अंक -15 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-15

करणा राम मीणा के द्वारा सेल्यूलर जेल (काला पानी)की जानकारी देना
यह जेल अंडमान निकोबार दीप समूह में स्थिति पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित है तथा समुद्र से सैकड़ों किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता है। यह काला पानी के नाम से कुख्यात है।अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अत्याचारों के साथ ही उनको इस जेल में रखा जाता था ।यहां जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं ।इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेलजोल को रोकना था।भारत की आजादी के लिए लड़ी गई पहली जंग में विभिन्न प्रकार के राजनीतिक विद्रोहियों के साथ साथ खतरनाक किस्म के अपराधियों को भी निर्वासित कर दिया गया था अंडमान द्वीप की इसी दंडी बस्ती को काला पानी तथा निर्वाचित कैदियों को दामली का नाम प्राप्त हुआ। भारतीय बंदियों के लिए प्रथम दंडी बस्ती या पीनल सेटलमेंट अंग्रेजों ने सागर पार सुमात्रा के बैंकोलीन नामक स्थान पर बनाई गई थी अंग्रेजों ने इस पर 1685 में अधिकार कर लिया था।
सबसे पहले 1787 में भारतीय बंदियों को यहां मार्लबासे के दुर्ग में निर्वाचित किया गया था। यहां भेजे जाने वाले अधिकांश बंदी हत्या लूट डकैती ठगी और स्वतंत्रता का आंदोलन छेड़ने वाले तथा धोखाधड़ी के अपराधों के लिए दंडित किए हुए थे।सन 1823 में जब बैंकोलीन पर डचों का अधिकार हो गया था तब इन बंदियों को मलाया के पेनांग नामक स्थान पर बने एक अन्य दंडी बस्ती में स्थानांतरण कर दिया गया इस स्थानांतरण के समय बंगाल में मद्रास प्रेसीडेंसी से आए हुए कुल लगभग 800 से 900 भारतीय बंदियों को यहां रखा गया था ।बेकोलीन से पेनांग के तरीक सिंगापुर यथा मलका में दंडी बस्तियां बनाई गई थी। सन 1832 में इन सब को सिंगापुर भेज दिया गया था इनके अतिरिक्त अंग्रेजों ने सन 1826 के बाद म्यामार में अराकान व तेनासरीम में तथा मारीशस में ही भी दंडी बस्तियों का निर्माण कराया गया था ।कालापानी कारावास के जन्मदाता मैकाले द्वारा एक ऐसी दंड तकनीकों का निवास विकसित करना था जो अराजकता के स्थान पर व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त कर सके।
1835 में ही उसने एक समिति का गठन कर कारावास के नियमों को विकसित करने का कार्य किया इस समिति ने एक ऐसी कारावास व्यवस्था की आवश्यकता पर बल दिया जिसमें प्रत्येक कारावास का एक अधीक्षक हो।प्रत्येक बंदी के सोने के लिए एक अलग स्थान हो। एकांत काल कोठरी की व्यवस्था हो तथा भौतिक सुख अनुपस्थित हो ।अंडमान की दंडी बस्ती में निर्वाचित बंदियों को दंड व अनुशासन के जिन नियमों के अंतर्गत उनका मूल स्रोत उक्त मैकाले समिति द्वारा विकसित वही कारावास व्यवस्था थी। जो सन् 1830 में बनाई थी ।इतना सुनते ही रानी को चक्कर आने लगे और वह बोली करना राम जी लोठूजी जवाहर जी आप यथाशीघ्र अपने सरदार को छुड़ाने का प्रयास करें अन्यथा अनर्थ हो जाएगा।
मैं अनाथ हो जाऊंगी ।
मेरे बच्चे अनाथ हो जाएंगे ।
इस तरह विलाप करती हुई तीनों से निवेदन करती है और जल्दी से जल्दी डूंगजी को छुड़ाने के लिए कहती है।
लगातार—–
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर

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