारात्मक ,प्रेम कथात्मक ,रोमांचक और निर्वेदात्मक आदि का संचार होता था राजस्थान की लोक कथाओं में मुख्य रूप से गोगा जी, पाबूजी ,तेजाजी, बगड़ावत डूंगजी, जवाहर जी राजपूत, सांवताराम मीणा, करनाराम मीणा लोठू जाट जैसी एक वीरत्वमुल्क चरित्र के अनुरूप होने से राजस्थान के यहां के जनमानस के हृदय में बैठी हुई लोककथा हैं ।यह लोककथा शेखावाटी अंचल के सरदारों की जिन्होंने अपनी बहादुरी से यहां की जनता का दिल जीता और शेखावाटी के वीर बहादुर खूंखार जनता के चहेते अंग्रेज सरकार के दुश्मन जिनमें महान योद्धा सांवताराम राम मीणा कानाराम मीणा ,जवाहर जी ,डूगजी राजपूत और लोठू जाट 19वीं शताब्दी के जननायक रहे हैं इनकी लोकप्रियता के किस्से लोगों की जुबान पर रच बस गए उनकी वीरता के किस्से चारों दिशाओं पहुंचाने के लिए भोपा जाति अपने वाद्य यंत्र के माध्यम से गाकर पहुंचाते थे। जहां तक मैं मानता हूं किसी भी इतिहास के लिए सामग्री एकत्रित करना बहुत ही अधिक परिश्रम, समय और व्ययसाध्य कार्य है।
विषय वस्तु इतिहास संकलन में कितनी दिक्कतें आती हैं उसके लिए कहा भी गया है
जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई ।।
जैसा कि इतिहास लिखने वाला महसूस करता है कि उसको कितनी दिक्कतें आती हैं जिस तरह जिसके पैर में यदि कोई पीड़ा ना हो ,या कोई दर्द नहीं हो ,या पैरों में बिवाइयां फट जाती हैं उसी तरह इतिहास लिखने में तथ्य संग्रह करने में कितना कष्ट उठाना पड़ता है कितना धन, समय और श्रम लगता है यह वही जानता है जो इतिहास निकालता है या लिखता है।
आप पाठकों के लिए बहुत ही वीरता पूर्ण गाथा लेकर आ रहे हैं हमारी संस्था का एक दुसाध्य कार्य है जो एक टीम के माध्यम से किया जा रहा है तो आज शेखावाटी के महान वीर योद्धाओं का इतिहास आप सभी पाठकों की मांग के अनुसार आप सबके लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।
शेखावाटी क्षेत्र में सन् 1818 से लेकर 1857 स्वतंत्रता की प्रथम क्रांति के महान जननायकों का यह इतिहास अपने आप में एक गौरवान्वित इतिहास था ।यदि इस इतिहास को पढ़ाया जाता तो बालक अपने आप को बहुत ही गौरवान्वित महसूस करते, तो आइए आज के इतिहास की शुरुआत करते हैं। जिसमें शेखावाटी के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सांवताराम मीणा, करनाराम मीणा ,डूंगजी, जवाहर जी राजपूत और महान ताकतवर लोठू जाट आजादी की क्रांति के अग्रदूत बने और अंग्रेजों व उनके पीछ लघु देसी रियासतों के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाया जो अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति तक जारी रहा। इनका तेज धावक ऊंटों का काफिला शेखावाटी क्षेत्र में बिना रोक-टोक विचरण करता रहा ,गांव के बाहर रेत के टीलों पर इनके रात्रि विश्राम की अनेक गांव के बड़े बुजुर्गों से इनके किस्से चर्चा सुनने को मिलती है विदेशी शासन के अत्याचारों से संघर्षों के कारण यह अपने समय के महान जननायक बने और क्षेत्र की जनता का इनको भरपूर समर्थन मिलता रहा था इन सूरमाओं उनकी स्मृति में कवियों, भाट ,चारणों द्वारा रचित यशोगान ढाणी ढाणी गांव-गांव घर-घर इनके गौरव की गाथा को चारण भाट भोपा आदि गाकर वीर भावना का विरद सुनाते रहते थे तथा भोपा भोपी अपने वाद्ययंत्र रावण हत्था के द्वारा इनका यशोगान गाया करते थे,तब पुरुषों की भुजाएं भी फड़कने लग जाती थी जब इनकी वीरता पूर्ण कथा को लोगों के मुख के सामने गाया जाता था तो जोश भर जाता था जब उन वीरों की शेर की दहाड़ गुंजती होगी तब क्या गजब होता होगा आदि काल से जितने भी आज तक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने निस्वार्थ निष्काम भाव से जनहित के कार्य करवाए हैं चाहे कितना ही कठिनाई आई हो ,कुर्बानियां और प्राणों की आहुति देनी पड़ी हो ।
कारण चाहे कुछ भी रहे हो ।
आत्मसम्मान का हो या नारी के अपमान का हो!
चाहे स्वाभिमान का हो !
उसके लिए उन्होंने सिर कटा दिए मगर जुल्म अत्याचार अनाचार अन्याय और अनैतिकता के आगे कभी ये लोग लालच व सिर नहीं झुकाया।
ऐसे त्यागी तपस्वी बलिदानी सर्वस्व न्योछावर करने वाले महापुरुषों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में या शहीद दिवस स्मृति के रूप में मनाते तो कितना अच्छा होता ।
जिसका उद्देश्य वर्तमान जीवन जीने वाले जनमानस को भविष्य के लिए सही दिशा ,दीक्षा ,शिक्षा के परिणाम मिल सके जिससे सभी का कल्याण हो सकता है।
कई बार ऐसा होता है कि कुछ लोग कानून की नजर में अपराधी होते हैं लेकिन समाज व जन सामान्य के लिए वे आदरणीय होते हैं ऐसे व्यक्ति साधारण जनता के हितों के लिए शासन के खिलाफ खड़े होते हैं ।
देश की आजादी के लिए विदेशी सरकार के विरुद्ध बगावत करने वाले भी ऐसे ही लोग थे,
उनको उस समय के राजा महाराजा और अंग्रेज सरकार के नुमाइंदे उनको डाकू का नाम देकर बदनाम किया जबकि वह अमीर लोगों के आवश्यकता से अधिक धन को लूट कर गरीब जनता की मांग को पूरा करते थे तथा सामंत लोगों के जुल्मों के विरुद्ध आवाज उठाकर शस्त्र उठाने वाले वे लोग ऐसे थे जो कानून के हिसाब से डाकू या अपराधी थे परंतु गरीब लोगों में बहुत ही लोकप्रिय और आदरणीय थे उन्हीं में से सांवता राम मीणा ,करणा मीणा ,डूंगजी, जवाहर जी राजपूत और लोठू जाट नामक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने गरीबों की बहुत मदद की उनके दुख दर्द में काम आए सांवता राम मीणा और करणाराम मीणा दोनों भाई बड़े वीर थे ,वे जानते थे कि इतने बड़े तूफान अंग्रेजी सरकार के सामने वे नहीं टिक सकेंगे लेकिन फिर भी साहस बनाए रखा ,अंग्रेज सरकार ने भी उनको पकड़ने के लिए जासूस छोड रखे थे ,लेकिन उन्होंने कभी परवाह नहीं की मुगल साम्राज्य के पतन के उपरांत भारत में राजनीतिक गतिविधियों में मराठा शक्ति का उदय हुआ भारतीय संस्कृति एवं धरातल पर जब तक मुगल शासकों का राज रहा तब तक यहां अन्य किसी शासकों प्रवेश नहीं होने दिया परंतु धीरे-धीरे इनकी शक्ति कमजोर हो गई जिससे यहां कई शक्तिशाली शासक अपना आधिपत्य जमाने लगे जिसमें मुख्य रूप से मराठा शक्ति सबसे महत्वपूर्ण थी जो एक आंधी की तरह पूरे भारतवर्ष में छा गई मुगल साम्राज्य के प्रति जनता में बहुत क्रोध छा गया
था उनके रक्त पात से जनता दुखी हो गई थी उसमें राजस्थान के राजपूत शासकों के हालात बहुत ही खराब हो गए थे ,कई पीढ़ियों से यहां के रजवाड़े मुगलों के शोषण दमन से निसप्राण हो गए थे इस कारण राजपूत राजा आपसी फूट के कारण काफी कमजोर पड़ गए थे इसी समय मराठों का मुगलों के साथ युद्ध वह रजवाड़ों पर आक्रमण करके उनकी धन संपत्ति को लूटा जिससे रजवाड़ों को बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ा इसके लिए कहा भी गया था कि
कोढ़ में खाज उत्पन्न होना ।
लगातार—————-

लेखक तारा चन्द मीणा “चीता”
प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर