कप्तान रघुनाथ सिंह मीणा की शेर के साथ दंगल (कुश्ती)।
महाराज माधोसिंह जी कप्तान रघुनाथ पर इतना विश्वास करने लग गए थे कि जहां भी जाते थे उनको साथ रखते थे तथा बहुत से फैसले जो अंतरंग मन के होते थे। वह कप्तान साहब की सलाह मशवरा से करते थे। उनकी दिलेरी और वफादारी से इतने खुश हो चुके थे कि आखेट खेलने जाते तो विशेषकर कप्तान रघुनाथ सिंह जी को साथ लेकर जाते थे ।इस तरह की बातें महाराजा के खास सेवक बाला बख्स को नागवार गुजरी तथा वह रघुनाथ जी से ईर्ष्या रखने लग गया व मौके की तलाश में रहने लगे कि मैं कैसे भी रघुनाथ सिंह को महाराज श्री के पास से हटाकर इसकी दूरियां बनाऊं। इसके लिए समय-समय पर वह महाराज को कप्तान के खिलाफ कुछ न कुछ बहकाता रहता था ।एक दिन राजा साहब दरबार में अकेले ही बैठे थे तब बाला बख्स उनके पास जाकर रघुनाथजी को ठिकाने लगाने के लिए राजा साहब को उनके प्रति कान भरने लगा और कहा महाराज मैं आपको एक ऐसे यौद्धा के बारे में परिचय कराना चाहता हूं जो खूंखार से खूंखार शेर को भी पछाड़ सकता है यदि आप उस महान वीर योद्धा का नाम सुनेंगे तो आप के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे ऐसी बातें बाला बख्स सेवक, महाराज माधो सिंह जी से करने लगा। जब महाराज ने बाला बख्स को कहा कि बातें बनाने की जरूरत नहीं! बताओ ऐसा कौन योद्धा है?
जो शेर से भी भिड़ सकता है?
तब निवेदन करते हुए बाला बख्स कहता है महाराज आपके ही पास में आपके ही निजी और सहयोगी सलाहकार के रूप में कप्तान रघुनाथ सिंह जी हैं !
जो खूंखार से खूंखार शेर से भी कुश्ती लड़ कर उसको मात दे सकते हैं ।
जब यह बातें राजा माधो सिंह जी ने सुनी तो बड़े ही अचंभित हुए।
मन ही मन सोचने लगे कि ऐसा भी हो सकता है क्या?
इतनी ताकत कि जो शेर से भी भीड़ने की अपनी औकात रखता है ।
उस समय कप्तान रघुनाथ सिंह राजकीय कार्य से कहीं बाहर गए हुए थे राजा के मन में एक के बाद एक प्रश्न उसकी बहादुरी के प्रति आने लगे और उन्हें कप्तान साहब का इंतजार बेसब्री से करने लगे तथा अपने सेवक के माध्यम से कप्तान साहब को बुलाने का आदेश पारित करते है। कप्तान रघुनाथ सिंह के पास जब यह समाचार लेकर सेवक पहुंचता है कि राजा साहब ने आप को आमंत्रित किया है।
कप्तान साहब राजा के बुलावे पर तुरंत दरबार में हाजिर होते हैं तथा दुआ सलाम करके निवेदन करते हैं कि आपने मुझे याद किया आदेश कीजिए मेरे लिए क्या हुक्म है।
तब राजा ने कप्तान साहब से पूछा कि हमने सुना है कि आप इतने दिलदार और ताकतवर योद्धा हैं कि आप शेर के साथ कुश्ती लड़ सकते हैं तथा आपकी बहादुरी के सामने शेर की ताकत फीकी पड़ती है ।
इस तरह की बातें कप्तान साहब से कही जाती है।
जब कप्तान साहब यह बातें सुन रहे थे बड़े ही अचंभित हुए तथा इन शब्दों को सुनकर दंग रह गए ।
लेकिन बात को भापंते हुए कुछ ही क्षणों में ही सोच कर कहा हां महाराज क्यों नहीं?
यह तो मेरे बाएं हाथ का खेल है!
रघुनाथ कप्तान सिंह ने सोचा कि यदि मैं इनको मना करूंगा तो यह वैसे भी मुझे राज्य आदेश के अनुसार मेरे ऊपर क्रोधित हो जाएंगे तथा हो सकता है मुझे वैसे भी मरवा दें।
तो क्यों न मैं शेर के साथ युद्ध करके ही वीरता से शहीद होऊं।
इसके हाथों से सजा पाना मेरे लिए कलंक होगा।
जबकि शेर से मैं यदि युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त करता हूं तो एक योद्धा की मौत पाकर शहीद का दर्जा मुझे प्राप्त होगा ।
इसलिए मन ही मन कप्तान साहब ने सोचा और शेर से युद्ध करने के लिए तैयार हुए तथा सोच विचार कर मन ही मन उन्होंने हां कर दी और कहा कि महाराज आपका आदेश होगा उसी के अनुरूप में शेर से कुश्ती लड़ने के लिए तैयार हूं ।
क्या था राज्य में ढिंढोरा पिटवा दिया गया की हमारे राज्य के महान योद्धा कप्तान रघुनाथ सिंह मीणा शेर के साथ कुश्ती लड़ेंगे। इस तरह की योजना बनाकर आसपास के क्षेत्र में इसकी सूचना प्रसारित करा दी और उसके लिए दंगल की तैयारी सुनियोजित तरीके से कराई गई वहां खड़ा बाला बख्स मन ही मन अपनी योजना पर प्रसन्न चित्त हो रहा था तथा अपने विरोधी को ठिकाने लगाने के लिए उसकी योजना सफल होती नजर आ रही थी ।
परंतु पास में खड़े अन्य लोग काफी चिंतित हो गए कि जो काफी दिनों से बाला बख्स इसके पीछे पड़ा था ।
आज वह अपनी मंजिल को सफलता की ओर बढ़ते देख रहा है सभी के मन में बड़ा अफसोस भी था परंतु कर भी क्या सकते थे राजा राजा ही होता है ।
उसके सामने दूसरे का क्या जोर चले आदि बातें सोच कर सभी चिंतित हुए।
लगातार…………..
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर