अंक -7 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-7

सांवता राम मीणा का जन्म बटोट ग्राम में लगभग सन 1795 के आसपास हुआ था इनका बचपन का नाम सैलो था इनके पिता जी का नाम नाथूराम और माता का नाम श्रीमती हाला था।
बालक सांवता राम एकांत प्रिय क्रोधी स्वभाव और चिंतनशील प्रकृति के थे।
इनकी जीवनशैली इस प्रकार रही है इनका शारीरिक गठन बहुत चित्ताकर्षक था उन की आकृति बड़ी सुंदर थी उसके अंग प्रत्येक से बहादुरी वीरता टपकती थी ।उनका व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली था और उसको देखते ही हर कोई उनको महान योद्धा समझ लेता था, उनका सौंदर्य उनकी दाढ़ी मूछों के साथ-साथ उनके शारीरिक गठन में था उनका शारीरिक गठन बड़ा ही सुंदर था उनकी आकृति में सांसारिक बातें कम तथा राष्ट्रभक्ति अधिक थी, चेहरे और शारीरिक गठन से वह राजकीय गौरव के योग्य प्रतीत होते थे, हंसते समय आकृति विकृत हो जाती थी किंतु गंभीर मुद्रा में उसमें सुंदर स्वभाव तथा बड़प्पन स्पष्ट दृष्टिगोचर होता था। क्रोध की मुद्रा में उनकी आकृति अनुपम रूप धारण करती थी सावता राम का ललाट ऊंचा उसकी भुजाएं लंबी, उसका कद साढे छह फीट का था।दाढ़ी मूंछ काली थी सीना चौड़ा नाक का नथुना फैले हुए था,वह बहुत मोटा पतला था उसकी टांगे एकदम सीधी थी और लंबी थी जिससे उसको ऊंट की सवारी में बड़ी सहायता मिलती थी। उसका हाथ तथा उसकी भुजाएं लंबी थी उसकी आवाज बुलंद में प्रभावशाली थी, सांवताराम बिना विश्राम के घंटों परिश्रम कर सकता था ,वे अपने कार्य क्षेत्र में थकावट महसूस कभी नहीं करते थे लोठू जाट के साथ एक बार एक दिन में बटोट से नसीराबाद अपने ऊंट पर इतनी दूरी का सफर लगभग 200 किलोमीटर का तय लेते थे,वह अपने शारीरिक शक्ति के बल पर मस्त ऊंटो , घोड़ों को वशीभूत कर लेते थे उनका शरीर निरोग एवं स्वस्थ था वेशभूषा में ज्यादा लगाव नहीं रखते थे शरीर पर केवल कमर तक धोती पहनते थे शेष शरीर नग्न रखते थे, सिर पर भारी पगड़ी बांधते थे जो इतनी भारी होती थी कि दुश्मन सिर पर वार भी कर दे तो सिर को कोई नुकसान नहीं होता था और सिर व शरीर सुरक्षित बच जाते थे अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित रहते थे उनके कंधों पर सदा धनुष लटका रहता था हाथ में फरसा लिए रहते थे ।
सांवता राम मीणा कई भाषाओं के जानकार थे जिनमें मुख्य अंग्रेजी, गुजराती,हिंदी ,राजस्थानी ,मेवाती ,ब्रज ,शेखावाटी आदि जो इनको दुश्मन की पहचान करने में काम देती थी इन भाषाओं पर इनकी अच्छी पकड़ थी, स्वभाव से बहुत अच्छे थे सभी भाइयों में सबसे बड़ा होने की वजह से सभी के प्रति शालीनता रखते थे अपने मधुर संबंधों से जवाहर जी के दिल को छू लिया था जो इनको अपने साथ हमेशा रखते थे। हास्य विनोद प्रेमी थे उसमें दिल खोल कर भाग लेते थे । साधारण जनता के प्रति उसके विचार सराहनीय थे उनका नाम भी नहीं होता था ।वह बड़ा दयालु और कोमल स्वभाव के थे।
जब गरीब जनता की आंखों में भूख देखते थे तो उनको क्रोध उत्पन्न होता था।तब उनकी भूख मिटाने की कोशिश करते थे । परंतु कभी शांत हो जाता था। अपने संबंधियों से प्रेम करते थे और उनकी गलतियों को क्षमा कर देते थे।इनकी दिनचर्या बहुत ही अच्छी थी और व्यर्थ में अपना समय नहीं गंवाते थे ।अपना अधिकांश समय गरीब असहाय जनता की देखभाल में व्यतीत करते थे तथा शेष समय में भाषा ज्ञान ,लोक कला, नाटक कला आदि में खर्च करते थे जो इनके दूरदराज क्षेत्रों में अंग्रेजों की छावनी को लूट से लगान वसूल करने के काम आती थी,इनकी अभिरुचि जंगली शिकार तथा घोड़ों की सवारी करने में आनंद समझते थे । एक उच्च कोटि का उंट सवार थे, धनुष बाण से निशाना साधने वाले थे ऐसा बताया जाता है कि उनका निशाना अचूक था , मानसिक शक्ति उच्च कोटि की थी जैसा कि पहले बताया कि कई भाषाओं के जानकार कला संस्कृति में शिक्षित होने के साथ ही बुद्धिमान थे ।मानसिक विकास प्राप्त था जिसके आधार पर निर्णय कर लेते थे। उसको इतिहास सामाजिक न्याय दर्शन आदि वाद विवाद करने की निर्णय सकती थी ।उसका ज्ञान प्राप्त कर लेते थे बात भी कर लेते थे जवाब आसानी से देते थे उच्च कोटि के होते थे । दानवीर धार्मिक भक्ति में पूर्ण थे। तथा अपनी मां को देवी स्वरूप मानते थे और सबसे बड़ी उनकी भावना धार्मिक प्रवृत्ति की थी कि भूखे और गरीब लोगों की सहायता करते थे।सांवता राम मीणा एक उच्च कोटि के सेनानायक लड़ाई दहाड़ा डालना आदि विषमता भयंकर परिस्थितियों में तनिक भी विचलित नहीं होते थे ।वास्तव में उनको संघर्ष से प्रेम था , सांवता राम को संगठन से प्रेम था उसका संपूर्ण ज्ञान था। सांवतराम मीणा की न्याय प्रियता राजनीति निपुणता तथा नीतिमत्ता अद्वितीय थी। उसने अपने साथी जवाहर सिंह के साथ रहकर गरीब जनता का बहुत सहयोग किया जिसको आज भी भोपा व भाट गाते बजाते हैं अपने घर को त्याग कर गरीब जनता और देश के प्रति अपना संपूर्ण जीवन लगा देना इस प्रकार सांवता राम मीणा समस्त गुण होते हुए भी अपना जीवन विलासिता से दूर का देश हित ,तो गरीब जनता का भला चाहने वाला सांवता राम मीणा जीवन भर अविवाहित रहा और पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी जीवन का पालन किया कभी भी अपने ऊपर दाग लगने का मौका नहीं दिया ।स्पष्ट छवि स्पष्ट आचरण शुद्ध विचार से परिपूर्ण थे सांवताराम को लेकर शेखावाटी क्षेत्र में उच्च स्थान प्राप्त था उसकी गणना उसके गुणों तथा उसके कारण राजस्थान की प्रमुख स्वतंत्रता सेनानीयों में की जाती है। सर्वगुण संपन्न था उनकी जानकारी हेतु कई घटनाओं का वर्णन हम आपके सामने प्रस्तुत करेंगे सांवता राम मीणा कई भाषाओं की जानकारी रखते थे जो उनको रेकी करने में कोई परेशानी नहीं रहती थी ।आसपास की भाषाओं में भी बात कर लेते थे जिससे वहां के रहने वाले लोग उन पर शक की दृष्टि से नहीं देख सकते थे और वहां की पूरी जांच कर आते थे ।लगभग 9 भाषाओं के जानकार सावता राम मीणा अपने आप में एक पहचान होती थी जिनमें अंग्रेजी ,हिंदी ,उर्दू ,गुजराती, मेवाती, ढूंढाड़ी, राजस्थानी,ब्रज शेखावाटी बोलियां अच्छी तरह से बोले थे जो उनको जासूसी के लिए काम आती थी । आगरा का वर्णन इस प्रकार है
लोटियो जाट सावतो मीणो अकल बड़ो उस्ताद जी।
लांबा लांबा लिया बांसड़ा करे नटा रा भेस जी ।
ऊंची ऊंची पहर दोतड़ी किया नटा रा भेस जी।
डावी बगल में झेल ढोलकी माल हेरवाई जाए जी।
आडो आडो फिरै मेण को सिरै बजारां जाट जी।
हाटा बैठा दीठा बानिया वै जल भर्ती पनिहार जी ।
साहिब रे बंगले के आगे बांस दिया रोपायजी ।
नव लख झीझा बाज रया स खूब मांड्यो ख्याल जी ।
साहिब ने तो राजी करने बड़िया बंगला मांई जी।
देखें पुरबिया बंगला के माईलो माल जी ।
माल देरब तो खूब देखो अंग्रेज रे पास जी ।
सोने री पुतलियां देखी ,हीरा तणो व्यापार जी।
चवदै तो चपरासी देख्या, 15 चौकीदार जी।
नंगी तलवारा पैहरो लागे ,हवा बाग रै पास जी।
सांझ पड़े दिन हाथमेस लोटयो डेरा के मांय जी।
बड़कै बोले सुण डूंगसिंह जी कहो चौधरी बात जी।
तम तो गया था किले आगरे, कहो माल री बात जी।
क्या कहूं मेरे रावजी स ,न,कहयो ,न म्हासूं जाए जी ।
माल दरब तो खूब देखयो, अंग्रेज रे पास जी ।
सोने री पुतलियां देखी ,हीरा तणो व्यापार जी।
14 तो चपरासी देख्या 15 चौकीदार जी ।
आधी रैण पौर कै तड़के, दियो पागड़े पांव जी।
पोल भांग दरवाजा ,भाग्य भाग्य लाल किवाड़ जी।
राढा रीढो असौ मांडियो सैहर छावनी मांयजी।
मानवीय की मुंडी टूटी,बहे रगतां रा खालजी।
धरती माता असी बनी ,ने जाने खंडी गुलाल जी।
बड़ी छावनी लूट ली आदि ने दीवी जलाए जी।
नव गोरा नाक काटिया बंगला दीन्हा बाल जी।
साठ ऊंट माया सूं भरिया कपड़ा भरी कतार जी ।
बाल कतारा नीसरास ,बै पौखरजी न्हाबा जाए जी।
रात दिन रा करया मामला , गया पोखर जी घाट जी। पुष्करजी रै गुऊ घाट पर गहरा किया स्नानजी।
पोखरजी री लाल पैड़िया बैठा जाजम ढाल जी।
लगातार————
लेखक तारा चंद मीणा “चीता” कंचनपुर सीकर

नोट – आदरणीय पाठको विस्तार से पढ़ने के लिए शेखावाटी के वीर स्वतंत्रता सेनानी नामक पुस्तक का अध्ययन कीजिए।

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