अंक -6 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग- 6

परम आदरणीय पाठको आज हम उन महान योद्धाओं का परिचय पढ़ते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता के प्रथम आंदोलन का बिगुल बजाया वे कर्णधार कौन थे ,कैसे थे ,कहां के रहने वाले थे ,जिसमें सबसे पहले परिचय हम बड़े भाई सांवता राम मीणा व छोटे भाई करना राम मीणा का परिचय आपको प्रस्तुत कर रहे हैं जिन्होंने अपनी वाकपटुता से संपूर्ण शेखावाटी क्षेत्र का दिल से जीता था।
सांवता राम मीणा शेखावाटी के वीरवर श्री नाथू लाल जी के जेष्ठ पुत्र थे और करनाराम नाथूलाल जी के पांचवी संतान के रूप में तीसरे पुत्र के रूप में पैदा हुए थे इनकी माता जी का नाम श्रीमती हाला था, सांवता राम का जन्म लगभग सन् 1795 में तथा करना राम का जन्म लगभग सन् 1800 में गांव मंगलूना तहसील लक्ष्मणगढ़ जिला सीकर राजस्थान में हुआ था। टांई पाटोदा जिला झुंझुनू के नाथूराम जी मीणा जिनका कांगस गोत्र में जन्म हुआ, जब यह बड़े हुए तो जीवनोपार्जन हेतु आदिवासी घुमक्कड़ जीवन बिताते हुए अपना गुजर-बसर करते हुए रोजगार की तलाश में सन 1790 के आसपास ग्राम मंगलूना में पहुंचे यहां एक कुटिया बनाकर अपना आशियाना बनाया और पास के गांव बटोट पाटोदा के सामंत ठाकुर दलेल सिंह उदय सिंह से रोजगार के लिए संपर्क किया ठाकुर दलेल सिंह ने नाथूराम का सुदृढ़ शरीर तथा आचार विचार देकर अपनी जागीर में उनको चौकीदार के पद पर नियुक्त कर लिया। नाथूराम अपनी विश्वसनीयता कर्मठता त्याग की भावना से ठाकुर दलेल सिंह उदय सिंह के दिल को भा गए और उसको एक वफादार सेवक मानकर अपनी सेना में प्रतीत हो रहा था , सूर्य भगवान की कृपा से नाथूराम को पुत्र रतन 1795 के आसपास एक लड़का पैदा हुआ जिसका नाम सेलो रखा गया ,इसके उपरांत चार और
पुत्रों ने नाथूराम जी के घर में जन्म लिया जो भीगो, करणो, मान और कालू हुए सभी बालक समय के साथ-साथ बड़े होने लगे इनमें से सैलो और करना बालक जन्म से ही होनहार थे, माता श्रीमती हाला ने इनकी परवरिश बड़े ही लाड चाव से और संस्कार पूर्व की थी। यह बालक जैसे-जैसे आयु प्राप्त कर रहे थे इनकी बहादुरी, वीरता उद्दंडता आदि से माता रोज परिचित होती रहती थी ।अपने नन्हे नन्हे बच्चों के करतब देखकर माता काफी खुश होती थी ।उधर ठाकुर दलेल सिंह उदय सिंह के विजय सिंह जवाहर सिंह ज्ञान सिंह डूंगर सिंह व रामनाथ सिंह नामक बालक पल पढ़ रहे थे ।
नाथूराम का ठाकुरों के संपर्क में रहने से उसके बालक भी राजकुमारों के संपर्क में आने लग गए और धीरे-धीरे इन बालकों में घनिष्ठ दोस्ती हो गई बालक ज्यू ही बड़े हुए युवावस्था पार की तो जवाहर सिंह डूंगर सिंह और सैलो सांवता राम व करनाराम में घनिष्ठ मित्रता हो गई ।डूंगर सिंह बड़ा हुआ तो उनके ठिकाने की जागीर बटोट ठिकाने की शेखावाटी ब्रिगेड की घुड़सवार फौज का रिसालदार के पद पर 16 वर्ष की उम्र में नियुक्ति मिल गई थी ,शेखावाटी ब्रिगेड की स्थापना अंग्रेजों की संधि में रावराजा सीकर से थी,डूंगजी शेखावाटी ब्रिगेड में काम करते थे परंतु धीरे-धीरे अंग्रेजों की चाल समझ गए और अंग्रेजों की ब्रिगेड से 1834 में त्याग पत्र दे दिया और बागी बन गए क्योंकि अंग्रेजों की नीति फूट डालो राज करो की थी।इस तरह डूंगजी अपने गांव बठोठ में ही अपने भाई जवाहर सिंह को साथ लेकर अंग्रेजो के विरुद्ध एक दल की स्थापना की और उसी समय तक सांवता राम मीणा और करनाराम भी होशियार हो गए थे।
जब डूंगजी का इनसे संपर्क हुआ और दोनों भाइयों की बहादुरी, वीरता ,शारीरिक गठन, वाकपटुता ,चंचलता सर्वगुण संपन्न जानकर इनको साथ लेकर अंग्रेजो के खिलाफ एक दल का गठन किया ।
इस दल में सांखू लुहार शोभन सुनार और लौठू जाट आदि जवानों को भर्ती किया और अंग्रेजों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई दलों में अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी गई और आप दल के अग्रणी नेता बने सांवताराम, करना राम मीणा और इन्हीं के साथ लोठू जाट नाम का जवान था इन तीनों की बहादुरी देखकर डूंगर सिंह ने इनको अलग-अलग दलों का सरदार नियुक्त कर दिया। एक दल में डूंगर सिंह अपने साथ करना मीणा व लोठू जाट को रखने लगा दूसरे दल में जवार सिंह अपने साथ सांवता राम मीणा को सरदार बना कर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का अभियान छेड़ा इनका मुख्य लक्ष्य अमीरों का माल लूट कर गरीबों को बांटना तथा अंग्रेजों की छावनी को लूट कर हथियारों को अपने कब्जे में रखना तथा धन को असहाय गरीब जनता में बांट देना यही इनका प्रमुख उद्देश्य था। डूंगजी जवाहर जी अपने साथियों को साथ रखते थे किसी भी तरह की वारदात करते तो एक साथ करते थे इनके साथी वफादार थे कोई भाड़े के टट्टू नहीं थे वे देश की स्वतंत्रता के पहले सिपाही थे।
ये स्वतंत्रता आंदोलन की नींव के पत्थर थे।स्वतंत्रता की लड़ाई में मीणाओं की अहम भूमिका रही किंतु एक साजिश के तहत उनके नामों का उल्लेख इतिहास में कहीं नहीं मिलता है !
कहीं थोड़ा बहुत मिलता है तो नाम मात्र का!
भारत के बुद्धिजीवियों ने अपना वर्चस्व बनाने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में मीणाओं के सहयोग को इतिहास का हिस्सा नहीं बनने दिया !
इतना ही नहीं उन्होंने अंग्रेजों का द्वारा किए गए अत्याचारी कृत्यों को भी देशी राजाओं के नाम डाल कर उनको भी बदनाम करने और आम भारतीय में उनके प्रति घृणा का प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
“” अंग्रेज स्वयं लुटेरे थे जो भारत का धन लूट लूट कर इंग्लैंड ले जा रहे थे और कई देशी रियासतों के राजा उनके पिछलग्गू बने हुए थे अतः सांवता राम मीणा करनाराम मीणा,वीर लोठू जाट ,डूंगजी ,जवाहर जी राजपूत का दल अंग्रेजों के राज्य में अजमेर ,मेरवाड़ा ,जयपुर ,जोधपुर ,
पटियाला आदि क्षेत्रों में डाका डाल कर लाते और शेखावाटी क्षेत्र में गरीबों की पुत्रियों की शादी करने भात भरने और असहायों की मदद करने में खर्च करते थे।शेखावाटी में इन्होंने गरीबों को नहीं सताया इसलिए यहां की जनता ने इनको मान सम्मान दिया और सिर पर इनको ताज की तरह रखते थे उनका प्रारंभिक ध्येय,असामाजिक तत्व एवं सूदखोर सेठों में भय बिठाना था नैतिकता की रक्षा करने का उनका प्रयास था बड़े सेठों के यहां धहाडे डालते और उनकी काली करतूतों के लिए उन्हें फटकारते। उनके बही बस्ते अग्नि देवता को सौंप देते थे, जिससे गरीबों के ऊपर तकाजा न कर सकें ।यदि उनको धन से मोह होता और धन प्राप्ति के लिए डाके करते तो उनकी बहियां क्यों फूंकते ।
उनकी इस प्रकार की कार्रवाई से गरीब लोगों को राहत मिली व सांवताराम व करनाराम के पक्षधर बनने लगे जहां बात चलती वहां गांव के लोग इन महावीरों की भूरि भूरि प्रशंसा करते थे । सेठों को और बदमाश लोगों को आंख दिखाने लगे यद्यपि उनका ध्येय नैतिकता बनाए रखने का था लेकिन फिर भी अच्छे विचार रखते हुए उनसे कहीं भूल भी हुई होगी। मानव स्वभाव भूल करना है ।
भल्ले काम करने वाला कभी कभी गलत काम भी कर बैठता है ।जानबूझकर या अनजाने में लोठू जाट ,डूंगसिंह जवाहर सिंह इन के विश्वासपात्र साथी थे यह सदा उनके साथ रहते थे धीरे-धीरे उनके दल में दूसरे लोग भी शामिल होने लगे उनके ऊंट इतने तेज थे जब चलते थे तो हवा से बात करते थे उनके ऊंट चारा कम खाते थे घी ही पीते थे ।
चारा चराने के लिए समय भी उनके पास कहां था। धहाड़ो में लूटा हुआ धन प्राय गरीबों में बांट दिया करते थे। अपने लिए या अपने परिवार के लिए उनको फिक्र नहीं रहती थी ।
ऊंटों के लिए घी खरीदने के शिवाय उनका अन्य कोई खर्च नहीं था।
उनको आर्थिक सहयोग दूसरी ओर से मिलता था आसपास के जागीरदार गुप्त रूप से मदद करते थे।
शेखावाटी के जो सेठ अंग्रेजो के खिलाफ थे वे अपनी रक्षार्थ उन्हें धन भेजते रहते थे इससे उनका तथा उनके परिवार का खर्च चलता था उनके तीन भाई बिगो मान और कालू गांव में रहते थे और घर का काम देखते थे अपने भाइयों एवं गांव के लोगों से इनका अच्छा प्रेम था वे लोग इनको सलाह देते रहे थे तथा इन्हीं योजनाओं को गुप्त रखते थे जब इनको भूख लगती तो किसी गरीब के घर में घुसते और छाछ,राबड़ी, ठंडी ,बासी जैसी मिलती खा लेते थे।
गरीब लोग भी इनको खिला कर बहुत खुश होते थे तथा इनका आना-जाना गुप्त रखते थे ।पुलिस की कार्यवाही संबंधी समस्त सूचना इनको पहुंचा दिया करते थे ।अपने गांव के अतिरिक्त आसपास के गांवों के लोग भी इनके मधुर संबंध थे व अपनत्व रखते थे ।कभी-कभी गांव में आते तो उनसे मिलते उनके दुख-सुख की सुनते। अपनी क्षमता अनुसार उनका सहयोग करते इनका कोई खर्चीला शौक नहीं था सादगी पूर्वक रहते थे कपड़े भी साधारण किसान जैसे ही पहनते थे।
किसी पराई स्त्री की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखते थे जिस घर में जाते वहां की औरत को बाई या मां के नाम से संबोधित करते थे।
जिस घर में डाका मारते वहां कभी महिलाओं को परेशान नहीं किया करते थे इसके अतिरिक्त चोरी करने का मानस कभी नहीं रहा जो काम करते सामने होकर करते थे किसी के घर में सेंध नहीं लगाई ।सोते हुए लोगों के घर में कभी भी चोरी नहीं करी ।गोलियां हवा में चला कर घर में सोए लोगों को जगाकर लूटते थे ।सेठ लोग डर के मारे कांपने लगते और अपने धन में से कुछ हिस्सा निकाल कर इनको दे देते थे ।इन गुणों के कारण ही गरीब वर्ग में लोकप्रिय हुए दोनों भाई वीर होने के साथ-साथ सांहसी थे ।
यह भली-भांति जानते थे कि इतने बड़े तूफान के सामने नहीं टिक सकेंगे ।अंग्रेजों की फोज अधिक थी ।लेकिन फिर भी उनका जज्बा था ।लेकिन फिर भी साहस बनाए रखा अंग्रेज सरकार ने उनको पकड़ने के लिए जासूस छोड रखे थे ।लेकिन उन्होंने कभी परवाह नहीं की। स्वतंत्रता की लड़ाई में मीणाओं के बलिदान का सही मूल्यांकन नहीं हुआ जो होना चाहिए था सांवता राम मीणा करनाराम मीणा शेखावाटी के बड़े क्रांतिकारियों में से एक थे। जिन्होंने अंग्रेजों के खजाने को लूटा और गरीबों में बांटा उन्होंने अंग्रेजों को कभी चैन से नहीं बैठने दिया ।अंग्रेजों के विरुद्ध लोगों के हौसले बुलंद रखने में मदद की ।
लगातार——–

विस्तार से पढ़ने के लिए शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी नामक पुस्तक का अध्ययन करें।
लेखक तारा चंद मीणा “चीता” प्रधानाध्यापक कंचनपुर सीकर

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