अंक -5 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 5

इन स्वतंत्रता प्रेमियों की गतिविधियों पर नियंत्रण पाने के लिए ही शेखावाटी और तोरावाटी पर आक्रमण किया जाता था, इनके सुरक्षा स्थलों को अंग्रेजी सरकार व देसी रियासतों के ठिकानेदारों द्वारा नष्ट कर दिया जाता था ।
सन 1834 के समय तोरावटी की समस्या महाराज बन्ने सिंह के शासनकाल में अलवर राज्य के तोरावटी के मीणा सरदारों के लिए अंग्रेज सरकार के आदेशों का पालन नहीं करना और वहां की फसल को टैक्स के रूप में ले जाना जिससे वहां का राजस्व वहां के क्षेत्रीय रियासतों के ठेकेदारों के पास जमा ना होना।
इसलिए अंग्रेज सरकार ने इन स्वतंत्रता प्रेमियों को डकैत घोषित कर दिया तथा इनके ऊपर फसल चुराने तथा कई तरह के इल्जाम लगाने शुरू कर दिए ,अंग्रेज सरकार के आदेशानुसार राव राजा अलवर ने तोरावाटी में दो रिसाला घुड़सवार सैनिक सहायता भेजी, जिसने तोरावटी में मीनों की इस लगान वसूली करने की तरीके को डकैती नाम देकर समाप्त करने के लिए शांति व्यवस्था कायम करने का जिम्मा अपने ऊपर लिया ।
4 जून 1835 को कर्नल एल्विन तथा उसके सहायक मार्टिन ब्लैक पर जयपुर में घातक हमला हुआ जिसमें ब्लैक और उसके 5 नौकरों को दिनदहाड़े बीच शहर में भीड़ के द्वारा मार दिया गया और उसमें भी मीणा सरदारों का नाम अग्रिम पंक्ति में क्षेत्रीय रियासत दारों के द्वारा लिखवाया गया और उन्हीं में दो मीणा सरदारों को फांसी के फंदे तक पहुंचा दिया गया।
शेखावाटी और तोरावाटी के मीनों पर अंग्रेजों के आक्रमण ने जयपुर के मीणाओं को उत्तेजित कर रखा था।
अतः वह केवल अवसर की तलाश में थे ,प्रंसगवश यहां यह बता देना असंगत नहीं होगा कि उस समय अल्प व्यस्क महाराजा रामसिंह द्वितीय का राज था अंग्रेज समर्थक रावल बेरी साल उनका सरंक्षक बना हुआ था। अंग्रेज विरोधी गुट राजमाता माझी चंद्रावत को राज्य की रिजेंट बनाना चाहता था इसी कारण वहां अव्यवस्था फैली थी। अंग्रेजों ने शेखावाटी और तोरावटी के सैनिक अभियान के खर्चे की वसूली के लिए सांभर झील को अपने नियंत्रण में ले लिया था राजस्थान के स्वाधीनता संग्राम के अनुसार सन् 1835 में सांभर झील पर अधिकार शेखावाटी और तोरावाटी पर नियंत्रण शेखावाटी ब्रिगेड का गठन आदि ऐसी घटनाएं थी जिनमें रानी मां की स्थिति को दुर्बल बनाया था ।
आखिरकार 1835 में रानी के विश्वासपात्र झूथा राम को अल्पव्यस्क शासक को जहर देकर मारने के झूठे आरोप में राज्य से बाहर भेज दिया और बिना मुकदमा चलाए उसे बंदी रखा ।इस विवरण से यह निष्कर्ष सहज ही निकल सकते हैं कि शेखावाटी और तोरावटी के मीनों की अंग्रेज विरोधी गतिविधियां राजमाता के समर्थन में थी न कि मीनों द्वारा आदतन गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त रहने के कारण जैसा कि सरसरी तौर पर अधिकांश इतिहासकारों ने माना है ।
वस्तुतः यह शासन में अंग्रेजों की दखलअंदाजी का नतीजा था ।जयपुर रियासत के सामंतों में अंग्रेजो के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह का बिगुल बजाने वाले बठोठ जागीरदार डूंगर सिंह और उसकी टीम का था।
उन्होंने सन् 1837 में सिंगरावट के किले से अंग्रेजी सेना का सामना किया ।उसका साथ देने वाले महान योद्धा सांवता राम मीणा, करनाराम मीणा ,लोठू जाट और उनके सहयोगी थे। जागीरदारों के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप को लेकर ही सांवता राम मीणा, डूंगर सिंह व उनका भाई जवाहर सिंह प्रसिद्ध क्रांतिकारी करना राम मीणा , लोठू जाट ,सुरजाराम बलाई ,बालू नाई आदि ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इनके दल का उस समय में ऐसा आतंक था कि जयपुर, बीकानेर और जोधपुर के राजा महाराजा उनके नाम से डरते थे।
शेखावाटी क्षेत्र में डूगजी,जवाहर सिंह जी, और सांवता राम करणा, राम मीणा के नाम भी बहुत ही प्रसिद्ध है।
यह लोग धन वालों को उचित धन के साथ लूटते थे और लूट का धन गरीबों में उसकी आवश्यकता अनुसार बांट देते थे और उसमें से कुछ बचता था उसको अपने लिए अंग्रेजो के खिलाफ और अंग्रेजो के पीच्छलग्गों रियासतों के साथ विद्रोह करने में काम लेते थे ।
सन् 1847 में अपने चार पांच सौ साथियों के साथ नसीराबाद की अंग्रेजी छावनी को भी लूटा था इस क्षेत्र के मीणाओं के अतीत से इस अवधारणा को बल मिलता है कि1835 में शेखावाटी और तोरावटी के क्षेत्र में अंग्रेजों के सैनिक अभियान से ज्यादा समय तक शांति स्थापित नहीं रह सकी थी। इसके बाद भी उन्होंने अपनी विद्रोही गतिविधियां सांवता राम मीणा करनाराम मीणा, डूंगजी जवाहर जी के संयुक्त नेतृत्व में जारी रहा था ।शेखावाटी और तोंरावटी क्षेत्र के मीणाओ की सूझबूझ और दिलेरी के अनेक किस्से इतिहास की पुस्तकों में बहुत से जगह बिखरे पड़े हैं जो किसी भी शोधार्थी के लिए रोचक विषय बन सकता है ।
राजा महाराजा या सामंतों द्वारा मीणाओं को वह काम सौंपा जाता था,जो और किसी से नहीं होता था,उसे वे अचूक रुप से संपन्न करते थे एक और उदाहरण प्रस्तुत है शेखावाटी के क्षेत्र के मीनों की महान दिलेरी का।
शेखावाटी क्षेत्र में स्वतंत्रता परिणाम प्रेमियों की बढ़ती हुई गतिविधियों को दबाने के लिए मेजर फॉरेस्ट्रर की नियुक्ति की, शेखावाटी क्षेत्र में की गई जिसमें मेजर ने गुढा के ठाकुर धीर सिंह की गडढी पर तोपों से गोले बरसाए और उसे ढहा दिया। तथा ठाकुर का सिर काटकर झुंझुनू ले गया और उसे सैनिकों के पहरे में रखवा दिया। ठाकुर के दाह संस्कार के लिए सिर अति आवश्यक था। इसलिए शेखावाटी क्षेत्र के महान योद्धा मीणा समाज के नव युवकों में से एक युवक का चयन किया गया जो सैनिक छावनी से सैनिकों की पहरेदारी में रखे हुए ठाकुर साहब का शव रात के पहरे में सैनिकों की छावनी में से उठाकर ले आया तब राजपूतों ने ठाकुर का दाह संस्कार किया दूसरे दिन जब सुबह मेजर फॉरेस्ट को इस बात का पता लगा बहुत ही अचंभित हुए और मीणा युवक को कड़े पहरे के बीच से ठाकुर का शरीर कैसे ले गया इस बात पर वह चर्चा करने लगे तथा उसकी दिलेरी, बुद्धिमानी आदि बातों पर मैजर फॉरेस्टर काफी दंग हो गए ,काफी तथ्य और किस्से सुनने के उपरांत यह पाया जाता है कि शेखावाटी के मीणा बहादुरी में किसी से कम नहीं थे और बुद्धि में सबसे तेज थे। जयपुर रियासत में अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष शेखावाटी और तोंरावटी के मीणो ने किया था जिसे अंग्रेज विरोधी जागीरदारों का खुला समर्थन प्राप्त था ।
परंतु इतिहासकारों और वर्तमान लोकतंत्र के ठेकेदारों ने कुछ लोगों को तो स्वतत्रता सेनानी का खिताब दे दिया और दूसरी तरफ शेखावाटी के मीणाओं का अंग्रेजो के खिलाफ इतना व्यापक विद्रोह उनकी उपेक्षा का ही शिकार बना रहा और उन्हें चोर डाकू का खिताब दिया जाता रहा ।
आधार विहिन मान्यताएं जातीय विद्वेष और पूर्वाग्रह की मानसिकता के अलावा इसका और क्या हुआ कारण हो सकता है।
सावता राम मीणा करना राम मीणा लोठू जाट, डूगजी और जवाहर जी राजपूत ,इनको डकैत धाड़वी लुटेरे आदि हीनता पूर्ण संबोधन उसे अपने इतिहास में वर्णित किया है ।भारतीय स्वतंत्रता तथा राष्ट्र प्रेम पूर्ण ऐसे कार्यो को विदेशी शत्रु और कृतघ्न देशद्रोही डकैती कर उनकी राष्ट्रभक्ति पर सफेदी पोत सकते हैं। राजस्थान में सत्ता के बिना अन्याय के प्रतिकार स्वरूप विद्रोह करने वाले योद्धाओं को बारोठिया शब्द से घोषित किया जाता रहा है जनमानस उन्हीं की वंदना करता है जो महान लक्ष्य के लिए उच्च आदर्शों पर गमन करते हैं ।
सांवता राम मीणा, करनाराम मीणा, डूगजी ,जवाहर जी सुरजाराम बलाई ,सोबन सुनार , सांखू लुहार,लोठू जाट, बालू राम नाई,आदि उच्च कोटि के मातृभूमि प्रेमी वीर थे उनके समकालीन राजस्थानी इतिहासकारों विशिष्ट राष्ट्रीय कवियों और लोक कवियों ने मुक्त स्वर से उनके वीर कार्यों की श्लाघा के दोहे ,सोरठे, गीत ,कवित्त और छांवलिया रचकर उनकी वीरता को अनुकरणीय तथा प्रेरणीय रूप में प्रस्तुत किया तब शिष्ट समाज में उनके प्रति कैसी श्रद्धा थी उसकी साक्षी संग्रहित वीर गीतों में मुखरित है।
लगातार———-
लेखक तारा चंद मीणा चीता प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर

नोट:-
विस्तार से पढ़ने के लिए शेखावाटी वीर स्वतंत्रता सेनानी नामक पुस्तक का अध्ययन कीजिए।
धन्यवाद।

अंक – 4 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा ,श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 4

राजा उमाऊ राव की पुत्री चंद्रमणि पद्मिनी सी सुंदर कन्या थी ।
अलाउद्दीन खिलजी के पास जब उसकी सुंदरता की चर्चा पहुंची तो उसने मीणा राव से उसकी पुत्री का डोला मांगा, मीणा राव के मना करने पर अलाउद्दीन खिलजी ने बुलेल खां के अधीन इस आदेश के साथ सेना भेजी कि वह उमराव को गिरफ्तार करें और उसकी रूपवती पुत्री चंद्रमणि को दिल्ली ले आए ।नवाब बुलेल खां छापोली के गढ़ पर आक्रमण किया तो 12 गांवों के मीणा सरदार एक होकर अलाउद्दीन खिलजी की भेजी हुई सेना का सामना किया तथा डटकर मुकाबला किया ।
इस रणक्षेत्र में छापोली के आसपास के 140 मीणा सरदार वीरगति को प्राप्त हुए। उमरावऊ अपने चारों बेटों सहित अपनी आन बान शान को बचाते हुए शहीद हो गए । परंतु उमाऊ राव की रानी विश्वस्त मीणा सरदारों के सहयोग से अपनी पुत्री चंद्रमणि तथा चारों पुत्रवधुओं को साथ में लेकर अपने पोते सहित चिलावरी गांव पहुंचा दी गई। ऊमाऊ राव के पोत्र का नाम अलगरा था जो सुरक्षित बच गया था शेखावाटी क्षेत्र में स्थित है,गुड़ा,पोंख,जहाज, गिरावड़ी, मावंडा ,टीबाबसई,गणेश्वर ,गांवड़ी ,
बागोरा ,तोंदा,खेड़,जिलो आदि गांव छापोला गोत्रिय मीणों द्वारा बसाए गए हैं।
शेखावाटी और तोरावटी दोनों ही क्षेत्रों के मीणे अपनी दिलेरी संघर्षशीलता और जुझारू पन के लिए प्रसिद्ध रहे हैं कच्छाओं द्वारा छल कपट से सता च्युत करने के पश्चात भी इस क्षेत्र के मीणाओं ने उस समय के शासकों को कभी चैन से नहीं बैठने दिया और हमेशा उन्हें नाको चने चबाते रहें।
मीनों के अंतहीन संघर्ष से तंग आकर अनंत: उस समय के शासकों ने उनसे समझौता करना पड़ा।
इस व्यावहारिक समझौते के कारण मीणा समाज के लोगों की आर्थिक समस्या हल हो गई। इस क्षेत्र के गांवों की सुरक्षा व्यवस्था मीणा समाज के सरदारों को सौंप दी गई ।
जिसके बदले में उन्हें गांव से एक प्रकार की लाग यानीकि टैक्स वसूल करने का अधिकार मिल गया। अंग्रेजी राज्य की स्थापना तक यह व्यवस्था निर्बाध रूप से चलती रही थी और इस क्षेत्र के मीणा शांतिपूर्वक जीवन यापन करते रहे थे।
21 जून 1818 को जयपुर राज्य और अंग्रेजो के बीच सरंक्षण संधि हो गई जयपुर के तत्कालीन महाराजा ने अपने अधीन ठिकानेदारों जागीरदारों को उक्त संधि से परिचित कराया और उस पर उनके हस्ताक्षर करवाए। शेखावाटी के कुछ शेखावत सरदार इस संधि से नाखुश थे उन्होंने दबाव में आकर हस्ताक्षर किए थे तोरावटी के पाटन ठिकाने के राव अथवा उनके किसी प्रतिनिधि ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए फिर भी सामान्यत: यह संधि सभी ठिकानेदारों पर लागू मानी गई इस संधि पर हस्ताक्षर न करने वाले पाटन ठिकाने को सन् 1835 में जयपुर राज्य के मार्फत पहले अंग्रेजों का करद राज्य बनाया गया । तथा तत्पश्चात सन् 1837 में सीधे जयपुर के अधीन कर दिया गया
जयपुर राज्य की अंग्रेजों से संधि हो जाने के बाद अंग्रेजों ने राज्य के कामों में दखल देना शुरू कर दिया धीरे-धीरे वे अपने समर्थकों को राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर बैठाने लगे प्रशासन में अंग्रेजों की इस दखलअंदाजी को लेकर सियासत के जागीरदारों में असंतोष पैदा होने लगा अंग्रेज विरोधी सामंतो द्वारा भड़काए जाने पर मीणा सरदारों ने महसूस किया कि देर सबेर संधि का प्रभाव उन पर भी पड़ेगा ही । अतः उन्होंने अंग्रेज विरोधी सामंतों की सलाह के अनुसार अंग्रेज समर्थक जागीरदारों के क्षेत्र में लूटमार डाकाजनी आदि विरोधी गतिविधियां करना शुरू कर दी तथा उनके क्षेत्र की फसलें नष्ट कर देते थे उनके क्षेत्र में लूटमार करते थे और वहां से जो कुछ मिलता था उसको उठा ले जाते थे जो उनका पेट पालन पोषण करने के काम आता था,अंग्रेज विरोधी सामंतों का खुला समर्थन मिलता रहा था ।
उन्हें अपने गुप्त शरण स्थलों में शरण देते थे।
नीम का थाना क्षेत्र में तो समाज ने अपने खुद के स्थल बना रखे थे।धाहड़ा डालकर मीणा समाज के ताकतवर लोग उसमें एक हिस्सा कुछ उस क्षेत्र के जागीरदार को देते थे जो उन्हें शरण देता था और शेष भाग आपस में बांट कर उसमें कुछ हिस्सा गरीबों की मदद के लिए रखते थे
व सन् 1831 में कर्नल लॉकेट ने लिखा है ,साथ ही यह भी कहना होगा कि तोरावाटी के मीणा जो टैक्स के रूप में रुपया वसूल करते थे। उसमें से राव साहब पाटन भी अपना हिस्सा लेते थे।
जयपुर रियासत मैं शेखावाटी का सीमा क्षेत्र व्यापारिक मार्ग के लिए महत्वपूर्ण था यह सीमा बीकानेर और जोधपुर राज्य से मिलती थी ।इसी क्षेत्र में अवस्था का मतलब था तीनों राज्यों में अव्यवस्था ,कर्नल लॉकेट की रिपोर्ट पर नसीराबाद छावनी तोपखाना और घुड़सवार सैनिकों सहित ब्रिटिश सेना की एक ब्रिगेड भेजी गई ताकि शांति और व्यवस्था इस क्षेत्र में अंग्रेज सरकार की ओर से प्रभावशाली तरीके से बनाई जा सके तथा इसी के साथ कर्नल लाकेट ने झुंझुनू क्षेत्र को मुख्य मानते हुए यहां झुंझुनू ब्रिगेड की स्थापना की तथा इसका क्षेत्र स्थान झुंझुनू रखा गया आज भी उस जगह को फॉरेस्ट गंज के नाम से जाना जाता है।
इस ब्रिगेड की स्थापना के साथ ही इसका खर्चा भी निश्चित किया गया जिसमें इसका खर्चा उस समय ₹73500 का था जिसमें ₹22000 का अर्थ बार बीकानेर राज्य पर और ₹51500 का भार शेखावाटी के सरदारों पर डाला गया ।
ब्रिटिश ब्रिगेड जहां लूटपाट होती थी वहां कार्यवाही करती थी ।इस कार्रवाई के रूप में अन्य सरदारों के गठजोड़ किए गए क्योंकि वे लोग इन महलों में जो लूटपाट करते थे यूं कहो कि अपना टेक्स वसूल करते थे ।
फल स्वरुप शेखावाटी ब्रिगेड का विरोध होता रहा सन् 1843 में यह ब्रिगेड हटा दी गई और इसकी जगह पैदल सिपाहियों की एक रेजीमेंट रख दी गई इसका भी खर्चा सरकार स्वयं वहन करती थी ।जयपुर राज्य में शांति और व्यवस्था के नाम पर राजमाता के समर्थक सामंतों को कुचलने के लिए शेखावाटी और तोरा वाटी पर आक्रमण किया गया इससे सैनिक अभियान के खर्चे की वसूली के लिए सांभर झील तथा जिले को ब्रिटिश सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया सन् 1835 में शेखावाटी और तोरा वाटी पर अंग्रेजों के आक्रमण का कारण वस्तुतः मीनों की विद्रोही गतिविधियां थी ।
जिन्हें राजमाता समर्थक सामंतों ने समर्थन दे रखा था मीणा लोग अंग्रेज समर्थकों को ही लूटते थे और अंग्रेज समर्थक सामंतों के क्षेत्र में ही अशांति तथा अव्यवस्था पैदा करते थे।
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नोट:-
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“”” शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी नामक पुस्तक का अध्ययन कीजिए””
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर

अंक 01 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनन्दन है। शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवता राम मीणा, श्री करना राम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत ,श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट सीकर भाग -1

अंक 01 में आप सभी पाठकों हार्दिक अभिनन्दन है।

शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी सांवता राम, करना राम मीणा भाग -1
राजस्थान का इतिहास लोक कथाओं में बहुत पुराना है पिछले सैकड़ों वर्षों से यहां के गायकार अपने-अपने वाद्य यंत्रों व तरह-तरह की लोक गाथाओं के माध्यम से गांव गांव ढाणी ढाणी में जाकर यहां की संस्कृति वीरता ,बहादुरी, दान शीलता और वीर प्रसूता आदि की गाथाएं बहुत ही सुंदर ढंग से लोगों के मध्य पहुंचाते थे। जिससे जनता उनके द्वारा गाए जाने वाली गाथा को बड़े प्रसन्न चित्त मन से सुनती थी इस तरह की गाथाओं को अधिकतर भोपा नाम की जाति के लोग गाया करते थे जिनका सहयोग उनकी धर्मपत्नी भोपी देती थी इस तरह इन जातियों के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इस तरह की गाथा गाया करते थे
लोककथा का मतलब है जनमानस से जुड़ी हुई घटना जिसमें सुनने वाले व्यक्ति में वीर ,रसात्मक, पौराणिक श्रृगारात्मक ,प्रेम कथात्मक ,रोमांचक और निर्वेदात्मक आदि का संचार होता था राजस्थान की लोक कथाओं में मुख्य रूप से गोगा जी, पाबूजी ,तेजाजी, बगड़ावत डूंगजी, जवाहर जी राजपूत, सांवताराम मीणा, करनाराम मीणा लोठू जाट जैसी एक वीरत्वमुल्क चरित्र के अनुरूप होने से राजस्थान के यहां के जनमानस के हृदय में बैठी हुई लोककथा हैं ।यह लोककथा शेखावाटी अंचल के सरदारों की जिन्होंने अपनी बहादुरी से यहां की जनता का दिल जीता और शेखावाटी के वीर बहादुर खूंखार जनता के चहेते अंग्रेज सरकार के दुश्मन जिनमें महान योद्धा सांवताराम राम मीणा कानाराम मीणा ,जवाहर जी ,डूगजी राजपूत और लोठू जाट 19वीं शताब्दी के जननायक रहे हैं इनकी लोकप्रियता के किस्से लोगों की जुबान पर रच बस गए उनकी वीरता के किस्से चारों दिशाओं पहुंचाने के लिए भोपा जाति अपने वाद्य यंत्र के माध्यम से गाकर पहुंचाते थे। जहां तक मैं मानता हूं किसी भी इतिहास के लिए सामग्री एकत्रित करना बहुत ही अधिक परिश्रम, समय और व्ययसाध्य कार्य है।
विषय वस्तु इतिहास संकलन में कितनी दिक्कतें आती हैं उसके लिए कहा भी गया है
जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई ।।
जैसा कि इतिहास लिखने वाला महसूस करता है कि उसको कितनी दिक्कतें आती हैं जिस तरह जिसके पैर में यदि कोई पीड़ा ना हो ,या कोई दर्द नहीं हो ,या पैरों में बिवाइयां फट जाती हैं उसी तरह इतिहास लिखने में तथ्य संग्रह करने में कितना कष्ट उठाना पड़ता है कितना धन, समय और श्रम लगता है यह वही जानता है जो इतिहास निकालता है या लिखता है।
आप पाठकों के लिए बहुत ही वीरता पूर्ण गाथा लेकर आ रहे हैं हमारी संस्था का एक दुसाध्य कार्य है जो एक टीम के माध्यम से किया जा रहा है तो आज शेखावाटी के महान वीर योद्धाओं का इतिहास आप सभी पाठकों की मांग के अनुसार आप सबके लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।
शेखावाटी क्षेत्र में सन् 1818 से लेकर 1857 स्वतंत्रता की प्रथम क्रांति के महान जननायकों का यह इतिहास अपने आप में एक गौरवान्वित इतिहास था ।यदि इस इतिहास को पढ़ाया जाता तो बालक अपने आप को बहुत ही गौरवान्वित महसूस करते, तो आइए आज के इतिहास की शुरुआत करते हैं। जिसमें शेखावाटी के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सांवताराम मीणा, करनाराम मीणा ,डूंगजी, जवाहर जी राजपूत और महान ताकतवर लोठू जाट आजादी की क्रांति के अग्रदूत बने और अंग्रेजों व उनके पीछ लघु देसी रियासतों के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाया जो अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति तक जारी रहा। इनका तेज धावक ऊंटों का काफिला शेखावाटी क्षेत्र में बिना रोक-टोक विचरण करता रहा ,गांव के बाहर रेत के टीलों पर इनके रात्रि विश्राम की अनेक गांव के बड़े बुजुर्गों से इनके किस्से चर्चा सुनने को मिलती है विदेशी शासन के अत्याचारों से संघर्षों के कारण यह अपने समय के महान जननायक बने और क्षेत्र की जनता का इनको भरपूर समर्थन मिलता रहा था इन सूरमाओं उनकी स्मृति में कवियों, भाट ,चारणों द्वारा रचित यशोगान ढाणी ढाणी गांव-गांव घर-घर इनके गौरव की गाथा को चारण भाट भोपा आदि गाकर वीर भावना का विरद सुनाते रहते थे तथा भोपा भोपी अपने वाद्ययंत्र रावण हत्था के द्वारा इनका यशोगान गाया करते थे,तब पुरुषों की भुजाएं भी फड़कने लग जाती थी जब इनकी वीरता पूर्ण कथा को लोगों के मुख के सामने गाया जाता था तो जोश भर जाता था जब उन वीरों की शेर की दहाड़ गुंजती होगी तब क्या गजब होता होगा आदि काल से जितने भी आज तक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने निस्वार्थ निष्काम भाव से जनहित के कार्य करवाए हैं चाहे कितना ही कठिनाई आई हो ,कुर्बानियां और प्राणों की आहुति देनी पड़ी हो ।
कारण चाहे कुछ भी रहे हो ।
आत्मसम्मान का हो या नारी के अपमान का हो!
चाहे स्वाभिमान का हो !
उसके लिए उन्होंने सिर कटा दिए मगर जुल्म अत्याचार अनाचार अन्याय और अनैतिकता के आगे कभी ये लोग लालच व सिर नहीं झुकाया।
ऐसे त्यागी तपस्वी बलिदानी सर्वस्व न्योछावर करने वाले महापुरुषों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में या शहीद दिवस स्मृति के रूप में मनाते तो कितना अच्छा होता ।
जिसका उद्देश्य वर्तमान जीवन जीने वाले जनमानस को भविष्य के लिए सही दिशा ,दीक्षा ,शिक्षा के परिणाम मिल सके जिससे सभी का कल्याण हो सकता है।
कई बार ऐसा होता है कि कुछ लोग कानून की नजर में अपराधी होते हैं लेकिन समाज व जन सामान्य के लिए वे आदरणीय होते हैं ऐसे व्यक्ति साधारण जनता के हितों के लिए शासन के खिलाफ खड़े होते हैं ।
देश की आजादी के लिए विदेशी सरकार के विरुद्ध बगावत करने वाले भी ऐसे ही लोग थे,
उनको उस समय के राजा महाराजा और अंग्रेज सरकार के नुमाइंदे उनको डाकू का नाम देकर बदनाम किया जबकि वह अमीर लोगों के आवश्यकता से अधिक धन को लूट कर गरीब जनता की मांग को पूरा करते थे तथा सामंत लोगों के जुल्मों के विरुद्ध आवाज उठाकर शस्त्र उठाने वाले वे लोग ऐसे थे जो कानून के हिसाब से डाकू या अपराधी थे परंतु गरीब लोगों में बहुत ही लोकप्रिय और आदरणीय थे उन्हीं में से सांवता राम मीणा ,करणा मीणा ,डूंगजी, जवाहर जी राजपूत और लोठू जाट नामक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने गरीबों की बहुत मदद की उनके दुख दर्द में काम आए सांवता राम मीणा और करणाराम मीणा दोनों भाई बड़े वीर थे ,वे जानते थे कि इतने बड़े तूफान अंग्रेजी सरकार के सामने वे नहीं टिक सकेंगे लेकिन फिर भी साहस बनाए रखा ,अंग्रेज सरकार ने भी उनको पकड़ने के लिए जासूस छोड रखे थे ,लेकिन उन्होंने कभी परवाह नहीं की मुगल साम्राज्य के पतन के उपरांत भारत में राजनीतिक गतिविधियों में मराठा शक्ति का उदय हुआ भारतीय संस्कृति एवं धरातल पर जब तक मुगल शासकों का राज रहा तब तक यहां अन्य किसी शासकों प्रवेश नहीं होने दिया परंतु धीरे-धीरे इनकी शक्ति कमजोर हो गई जिससे यहां कई शक्तिशाली शासक अपना आधिपत्य जमाने लगे जिसमें मुख्य रूप से मराठा शक्ति सबसे महत्वपूर्ण थी जो एक आंधी की तरह पूरे भारतवर्ष में छा गई मुगल साम्राज्य के प्रति जनता में बहुत क्रोध छा गया
था उनके रक्त पात से जनता दुखी हो गई थी उसमें राजस्थान के राजपूत शासकों के हालात बहुत ही खराब हो गए थे ,कई पीढ़ियों से यहां के रजवाड़े मुगलों के शोषण दमन से निसप्राण हो गए थे इस कारण राजपूत राजा आपसी फूट के कारण काफी कमजोर पड़ गए थे इसी समय मराठों का मुगलों के साथ युद्ध वह रजवाड़ों पर आक्रमण करके उनकी धन संपत्ति को लूटा जिससे रजवाड़ों को बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ा इसके लिए कहा भी गया था कि
कोढ़ में खाज उत्पन्न होना ।
लगातार—————-

लेखक तारा चन्द मीणा “चीता”
प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर