अंक -5 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 5

इन स्वतंत्रता प्रेमियों की गतिविधियों पर नियंत्रण पाने के लिए ही शेखावाटी और तोरावाटी पर आक्रमण किया जाता था, इनके सुरक्षा स्थलों को अंग्रेजी सरकार व देसी रियासतों के ठिकानेदारों द्वारा नष्ट कर दिया जाता था ।
सन 1834 के समय तोरावटी की समस्या महाराज बन्ने सिंह के शासनकाल में अलवर राज्य के तोरावटी के मीणा सरदारों के लिए अंग्रेज सरकार के आदेशों का पालन नहीं करना और वहां की फसल को टैक्स के रूप में ले जाना जिससे वहां का राजस्व वहां के क्षेत्रीय रियासतों के ठेकेदारों के पास जमा ना होना।
इसलिए अंग्रेज सरकार ने इन स्वतंत्रता प्रेमियों को डकैत घोषित कर दिया तथा इनके ऊपर फसल चुराने तथा कई तरह के इल्जाम लगाने शुरू कर दिए ,अंग्रेज सरकार के आदेशानुसार राव राजा अलवर ने तोरावाटी में दो रिसाला घुड़सवार सैनिक सहायता भेजी, जिसने तोरावटी में मीनों की इस लगान वसूली करने की तरीके को डकैती नाम देकर समाप्त करने के लिए शांति व्यवस्था कायम करने का जिम्मा अपने ऊपर लिया ।
4 जून 1835 को कर्नल एल्विन तथा उसके सहायक मार्टिन ब्लैक पर जयपुर में घातक हमला हुआ जिसमें ब्लैक और उसके 5 नौकरों को दिनदहाड़े बीच शहर में भीड़ के द्वारा मार दिया गया और उसमें भी मीणा सरदारों का नाम अग्रिम पंक्ति में क्षेत्रीय रियासत दारों के द्वारा लिखवाया गया और उन्हीं में दो मीणा सरदारों को फांसी के फंदे तक पहुंचा दिया गया।
शेखावाटी और तोरावाटी के मीनों पर अंग्रेजों के आक्रमण ने जयपुर के मीणाओं को उत्तेजित कर रखा था।
अतः वह केवल अवसर की तलाश में थे ,प्रंसगवश यहां यह बता देना असंगत नहीं होगा कि उस समय अल्प व्यस्क महाराजा रामसिंह द्वितीय का राज था अंग्रेज समर्थक रावल बेरी साल उनका सरंक्षक बना हुआ था। अंग्रेज विरोधी गुट राजमाता माझी चंद्रावत को राज्य की रिजेंट बनाना चाहता था इसी कारण वहां अव्यवस्था फैली थी। अंग्रेजों ने शेखावाटी और तोरावटी के सैनिक अभियान के खर्चे की वसूली के लिए सांभर झील को अपने नियंत्रण में ले लिया था राजस्थान के स्वाधीनता संग्राम के अनुसार सन् 1835 में सांभर झील पर अधिकार शेखावाटी और तोरावाटी पर नियंत्रण शेखावाटी ब्रिगेड का गठन आदि ऐसी घटनाएं थी जिनमें रानी मां की स्थिति को दुर्बल बनाया था ।
आखिरकार 1835 में रानी के विश्वासपात्र झूथा राम को अल्पव्यस्क शासक को जहर देकर मारने के झूठे आरोप में राज्य से बाहर भेज दिया और बिना मुकदमा चलाए उसे बंदी रखा ।इस विवरण से यह निष्कर्ष सहज ही निकल सकते हैं कि शेखावाटी और तोरावटी के मीनों की अंग्रेज विरोधी गतिविधियां राजमाता के समर्थन में थी न कि मीनों द्वारा आदतन गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त रहने के कारण जैसा कि सरसरी तौर पर अधिकांश इतिहासकारों ने माना है ।
वस्तुतः यह शासन में अंग्रेजों की दखलअंदाजी का नतीजा था ।जयपुर रियासत के सामंतों में अंग्रेजो के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह का बिगुल बजाने वाले बठोठ जागीरदार डूंगर सिंह और उसकी टीम का था।
उन्होंने सन् 1837 में सिंगरावट के किले से अंग्रेजी सेना का सामना किया ।उसका साथ देने वाले महान योद्धा सांवता राम मीणा, करनाराम मीणा ,लोठू जाट और उनके सहयोगी थे। जागीरदारों के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप को लेकर ही सांवता राम मीणा, डूंगर सिंह व उनका भाई जवाहर सिंह प्रसिद्ध क्रांतिकारी करना राम मीणा , लोठू जाट ,सुरजाराम बलाई ,बालू नाई आदि ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इनके दल का उस समय में ऐसा आतंक था कि जयपुर, बीकानेर और जोधपुर के राजा महाराजा उनके नाम से डरते थे।
शेखावाटी क्षेत्र में डूगजी,जवाहर सिंह जी, और सांवता राम करणा, राम मीणा के नाम भी बहुत ही प्रसिद्ध है।
यह लोग धन वालों को उचित धन के साथ लूटते थे और लूट का धन गरीबों में उसकी आवश्यकता अनुसार बांट देते थे और उसमें से कुछ बचता था उसको अपने लिए अंग्रेजो के खिलाफ और अंग्रेजो के पीच्छलग्गों रियासतों के साथ विद्रोह करने में काम लेते थे ।
सन् 1847 में अपने चार पांच सौ साथियों के साथ नसीराबाद की अंग्रेजी छावनी को भी लूटा था इस क्षेत्र के मीणाओं के अतीत से इस अवधारणा को बल मिलता है कि1835 में शेखावाटी और तोरावटी के क्षेत्र में अंग्रेजों के सैनिक अभियान से ज्यादा समय तक शांति स्थापित नहीं रह सकी थी। इसके बाद भी उन्होंने अपनी विद्रोही गतिविधियां सांवता राम मीणा करनाराम मीणा, डूंगजी जवाहर जी के संयुक्त नेतृत्व में जारी रहा था ।शेखावाटी और तोंरावटी क्षेत्र के मीणाओ की सूझबूझ और दिलेरी के अनेक किस्से इतिहास की पुस्तकों में बहुत से जगह बिखरे पड़े हैं जो किसी भी शोधार्थी के लिए रोचक विषय बन सकता है ।
राजा महाराजा या सामंतों द्वारा मीणाओं को वह काम सौंपा जाता था,जो और किसी से नहीं होता था,उसे वे अचूक रुप से संपन्न करते थे एक और उदाहरण प्रस्तुत है शेखावाटी के क्षेत्र के मीनों की महान दिलेरी का।
शेखावाटी क्षेत्र में स्वतंत्रता परिणाम प्रेमियों की बढ़ती हुई गतिविधियों को दबाने के लिए मेजर फॉरेस्ट्रर की नियुक्ति की, शेखावाटी क्षेत्र में की गई जिसमें मेजर ने गुढा के ठाकुर धीर सिंह की गडढी पर तोपों से गोले बरसाए और उसे ढहा दिया। तथा ठाकुर का सिर काटकर झुंझुनू ले गया और उसे सैनिकों के पहरे में रखवा दिया। ठाकुर के दाह संस्कार के लिए सिर अति आवश्यक था। इसलिए शेखावाटी क्षेत्र के महान योद्धा मीणा समाज के नव युवकों में से एक युवक का चयन किया गया जो सैनिक छावनी से सैनिकों की पहरेदारी में रखे हुए ठाकुर साहब का शव रात के पहरे में सैनिकों की छावनी में से उठाकर ले आया तब राजपूतों ने ठाकुर का दाह संस्कार किया दूसरे दिन जब सुबह मेजर फॉरेस्ट को इस बात का पता लगा बहुत ही अचंभित हुए और मीणा युवक को कड़े पहरे के बीच से ठाकुर का शरीर कैसे ले गया इस बात पर वह चर्चा करने लगे तथा उसकी दिलेरी, बुद्धिमानी आदि बातों पर मैजर फॉरेस्टर काफी दंग हो गए ,काफी तथ्य और किस्से सुनने के उपरांत यह पाया जाता है कि शेखावाटी के मीणा बहादुरी में किसी से कम नहीं थे और बुद्धि में सबसे तेज थे। जयपुर रियासत में अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष शेखावाटी और तोंरावटी के मीणो ने किया था जिसे अंग्रेज विरोधी जागीरदारों का खुला समर्थन प्राप्त था ।
परंतु इतिहासकारों और वर्तमान लोकतंत्र के ठेकेदारों ने कुछ लोगों को तो स्वतत्रता सेनानी का खिताब दे दिया और दूसरी तरफ शेखावाटी के मीणाओं का अंग्रेजो के खिलाफ इतना व्यापक विद्रोह उनकी उपेक्षा का ही शिकार बना रहा और उन्हें चोर डाकू का खिताब दिया जाता रहा ।
आधार विहिन मान्यताएं जातीय विद्वेष और पूर्वाग्रह की मानसिकता के अलावा इसका और क्या हुआ कारण हो सकता है।
सावता राम मीणा करना राम मीणा लोठू जाट, डूगजी और जवाहर जी राजपूत ,इनको डकैत धाड़वी लुटेरे आदि हीनता पूर्ण संबोधन उसे अपने इतिहास में वर्णित किया है ।भारतीय स्वतंत्रता तथा राष्ट्र प्रेम पूर्ण ऐसे कार्यो को विदेशी शत्रु और कृतघ्न देशद्रोही डकैती कर उनकी राष्ट्रभक्ति पर सफेदी पोत सकते हैं। राजस्थान में सत्ता के बिना अन्याय के प्रतिकार स्वरूप विद्रोह करने वाले योद्धाओं को बारोठिया शब्द से घोषित किया जाता रहा है जनमानस उन्हीं की वंदना करता है जो महान लक्ष्य के लिए उच्च आदर्शों पर गमन करते हैं ।
सांवता राम मीणा, करनाराम मीणा, डूगजी ,जवाहर जी सुरजाराम बलाई ,सोबन सुनार , सांखू लुहार,लोठू जाट, बालू राम नाई,आदि उच्च कोटि के मातृभूमि प्रेमी वीर थे उनके समकालीन राजस्थानी इतिहासकारों विशिष्ट राष्ट्रीय कवियों और लोक कवियों ने मुक्त स्वर से उनके वीर कार्यों की श्लाघा के दोहे ,सोरठे, गीत ,कवित्त और छांवलिया रचकर उनकी वीरता को अनुकरणीय तथा प्रेरणीय रूप में प्रस्तुत किया तब शिष्ट समाज में उनके प्रति कैसी श्रद्धा थी उसकी साक्षी संग्रहित वीर गीतों में मुखरित है।
लगातार———-
लेखक तारा चंद मीणा चीता प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर

नोट:-
विस्तार से पढ़ने के लिए शेखावाटी वीर स्वतंत्रता सेनानी नामक पुस्तक का अध्ययन कीजिए।
धन्यवाद।

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