अंक – 17 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-17

करनाराम मीणा की नजर चरते हुए रेवड़ पर पड़ चुकी थी और वह योजना के अनुसार उसमें से एक मिंडा लाना चाहता था। उसके लिए वह एक भेड़ा लेने के लिए यमुना के किनारे चल दिया और वहां नदिया किनारे आसपास भेड़ों के घूम रहे थे , उनके चराने वाले गुर्जर जाति के लोग थे,उनसे जाकर रामा श्यामा की और नमस्कार किया तथा गुर्जर और मीणा का भाईचारा एक सा था इसलिए उन्होंने करणाराम मीणा ने उनको देखकर जिस लहजे के दौरान वंदन किया था उसी लहजे में रेवड़ चराने वाले गुर्जर ने राजस्थानी मीणा को रामा श्यामा की तथा अपने पास आने का कारण पूछा जब करना राम मीणा ने भाई बोला कि भाई नमस्कार पहले इससे गुर्जर जाति के लोग बड़े ही राजी हुए।
ग्वाले ने कहा कि आपने हमारे को भाई बनाया है बताओ क्या काम है।
तब गुजर के लड़के ने कहा मेरा नाम श्याम सिंह गुर्जर है आप तो मेरे योग्य सेवा बताओ तो करना राम मीणा बोला भाई हमें एक मींढा चाहिए।
गुर्जर के लड़के ने कहा भाई आपने हमें भैया बनाया है और हम आपके भाई हैं इसलिए एक नहीं आप दो ले जाओ,भाई हमें तो एक ही मिंढा चाहिए ।करना राम मीणा ने कहा और उसकी कीमत बता दो क्या लोगे बताया जाता है उस समय भारत वर्ष में अतिथियों की सेवा करना सनातन धर्मियों का अपना नैतिक दायित्व था और समझते थे इसलिए श्याम सिंह गुर्जर ने कहा आप बड़े सरदार लगते हैं मुझे आप मीणाओं के सरदारों में सरदार मुझे नजर आ रहे हैं आपने जो इस मिंडा की मांग की है ।
मैं मानता हूं कि आप मीणा जाति के हैं। इसलिए आपके पैसे में लेकर कहां रखूंगा तथा मैं क्या करूंगा आदि बातें भी नम्रतापूर्वक गुर्जर जाति के लड़के श्याम सिंह ने की। ऐसी बातें करने के उपरांत उन्होंने कहा कि आपके सामने इसकी क्या कीमत है। यह तो आपके मान के सामने कुछ भी नहीं है।
आप प्रदेशी हैं यह तो मेरा भाग्य कितना अच्छा है कि मुझे आपकी सेवा करने का मौका मिला है ।
आप मुझसे एक मिंढा मांग रहे हैं।
मैं आपकी सेवा में 5 मिंढा भी समर्पित कर दूं तो भी कम है गुर्जर श्यामसिह ने कहा।
करना राम,गुर्जर की वफादारी वह ईमानदारी तथा मेजबानी से बहुत ही खुश हुआ और सोचा तथा उस गुर्जर को देखा एकदम फटे हाल कपड़े और गरीब परिस्थिति में वह दिखाई दे रहा था तथा उसकी स्थिति भी दयनीय थी।
करनाराम ने सोचा इससे मुफ्त में मींढा लेना ठीक नहीं रहेगा । इस गरीब के साथ अन्याय होगा यह सोचकर करनाराम बोला देख भाई हम बाराती हैं इसलिए मुफ्त का मींढा नहीं ले सकते यदि तुम पैसे नहीं लोगे तो हम ऐसे ही चले जाएंगे उस गुर्जर ने कहा यह तो बात ठीक तो नहीं है पर आपको ऐसे भी नहीं जाने दूंगा ।
आप मुझे ₹5 द दीजिए
करना राम ने उसे पांच की जगह सात रूपये दिए और मींढा ले लिया।करनाराम ने एक ही झटके में मिढें को मार दिया और उसकी खाल बाल उसे भी उखाड़ दिए और उसको मुरदा बना लिया ।
लगातार……
लेखक तारा चंद मीणा चीता श्रीमाधोपुर सीकर

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