अंक 24 में आप सभी महानुभावों हार्दिक अभिनंदन है। कप्तान वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा “बागड़ी” जागीरदार जयपुर भाग-6

वीर योद्धा रघुनाथ को शेर के साथ दंगल माढने के लिए उचित समय दिया गया तथा आमेर के पास में रामसागर तालाब के पास जगह उचित जगह जानकर वहां वीर योद्धा मीणा सरदार व जंगल के राजा शेर की कुश्ती का ऐलान किया गया। इस महा दंगल को देखने के लिए बहुत से लोग आसपास के वहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे महान योद्धा पहलवान रघुनाथ सिंह और शेर के साथ युद्ध का आयोजन निश्चित समय पर किया गया। युद्ध के मैदान में बहुत बड़े पिंजरे में शिकारियों द्वारा एक शेर को बंद करके लाया गया तथा प्रदर्शन स्थल पर पिंजरा रखा गया जिसमें शेर था
हजारों लोगों की भीड़ इस नजारे को अपनी आंखों में समा लेना चाहती थी कि आज रघुनाथ मीणा के अंतिम दर्शन कर लें ऐसे योद्धा वीर कभी-कभी जन्म लेते हैं ।
माधो सिंह को सूचना दी गई कि मैदान (दंगल )मांड दिया गया है। राजा सहाब से निवेदन किया कि आप अपने कर कमलों से दंगल की शुरुआत कराएं तथा इस महान दृश्य को देखकर स्वयं उस महान बलशाली पहलवान को ताकत का जोश दिलाएं।
यह दृश्य बाला बक्स भी देख रहा था तथा सुनकर बहुत ही खुश हो रहा था कि आज मेरे विरोधी का पत्ता साफ हो जाएगा ।
महाराज माधो सिंह को संपूर्ण तैयारी का समाचार मिलता है तो वहां ब्रिटिश वायसराय लार्ड कर्जन भी आए हुए थे राजा जी ने उनको भी कहा कि चलो हमारे देश में ऐसे महान योद्धा पहलवान रहते हैं जो शेरों के साथ कुश्ती लड़ते हैं आप भी उनकी कुश्ती का थोड़ा नजारा देखिएगा वायसराय ने जब इस बात को सुना तो बहुत ही अचंभित हुए तथा इस दृश्य को देखने के लिए राजा साहब के साथ हो लिए तत्कालीन वायसराय तथा राजा साहब एक मचान पर ऊंचाई पर आकर अपने आसन को ग्रहण किया तथा उस कुश्ती के लिए अपने टीम प्रभारी को ऐलान किया कि शेर और हमारे पहलवान रघुनाथ कप्तान की कुश्ती का ऐलान करें,उनको दंगल में उतारा जाए चारों तरफ की भीड़ इस आवाज को सुनी तो उनकीआंखों में आंसू भर आए।भीड़ मन ही मन अपने आंसुओं के घूंट को पी रही थी। सभी लोग सोच रहे थे कि आज हमारे वीर योद्धा रघुनाथ सिंह मीणा का अंत होने वाला है परंतु कर भी क्या सकते थे ।
राजा का आदेश था इसलिए सभी दर्शक मंत्रमुग्ध होकर आत्मा को कसोसकर इस दृश्य को देखने के लिए लालायित हो रहे थे।
जब मैदान में शेर का पिंजरा आ चुका था इधर से महान मीणा सरदार को शेर के पिंजरे के लिए मैदान में उतारा जाता है ।
यह शेर अपने जोशीले बदन, गठीले शरीर के साथ मैदान में उतरता है चारों तरफ मीणा सरदार की जय का उद्घोष हो रहा था मत्स्यप्रदेश के उस वीर की आंखों में खून खोल रहा था कि मैं इस शेर के पिंजरे में शेर से भिड़ने के लिए जा रहा हूं।इसी दरमियान भीड़ में से लोगों की आवाज आ रही थी एक शेर दूसरे शेर से भिड़ने के लिए जा रहे हैं ।
उधर से मैदान में जब शेर को पिंजरे में लाया गया इधर से कप्तान साहब अपने फौजी लिबास में बख्तर और हाथों में दस्ताने पहनकर शेर का मुकाबला करने के लिए अपनी मां को स्मरण करते हुए सूर्य भगवान को याद करते हुए अपनी उर्जा को सूर्य के समान समझते हुए शेर के पिंजरे में उतर जाते हैं।
भूखा शेर टूट कर रघुनाथ के ऊपर अपना पंजा मारता है परंतु मीणा सरदार उससे पहले ही संभल जाता है तथा शेर से कहीं भी कम नहीं था जो आखेट के समय शिकार करते समय उसने कई चितों, शेरों भालूओं को भी पछाड़ा था । वह अपने जोश के साथ इस तरह शेर पर झपटा की शेर ने अपना जबड़ा खोला और कप्तान रघुनाथ सिंह को पकड़ने के लिए फैलाया तुरंत समय की नजाकता को देखते हुए रघुनाथ सिंह ने शेर के जबड़े को इस तरह पकड़ा कि ऊपर का जबड़ा ऊपर और नीचे का नीचे ।
अपने पैर के नीचे उसका पैर दबा कर शेर के जबड़े के दो टुकड़े कर दिए।
इस दृश्य को महाराजा माधो सिंह के साथ में तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन देख रहे थे ।सभी की आंखों में खुशी के आंसू बह रहे थे तथा उधर आग लगाने वाला बाला बख्स इस दृश्य को देखकर वहां से दुम दबाकर भागने के लिए मजबूर हो रहा था तथा अपनी बात पर पश्चाताप कर रहा था कि अब मुझे मीना सरदार छोड़ेगा नहीं ?
बहादुर रघुनाथ सिंह ने शेर को एक ही झटके में उसकी गर्दन को मरोड़ कर सीधा मौत के आगोश में पहुंचा दिया इस तरह से रघुनाथ ने अपनी बहादुरी का परिचय दिया तथा स्वयं महाराजा और लॉर्ड कर्जन ने बहादुर को अपने गले से लगाया तथा इनामों की बौछार लगा दी ।
यह घटना सन् 1902 में गठित हुई थी जिस समय कप्तान रघुनाथ की उम्र 37 वर्ष थी तथा वायसराय ने ऐसे महान पहलवान को अपने देश आने का निमंत्रण दिया।

यह थे रघुनाथ कप्तान महान योद्धा जिन्होंने अपनी वीरता का शानदार परिचय दिया। इस बहादुरी के लिए पुरस्कार स्वरूप उनको जागीर प्रदान की।

लगातार……………

लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर

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