अंक – 18 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-18

करनाराम ने लोठू जाट से कहा लोटिया आप तो किले में प्रवेश हेतु अपने सैनिकों में से ताकतवर को चुनो जो अपने साथ जेल तोड़ने में अग्रणी भूमिका निभाएंगे तथा बहादुर साहसी और हिम्मत वाले हो उनको अपनी योजना के अनुसार तैयार करो और मैं किले में प्रवेश करने हेतु एक 80 फुट लंबी सीडी तैयार करता हूं जिससे हम किले की दीवार को फांद सकेंगे।
क्योंकि आज शहर में मोहर्रम का त्यौहार है ताजिया निकलने वाले हैं ताजियों की व्यवस्था करने के लिए किले में से बहुत सारे सिपाही मोहरम व्यवस्था हेतु चले गए हैं और अब हमें उनके पीछे से जेल पर हमला बोल देना है ।
इस बार यदि हम किला को नहीं तोड़ पायेंगे तो हमें ओर मौका नही मिलेगा।आज हार गए तो फिर हम नहीं जीत सकते ।लोटिया ने कहा मैं और जवाहर जी पहले जाएंगे इसके बाद आप सब लोग जैसे जैसे मौका मिले उसी हिसाब से किले में प्रवेश करना तब तक हम चारद्वारी की पट्टी पर खड़े रहेंगे आक्रमण बहुत तेजी से होना चाहिए सभी दल के सदस्य ने सीना ठोक कर कहा कि वे शत्रु को सांस भी नहीं लेने देंगे जब यह चारों किले की बुर्ज पर पहुंच गए तो छोटे-छोटे दलों में बंट गए । किले के प्रवेश के समय करुणा मीणा और लोटिया जाट ने वीर तेजाजी का ध्यान किया और डूंगजी वाली बुर्ज की तरफ चल दिए इनके जवान और जवाहर जी आदि आदि थे ।डूंगजी के पास पहुंचे लोटिया जाट ने जयकार कि करणा ने कहा बड़ी बड़ी बेड़ियों को काटो ।लोठू जाट व करना मीणा ने सूर्य देव का ध्यान करते हुए एक घड़ी के भीतर चार दिवारी पर सीडी लगा दी जिससे चुने हुए वीर किले में प्रवेश कर सके
इस तरह डूंगजी वाली बुर्ज के पास पहुंच गए और आवाज दी है डूंगजी बोलता है तो बोल बेड़ी काट दें। परन्तु डूंगजी ने अपने अन्य साथियों को आजाद कराने के लिए कहा तथा वहां पर सभी कैदियों को रिहा किया।
करनाराम के द्वारा बनाई सीडी जिसके ऊपर 5आदमी एक साथ किले से बाहर निकालने के लिए बनाई थी उसके ऊपर कैदी जेल से छूटते एक-दूसरे के बाद कैदी भाग छूटे और सब एक साथ उस पर आ गए जिससे सीढी टूट गई।
करणा ने कहा सीडी ने अपने को धोखा दिया अब दरवाजे की ओर चलो कह दिया तुमने खूब काम बिगाड़ दिया अब कोई भाटा ले लो कोई तलवार ले लो ,कोई बरछी ले लो एक साथ टूट पड़ो, कंधे से कंधा मिला दो तथा दुश्मन को छोड़ो मत आगरे के किले की इस जीत से करना राम मीणा और जाट का पूरे देश में नाम हो गया चारों और प्रसिद्धि फैल गई उसके नाम से नाम के गीत गाए जाने लगे बहुत से लोग काफी घटनाएं इन से प्रभावित होकर लिखी गई ।यह घटना लोगों की प्रेरणा स्रोत के रूप में लोगों के मानस पटल पर छा गई ।
शेर की तरह रहते थे कोई गीदड़ नहीं थे ।
इनको पकड़ने के लिए कमर कस ली छावनी छावनी थाना थाना में उनके फोटो लगा दी कप्तान दौड़ा सभी सेठ साहूकारों के नाम लंबे चौड़े पत्र लिखे गए राजा महाराजा को भी पत्र लिखा गया अंग्रेज अफसर ए जी जी द्वारा खत लिखने से बीकानेर के राजा ने ऊपर वाले मन से अपनी फौजियों को करनाराम के पीछे लगाया जोधपुर तक किसी ने भी अपनी फौज में जवानों की सहायता करना राम को पकड़ने के लिए लगाया बताया जाता है कि एजीजी ने उनके पीछे तीन ओर से बीकानेर के सीरोदड़ा गांव में स्वतंत्रता सेनानीयों को घेर लिया । करनाराम अपने साथी डूंगजी के साथ दुश्मनों से आमने सामने काफी देर तक मुठभेड़ हुई।उसके बाद उसने अपने साथियों से कहा तुम यहां से भाग जाओ हम फिर मौका देखकर फिर से बदला लेंगे करनाराम कहा आज मारे जाएंगे तो देश को बचाना मुश्किल है ।आज यहां से इनको मार काट के निकल लो।
यहां डूंगजी जवाहर जी अपने आपको अलग अलग कर दिया और उनके साथी वहां से युद्ध में मुकाबला करते हुए निकल गए।
लेखक तारा चंद मीणा चीता सीकर

नोट सम्पूर्ण जानकारी के लिए शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी नामक पुस्तक का अध्ययन करें

अंक – 17 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-17

करनाराम मीणा की नजर चरते हुए रेवड़ पर पड़ चुकी थी और वह योजना के अनुसार उसमें से एक मिंडा लाना चाहता था। उसके लिए वह एक भेड़ा लेने के लिए यमुना के किनारे चल दिया और वहां नदिया किनारे आसपास भेड़ों के घूम रहे थे , उनके चराने वाले गुर्जर जाति के लोग थे,उनसे जाकर रामा श्यामा की और नमस्कार किया तथा गुर्जर और मीणा का भाईचारा एक सा था इसलिए उन्होंने करणाराम मीणा ने उनको देखकर जिस लहजे के दौरान वंदन किया था उसी लहजे में रेवड़ चराने वाले गुर्जर ने राजस्थानी मीणा को रामा श्यामा की तथा अपने पास आने का कारण पूछा जब करना राम मीणा ने भाई बोला कि भाई नमस्कार पहले इससे गुर्जर जाति के लोग बड़े ही राजी हुए।
ग्वाले ने कहा कि आपने हमारे को भाई बनाया है बताओ क्या काम है।
तब गुजर के लड़के ने कहा मेरा नाम श्याम सिंह गुर्जर है आप तो मेरे योग्य सेवा बताओ तो करना राम मीणा बोला भाई हमें एक मींढा चाहिए।
गुर्जर के लड़के ने कहा भाई आपने हमें भैया बनाया है और हम आपके भाई हैं इसलिए एक नहीं आप दो ले जाओ,भाई हमें तो एक ही मिंढा चाहिए ।करना राम मीणा ने कहा और उसकी कीमत बता दो क्या लोगे बताया जाता है उस समय भारत वर्ष में अतिथियों की सेवा करना सनातन धर्मियों का अपना नैतिक दायित्व था और समझते थे इसलिए श्याम सिंह गुर्जर ने कहा आप बड़े सरदार लगते हैं मुझे आप मीणाओं के सरदारों में सरदार मुझे नजर आ रहे हैं आपने जो इस मिंडा की मांग की है ।
मैं मानता हूं कि आप मीणा जाति के हैं। इसलिए आपके पैसे में लेकर कहां रखूंगा तथा मैं क्या करूंगा आदि बातें भी नम्रतापूर्वक गुर्जर जाति के लड़के श्याम सिंह ने की। ऐसी बातें करने के उपरांत उन्होंने कहा कि आपके सामने इसकी क्या कीमत है। यह तो आपके मान के सामने कुछ भी नहीं है।
आप प्रदेशी हैं यह तो मेरा भाग्य कितना अच्छा है कि मुझे आपकी सेवा करने का मौका मिला है ।
आप मुझसे एक मिंढा मांग रहे हैं।
मैं आपकी सेवा में 5 मिंढा भी समर्पित कर दूं तो भी कम है गुर्जर श्यामसिह ने कहा।
करना राम,गुर्जर की वफादारी वह ईमानदारी तथा मेजबानी से बहुत ही खुश हुआ और सोचा तथा उस गुर्जर को देखा एकदम फटे हाल कपड़े और गरीब परिस्थिति में वह दिखाई दे रहा था तथा उसकी स्थिति भी दयनीय थी।
करनाराम ने सोचा इससे मुफ्त में मींढा लेना ठीक नहीं रहेगा । इस गरीब के साथ अन्याय होगा यह सोचकर करनाराम बोला देख भाई हम बाराती हैं इसलिए मुफ्त का मींढा नहीं ले सकते यदि तुम पैसे नहीं लोगे तो हम ऐसे ही चले जाएंगे उस गुर्जर ने कहा यह तो बात ठीक तो नहीं है पर आपको ऐसे भी नहीं जाने दूंगा ।
आप मुझे ₹5 द दीजिए
करना राम ने उसे पांच की जगह सात रूपये दिए और मींढा ले लिया।करनाराम ने एक ही झटके में मिढें को मार दिया और उसकी खाल बाल उसे भी उखाड़ दिए और उसको मुरदा बना लिया ।
लगातार……
लेखक तारा चंद मीणा चीता श्रीमाधोपुर सीकर

अंक – 16 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-16

करनाराम मीणा के द्वारा सेना का संगठित करना तथा डूंगजी को छुड़ाने की योजनाएं बनाना उस समय जवाहरजी को लोटिया जाट कुछ कहता है।
बड़के बोले जाट लोटिया सुन शेखावत बात जी।
जोर जरब रौ काम नी ,उठे हैं अंग्रेजी राज जी।।
बात सुनकर जवाहर जी ने लोटिया जाट को कहा मैं अभी मेरे सभी सदस्यों को आदेश करता हूं कि वह अपने सभी सगे संबंधियों को यहां यह निमंत्रण भेजे कि हमें हमारे साथी, हमारे भाई ,हमारे सरदार डूगजी को छुड़ाना है तथा मैं इसी वक्त सभी को सही स्थिति से परिचित कराता हूं तथा चारों और बालिया नाई को भेजकर उनके गुप्तचर विभाग को सूचित करता है तथा बालू नाई अपने हिसाब से चारों तरफ मीणा वीर योद्धाओं को यह समाचार पहुंचाता है देखते ही देखते बटोट में बड़े ही गुप्त ढंग से शेखावत ,बिदावत, पंवार, मेड़तिया ,नरूका ,चौहान ,मीणा, बढ़ई ,नाई, लोहार, सुनार, चंद गुसाईं ,साधु संत और दादूपंथी संत सभी जमा हो गए।उस समय साधु संत भी अंग्रेजों के विरुद्ध एक आंदोलन चला रहे थे इसलिए वह भी इन इस आंदोलन में शरीक हो गए ।रात्रि के समय गुप्त स्थान पर बैठक हुई बैठक बठोठ में तहखाने में आयोजित हुई ।
बड़े ही गुप्त ढंग से सभी प्रकार की योजनाएं बनाई गई तथा इस बात का ध्यान रखा गया कि यहां की बात किसी को कानों कान तक खबर ना हो। गुप्त बैठक में काफी कसम कस करने के उपरांत एक निर्णय करना मीणा के द्वारा सुझाया गया कि अपने को आगरा चलने के लिए एक बारात बनानी है और उसमें एक दुला बनाना है जिसको बहुत ही सजी दे तरीके से हम बराती बनाकर यहां से आगरा के लिए प्रस्थान करेंगे तथा रास्ते में कहीं भी यह पता नहीं चलना चाहिए कि हम कौन हैं । बस सभी की नजर में यह हो कि यह बरात राजस्थान से आई है तथा इसका अगला पड़ाव आगरा में जाकर निश्चित स्थान पर रुकेगा।
सभी ने करना राम मीणा की बात को सराहा तथा योजना बनाने के लिए सब अपने अपने तरीके सुझाए तथा सभी तरह के हथियार गुप्त ढंग से रखने के लिए तैयार किए गए।
एक कविता के माध्यम से बरात के लिए कहा गया है।।

झूठी मुट्ठी जान बना लो झूठो जान रौ बिन।
चुग-चुग करलां कुची मांडो, चुग चुग घड़ला जीण।
झूठा बांधो काकड़ डोराडा सिर सोने रो मोड़ जी ।
आपा तो जानेती वणल्या बीन बने भोपाल जी ।
जोधपुर री जान सिर बिणायो रूवा परिणी जाय जी।
दोय जणा जांगड़िया बनके, सिंधु द्यो अरसाल जी।
हाथां पगां के बांधो डोरड़ा सिर सोना को मोड़ जी।
काना घालो मामा मूरकी, गल में घालो गोयजी।
लाल चौभाणै मामा मोचा,लाल कनारी जोड़ौजी।
लाल पगड़ी रातो वागो,रातै महिपै चोड़ो जी।
हाथां का हथियार ले ल्यो,खाबा को सामान जी।
जान बणाय चालां आगरै,हर राखेलो मान जी।
रात रात बै चलै जनैती ,दिन ऊग्यां ठम जायजी।
आगरै रै तीन कोस पर डेरा दिया लगाय जी।
यमुना किनारे गुजर को रैवड़ चरतो जाय जी।
अर्थात–
झूठ मुठ की बारात बना लो जूठा बरात का दूल्हा बना लो चुन-चुन कर ऊंटों पर जीन कसो अच्छे-अच्छे चुन-चुन कर गुप्त रूप से हथियार रखो ।
झूठे बांध लो काकड़ डोर्डे और सिर पर सोने का मोर रख लो ,हम सभी लोग बाराती बनेंगे तथा भोपाल सिंह को दुल्ला बनाएंगे तथा राजस्थानी जोधपुरी बरात बनाकर बीन अपनी दुल्हन को ब्याने शादी करने के लिए आगरा जाएगा तथा बरात के आगे दो आदमी डोली बनकर सिन्धु राग आरंभ कर देंगे ।दूल्हे के हाथों पैरों में काकन डोरडे बांधों और सिर पर सोने का मुकुट लगा लो कानों में मामा मूरकियां पहनाओ गले में गोप डाल दो।
लाल मोचा की मामा जूतियां पहना दो ,मामाओ की ओर से लाल किरारी की धोती पहना दो। लाल जामा और लाल पगड़ी पहनाकर मस्त ऊंटों पर सवार कर दो।
सभी बाराती अपने अपने हाथों में गुप्त रूप से हथियार ले लो साथ में खाने का सामान बांध लो और बारात को आगरा की ओर प्रस्थान कर दो तथा सूर्य देव का स्मरण करते हुए मां जीण भवानी की याद करके अपने सभी कामों को स्मरण करते हुए रात को प्रस्थान कर दो तथा बरात रात रात में रास्ता को कवर करेगी तथा दिन निकलते ही बरात रुक जाएगी यानी की बरात आराम करेगी इस तरह करना राम मीणा व लोठू जाट ने डूंगजी को आगरा की जेल से छुड़ाने के लिए मजबूत सेना का गठन किया तथा सभी साथियों को अच्छे हथियारों से लैस किया साथ में किले को तोड़ने के लिए छेनी हथौड़ी आदि सामान प्राप्त मात्रा में लिया जिससे आगरा की मजबूत जेल को तोड़ा जा सके क्योंकि जेल को तोड़ने के लिए सख्त औजारों की जरूरत होगी ।इसके लिए दो होशियार लोहार भी लिए गए जिसमें सांखू लुहार मुख्य था ।आखिर में सभी सामान का बंदोबस्त कर के बरात बठोठ से रवाना हुई ।रवाना होने के उपरांत जैसे जैसे गांवों में से निकलते गए बारातियों का हर जगह सम्मान की दृष्टि से लोग देख रहे थे।तथा आगे से आगे उनकी सेवा के लिए प्रस्थान होते हैं इस तरह से बरात रूपी सैनिक आगरा के नजदीक पहुंच जाते हैं जहां से आगरा की दूरी मात्र 9 किलोमीटर के लगभग रहती है वहां करनाराम मीणा व लोठू जाट अपने दिमाग का उपयोग करते हैं कि हम किस तरह से आगरा शहर में प्रवेश कर सकते हैं।
इसके लिए हमें नई योजना बनानी चाहिए इस बात पर करना राम मीणा के दिमाग में एक बात उपजती है और कहते हैं यह दोस्त जाट में एक काम करता हूं यमुना के किनारे भेड़ों का रेवड़ चर रहा है उसमें से मैं एक मींडा खरीद के लाता हूं तथा उसको मार कर कुछ उपाय करते हैं इतनी देर में जवाहरजी करनाराम की बात को सुन लेते हैं और कहते हैं करनाराम आप मींडा क्या करोगे । क्या तुम उसे खाओगे हमें समझ नहीं आ रहा तेरी क्या योजना है हमें तो बताओ करनाराम!
करनाराम जवाहर जी को कहते हैं ठाकुर साहब हम मींडा का मीडासिंह बनाएंगे तथा उसको मार कर मुर्दा बनाना है और मुर्दा बनाकर कंपनी बाग में इसको जलाएंगे तथा उसकी धुंआ चारों तरफ फैल जाएगी फिर वहीं उसका क्रिया कर्म करेंगे ।
इस दरमियान अपनी योजना के लिए किले में प्रवेश की बना लेंगे ।
जब जवाहर सिंह व उसके साथी ने कहा अरे वाह!
करना राम मीणा तेरे दिमाग को सलाम करते हैं!
तुम तो बहुत होशियार हो!
वाकई में आपको तो वीर हनुमान की पदवी देनी चाहिए!
जो तुम इस कार्य को बुद्धि से कर रहे हो! अब आगे की योजना के बारे में क्या कहते हो !
तब लोटिया जाट करण्या मीणा और अन्य लोग अब आगे की कार्रवाई पर विचार करने लगे।
उन्होंने सोचा कि अब हमें सही अवसर की तलाश करनी चाहिए ।
उसके लिए बारात का रुकना जरूरी है।
मगर बिना ठोस कारण के बरात रूक नहीं सकती ।
दुश्मनों को संदेह हो जाए, इसलिए मैंने यह योजना बनाई है! करनाराम मीणा ने कहा!
लगातार —
लेखक तारा चंद मीणा श्रीमाधोपुर सीकर

अंक -15 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-15

करणा राम मीणा के द्वारा सेल्यूलर जेल (काला पानी)की जानकारी देना
यह जेल अंडमान निकोबार दीप समूह में स्थिति पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित है तथा समुद्र से सैकड़ों किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता है। यह काला पानी के नाम से कुख्यात है।अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अत्याचारों के साथ ही उनको इस जेल में रखा जाता था ।यहां जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं ।इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेलजोल को रोकना था।भारत की आजादी के लिए लड़ी गई पहली जंग में विभिन्न प्रकार के राजनीतिक विद्रोहियों के साथ साथ खतरनाक किस्म के अपराधियों को भी निर्वासित कर दिया गया था अंडमान द्वीप की इसी दंडी बस्ती को काला पानी तथा निर्वाचित कैदियों को दामली का नाम प्राप्त हुआ। भारतीय बंदियों के लिए प्रथम दंडी बस्ती या पीनल सेटलमेंट अंग्रेजों ने सागर पार सुमात्रा के बैंकोलीन नामक स्थान पर बनाई गई थी अंग्रेजों ने इस पर 1685 में अधिकार कर लिया था।
सबसे पहले 1787 में भारतीय बंदियों को यहां मार्लबासे के दुर्ग में निर्वाचित किया गया था। यहां भेजे जाने वाले अधिकांश बंदी हत्या लूट डकैती ठगी और स्वतंत्रता का आंदोलन छेड़ने वाले तथा धोखाधड़ी के अपराधों के लिए दंडित किए हुए थे।सन 1823 में जब बैंकोलीन पर डचों का अधिकार हो गया था तब इन बंदियों को मलाया के पेनांग नामक स्थान पर बने एक अन्य दंडी बस्ती में स्थानांतरण कर दिया गया इस स्थानांतरण के समय बंगाल में मद्रास प्रेसीडेंसी से आए हुए कुल लगभग 800 से 900 भारतीय बंदियों को यहां रखा गया था ।बेकोलीन से पेनांग के तरीक सिंगापुर यथा मलका में दंडी बस्तियां बनाई गई थी। सन 1832 में इन सब को सिंगापुर भेज दिया गया था इनके अतिरिक्त अंग्रेजों ने सन 1826 के बाद म्यामार में अराकान व तेनासरीम में तथा मारीशस में ही भी दंडी बस्तियों का निर्माण कराया गया था ।कालापानी कारावास के जन्मदाता मैकाले द्वारा एक ऐसी दंड तकनीकों का निवास विकसित करना था जो अराजकता के स्थान पर व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त कर सके।
1835 में ही उसने एक समिति का गठन कर कारावास के नियमों को विकसित करने का कार्य किया इस समिति ने एक ऐसी कारावास व्यवस्था की आवश्यकता पर बल दिया जिसमें प्रत्येक कारावास का एक अधीक्षक हो।प्रत्येक बंदी के सोने के लिए एक अलग स्थान हो। एकांत काल कोठरी की व्यवस्था हो तथा भौतिक सुख अनुपस्थित हो ।अंडमान की दंडी बस्ती में निर्वाचित बंदियों को दंड व अनुशासन के जिन नियमों के अंतर्गत उनका मूल स्रोत उक्त मैकाले समिति द्वारा विकसित वही कारावास व्यवस्था थी। जो सन् 1830 में बनाई थी ।इतना सुनते ही रानी को चक्कर आने लगे और वह बोली करना राम जी लोठूजी जवाहर जी आप यथाशीघ्र अपने सरदार को छुड़ाने का प्रयास करें अन्यथा अनर्थ हो जाएगा।
मैं अनाथ हो जाऊंगी ।
मेरे बच्चे अनाथ हो जाएंगे ।
इस तरह विलाप करती हुई तीनों से निवेदन करती है और जल्दी से जल्दी डूंगजी को छुड़ाने के लिए कहती है।
लगातार—–
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर

अंक – 14 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-14

करणा राम मीणा द्वारा राजकुमार को काठ कोरड़ा की जानकारी देना
मारवाड़ी में कोरड़ा, कोड़े को कहते हैं।
काठ कोरडा काठ का तो होता था लेकिन कोड़ा या कोरड़ा नहीं होता था ,राजाओं या पुलिस द्वारा अपराधियों को काठ कोरड़े में डालकर अपराधी से अपराध कबूल कराया जाता था ।काठ कोरडा काठ के दो टुकड़ों से बनता था ,दोनों टुकड़े एक दूसरे पर रखे रहते थे और एक तरफ कब्जों से जुड़े रहते थे दूसरी तरफ उनमें से निचले हिस्से में कुंडा और ऊपरी से में कुंटिया लगा रहता था ।
इस भाग में ताला लगा दिया जाता था।
काठ के दोनों टुकड़ों में तीन चार जगह अर्धचंद्राकार 2–2 कटाव होते थे जिनमें निचले काठ में अपराधी के पांव की पिंडली का निचला हिस्सा रखकर काठ का दूसरा हिस्सा ऊपर रख दिया जाता था। ऐडी से लेकर पैर की अंगुली तक का पूरा भाग काठ के बाहर रहता था। अपराधी हजार कोशिश करके भी उस छोटे से छेद से अपनी ऐडी बाहर नहीं कर पाता था ।अपराधी के दोनों पांव फंसे रहते और वह कोरडे के बाहर पीठ के बल लेटा दिया जाता था। उसे भोजन पानी भी नहीं दिया जाता था। भोजन केवल उसको जिंदा रखने के लिए न के बराबर दिया जाता था।
जिससे वह अपराधी ,वह व्यक्ति जिंदा रह सके ? उस व्यक्ति को मौसम के अनुसार सर्दी, गर्मी, वर्षा आदि भी सहन करनी पड़ती थी । इस भयंकर यंत्रणा से पीड़ित होकर अपराधी अपना अपराध स्वीकार कर लेता था।
चाहे उसने अपराध किया हो या ने किया हो। परंतु दर्द, पीड़ा से उस अपराध को कबूल कर लिया जाता था। जब काठ कोड़ा के विषय में बालक राजकुमार को बताया तो बालक कुंवर बहुत अचंभित हुआ और बोला मेरे बाबोसा को तो अंग्रेज अधिकारी बहुत परेशान करते होंगे न—— इधर ठकुरानी सभी बातें सुन रही थी और बीच में बात काटते हुए बोली करना राम जी यह काला पानी क्या होता है ।यह कौन सी सजा होती है। यह कोई कठिन सजा है क्या ?
तब करनाराम बताता है महारानी जी यह सजा एक ऐसी सजा है। जिसके लिए कैदी को एक दुर्गम स्थान पर पहुंचा दिया जाता है। बताया जाता है कि वहां गया हुआ कैदी वापस घर वालों से कभी नहीं मिल सकता है ।
ऐसा मैंने सुना सुन रखा है ।
लगातार……
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर

अंक – 13 में आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन है । शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी श्री सांवताराम मीणा, श्री करनाराम मीणा, श्री डूंगजी शेखावत, श्री जवाहर जी शेखावत और वीर लोठू जाट भाग-13

करना राम मीणा के द्वारा आगरा के किले का अवलोकन करना,करना राम मीणा और लोटिया जाट दोनों किले में प्रवेश करते हैं अंग्रेज अधिकारी ब्लॉकिंग ने बड़ी श्रद्धा से किले को अच्छी तरह दिखाया।करना राम मीणा ने रास्तों का बड़ी बारीकी से अध्ययन किया। बाबा लोठू जाट ने अंग्रेज अफसर को अपनी बातों में उलझाए रखा,इधर करनाराम मीणा किले की संपूर्ण चारदीवारी झरोखे सीढ़ियां और बाहर निकलने के गुप्त रास्ते आदि का अवलोकन कर रहा था। किले के अंदर कितने पहरेदार सादा वर्दी में हैं तथा कितने बंदूकधारी हैं और कौन-कौन सी जगह खड़े होते हैं उनकी अच्छी तरह से देखभाल कर रहा था। जब संत महात्माओं के गेरुआ वस्त्र पहने बाबाजी के वेश में पीले वस्त्र पहने हुए बलिष्ठ शरीर के चेहरे पर चमक था। जिससे उनका चेहरा सूर्य की भांति चमक रहा था जिससे सभी चौकीदार रास्ते में मिलने वाले उनको दुआ सलाम ही कर रहे थे और गुरु चेला को आगे से आगे रास्ता दिखा रहे थे।
कोई भी उनको रास्ते में रोक नहीं रहा था कोई टीका टिप्पणी नहीं कर रहा था। जिस तरह से हनुमान जी माता सीता को लंका से तलाश कर लंका की गहन जानकारी लाकर अपने नेता सुग्रीव को दी थी ।अपनी जान पर खेलकर उसी तरह करना राम मीणा अपने साथी डूंगजी की तलाश आगरा के किले की जेल में करके वापिस प्रस्थान के लिए तैयार हुए अपने पितांबर पीले वस्त्र साधु वेश मां यमुना के जल में बहाकर मां से आगामी योजना में सफलता का आशीर्वाद लेकर वहां से प्रस्थान किया। सीधे आगरे के पशु मेले में आए जहां रोज पशुओं की बिक्री होती थी वहां अपनी मनपसंद की एक-एक ऊंटनी खरीदी जो तेज धावक थी तब हवा से बातें करती थी क्योंकि पैसे कि उनके पास कोई कमी नहीं थी।इसलिए अपनी पारखी से बढ़िया ऊंटनी ढूंढ कर खरीद कर प्रस्थान किया। लगभग 250 किलोमीटर का रास्ता उन्होंने रात भर में तय कर लिया और सीधे ही डूंगजी के यहां पहुंचे। करनाराम मीणा पहुंचे उनके आने की खबर सुनते ही उनकी रानी व बेटा और जवाहर जी आ पहुंचे बड़ी बेचैनी से पूछा कि ठाकुर साहब कैसे हैं आप दोनों से मिले थे क्या ?
डूंगजी का छोटा सा बेटा राजकुमार लोठू जाट की धोती पकड़कर बोला चाचा चाचा मेरे कवंर सा कहां है ।
बताओ आपने उन्हें कहीं देखा क्या।
उधर जवाहर सिंह करना राम डूंगजी के विषय में पूछते हैं बड़ी बेचैनी से पूछ रहे हैं ।उत्सुकता के पूछ रहे हैं और तब करनाराम व लोठू जाट आपस में लंबी सांस ली उनकी आंखें गीली हो गई ।
वे दुख भरे स्वर में बोले ठुकरानी जी रानी सा! डूंगजी राजी खुशी हैं पर इस जीवन से तो मौत भली उनका शरीर हथकड़ी वीडियो और तोख जंजीर काट कोरड़ा में जकड़ा हुआ है वह सिंह ! बड़े ही दुख की बात है कि उन्हें कुछ दिनों के बाद काला पानी भेज दिया जाएगा जहां से वे क्या उनकी मिट्टी भी कभी नहीं आएगी ।रानी सा यह सुनते ही सुबक सुबक कर रोने लगी उसके साथ डूंगजी का फूल सा राजकुमार भी रोने लग गया ।करनाराम व लोठू जाट की आंखें भर आई ।बड़ी देर के बाद रानी बोली अब क्या होगा करना राम मीणा लोठू जाट दोनों एक साथ बोले रानी सा हम अपनी जान पर खेल कर भी हमारे सरदार को छुड़ाने की हमने प्रतिज्ञा ले ली है ।तब जवाब में डूंगजी की रानी कहा मगर कैसे!
अब अवसर आया है कि हम अपने साथियों संबंधियों सैनिकों एवं अपने दल के सभी सदस्यों की परीक्षा लें।
करना राम ने कहा इतने में बालक, कुमार, करनाराम से पूछता है चाचा चाचा यह काठ कोरडा क्या होता है मैंने हथकड़ी बेड़िया आदि से सजा देने का नाम तो सुना है परंतु काठ कोरड़ा क्या होता है !
यह कैसा होता है!
इसके विषय में जरा मुझे समझाओ मेरे बापू को ऐसी कौन सी सजा दे रखी है मेरे कंवरसा को ऐसी कौन सी सजा दे रखी है
लगातार…….
लेखक तारा चंद मीणा चीता कंचनपुर सीकर